शिमला।प्रदेश की कांग्रेस की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार के दो साल पूरे होने के मौके पर प्रदेश भाजपा ने राज्यपाल को सुक्खू सरकार के घोटालों का कच्चा चिटठा राज्यपाल को सौंप किया। लेकिन जिन घोटालों को जिक्र किया गया है वो कानून की कसौटी पर कितना खरा उतरेंगे इस पर सवाल है।
राज्यपाल को जो कच्चा चिटठा भाजपा की ओर से सौंपा गया है, उसमें नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर,प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राजीव बिंदल और भाजपा विधायक रणधीर शर्मा ने दस्तख्त किए है। बाकी किसी विधायक और सांसद ने इस कच्चे चिटठे पर दस्तखत नहीं किए गए है।
भाजपा ने इस कच्चे चिटठे में जो संगीन इल्जाम लगाए है उनमें मुख्यमंत्री के करीहबयों के जमीन घोटालों का जिक्र भी है।इल्जाम है कि इस जमीन में से कुछ जमीन एचआरटीसी को भी 400 गुणा ज्यादा रेट पर बेच दी गई है। इस तरह बीजेपी मुख्यमंत्री के अलावा उप मुख्यमंत्री को भी घोटालों के लपेटे में लाने की कोशिश की है।इसके अलावा बाकी मंत्रियों के विभागों के घोटालों का भी जिक्र किया गया है।
घोटालों के इन कच्चे चिटठों में भाजपा ने इन इल्जामों को शामिल किया है।
भू- घोटाले
फ़रवरी-मार्च 2015 में मुख्यमंत्री सुखरिंदर सिंह सुक्खु के नज़दीकी अजय कुमार, राजेंद्र सिंह राणा और प्रभात चंद ने महेश्वर सिंह जी से 70 कनाल ज़मीन ₹. 2 लाख 60 हज़ार रुपए में तीन अलग-अलग रजिस्ट्रियाँ करवा कर खरीदी गई।उस समय के वहाँ के तहसीलदार अनिल मनकोटिया आज मुख्यमंत्री के ओ.एस.डी. हैं। अब दिसंबर 2023 में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खु ने मुख्यमंत्री रहते यह 70 कनाल ज़मीन तीनो चहेतों से हि. प्र. पथ परिवहन निगम को 6 करोड़ 72 लाख 61 हज़ार 266 रू. में, अर्थात 400% दाम बढ़ा कर दिलवा दी और अपने चहेतों को लाभ पहुँचा, इस भू घोटाले को अंजाम दिया
जलशक्ति विभाग मंडल प्रागपुर द्वारा उठाऊ पेयजल योजना गाँव रक्कड़, प्रागपुर में 2 रिसवा कूँओं को लगाने हेतु 00-07-65 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहित की जिसके एवज में इस भूमि के मालिक मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खु के परिवार ने 18,00,000 रु. लिए और आश्चर्य की बात है कि इसमें से 4 लाख 50 हज़ार रुपय मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खु जी के खाते में गए। हिमाचल प्रदेश के जल शक्ति विभाग द्वारा पीने के पानी के टैंक आदि बनाने के लिए गरीब से गरीब व्यक्ति भी ज़मीन देने के बदले कोई पैसा नहीं लेता परंतु मुख्यमंत्री व उनके परिवार के सदस्यों द्वारा 7 बिस्वा ज़मीन के 18 लाख रू. लेना मुख्यमंत्री द्वारा ख़ुद को दानी एवं ईमानदार दर्शाने की कोशिश की पोल खोलता है
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खु के भाई राजीव सिंह जी ने नादौन में 769 कनाल ज़मीन ख़रीदी जिसे साल 2012 में सुक्खु ने अपने नाम करवा लिया, तब यह कृषि भूमि के नाम से दर्ज थी परंतु उस समय के एस.डी.एम. अनिल मनकोटिया जो अब मुख्यमंत्री के ओ.एस.डी. हैं, उन्होंने इस ज़मीन की किस्म को बदल दिया और सुक्खु जी ने इस भूमि को 2017 व 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान दिए हल्फनामे में गैर कृषि भूमि दर्शाया और इसकी क़ीमत 2 करोड़ 78 लाख रू. बताई जब की सच यह है की भूमि निर्धारण धारा-3 के अनुसार यह भूमि किसी भी परिभाषा में नहीं आती। प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति अपने ओ.एसडी. से मिलकर किस तरह भू-घोटाले को अंजाम दे रहे हैं, यह उसका एक उदाहरण है
विधानसभा क्षेत्र पालमपुर के तहत नगर निगम वार्ड 1 में बंदला के छिड़ चौक क्षेत्र से निकलने वाली महत्वपूर्ण 3 कूल्हों (1. दाईं दी कुल्ह, 2. मियां फ़तह कुल्ह, 3. दिवान कुल्ह) के ऊपर एक भू माफिया ने बहुत बड़ा स्लैब डालकर कुल्ह पर क़ब्ज़ा कर लिया है। कुल्ह के ऊपर स्लैब को डालने की शिकायत करने पर सरकार ने अभी तक कोई करवाई नहीं की।
पेट्रोल पम्प हेतु सरकारी ज़मीन वर्तमान सरकार के एक विधायक की पत्नी के भाई प्रदीप कुमार सुपुत्र रोशन लाल, पालमपुर निवासी को पेट्रोल पम्प लगाने के लिए धर्मशाला में सरकारी ज़मीन देने के लिए ज़िला प्रशासन दिन रात मेहनत कर रहा है। एन.ओ.सी. तो दे भी दी है। भाई ठीक ही कहा है… ‘सारी खुदाई एक तरफ़, जोरू का भाई एक तरफ़‘
मुख्यमंत्री कार्यालय बना भ्रष्टाचार का अड्डा
सुखविंदर सिंह सुक्खु द्वारा मुख्यमंत्री पद की बागडोर संभालते ही मुख्यमंत्री कार्यालय में रहे एक कर्मचारी ने प्रधानमंत्री कार्यालय को एक गुमनाम पत्र लिख कर आरोप लगाया था कि मुख्यमंत्री कार्यालय में कार्यरत एक अधिकारी, बिजली बोर्ड के आलाधिकारी के साथ मिलकर भ्रष्टाचार को अंजाम दे रहे हैं। पत्र में आरोप लगाया गया था कि किन्नौर स्थित शोंग-टोंग-कड़छम हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट बनाने वाली मैसर्ज पटेल इंजीनियरिंग कंपनी द्वारा 25 करोड़ रुपए इन अधिकारियों को मुख्यमंत्री कार्यालय में दिए।
अब यह आरोप इसलिए सत्य लग रहा है क्योकि हिमाचल सरकार हिमाचल प्रदेश पॉवर कारपोरेशन लिमिटेड (HPPCL-एच.पी.पी.सी.एल.) के माध्यम से अनेक तरह के लाभ इस कंपनी को पहुँचा रही है जैसे एच.पी.पी.सी.एल. ने अपने बोर्ड की बैठक में कार्यपूर्ति की समय अवधि को दूसरी बार बढ़ा दिया। प्रोजेक्ट समय पर पूरा न करने पर 162 करोड़ रू. के जुर्माने को न लगाकर 1765 दिनों की समय अवधि और बढ़ा दी।
दूसरा, घाटे पर चल रही इस कंपनी को 150 करोड़ रु. का काम बढ़ा कर 288 करोड़ रू. में दे दिया। यही नहीं, मलवा हटाने का रेट भी 67 रू/क्यूबिक मीटर से बढ़ाकर 88 रू/ क्यूबिक मीटर कर दिया और मलवे की मात्रा भी 1,74,000 क्यूबिक मीटर से बढ़ाकर 3,74,000 क्यूबिक मीटर कर दी जो भ्रष्टाचार का एक स्पष्ट प्रमाण है
शराब घोटालाः
हिमाचल सरकार के आबकारी एवं कराधान विभाग ने इस वर्ष के लिए फ़रवरी-मार्च 2024 में शराब के ठेकों की नीलामी की जिसमें बहुत बड़ा घोटाला घटा। एक तो विभाग ने जिलों में छोटे यूनिट मिलाकर बड़े यूनिट बना दिया, अर्थात यूनिट बड़े बना दिए ताकि चहेते ठेकेदारों को ज़्यादा काम मिल सके। इसका विवरण इस प्रकार है :
- सिरमौर ज़िला – 5 यूनिट का 1 यूनिट
- मंडी ज़िला – 8 यूनिट का 1 यूनिट
- नूरपुर – 5 यूनिट का 1 यूनिट
- चंबा ज़िला –11 यूनिट का 1 यूनिट
- बिलासपुर ज़िला – 5 यूनिट के 2 यूनिट
दूसरा सरकारी दबाव में प्रशासनिक अधिकारियों ने नीलामी करने में गड़बड़ियाँ की जिससे कई जिलों में बोली रिज़र्व दाम के बराबर या कम में ही चली गई और चहेतों को लाभ देने के लिए सरकारी ख़ज़ाने को चूना लगाने का काम किया गया।
नीलामी के दौरान की गई गड़बड़ियों का उदाहरण ज़िला बिलासपुर से मिलता है जिसमे जब ऑनलाइन किसी ने बोली नहीं दी तो रात के अंधेरे में ही टेंडर डलवा लिया गया, जिसकी वीडियो (video) सन्लगित और इसमें तो एक महिला अधिकारी कैश (cash) लेते हुए भी नज़र आ रहीं हैं। आवश्यकता है कि ज़िला बिलासपुर समेत अन्य ज़िलों में भी नीलामी की इस प्रक्रिया की जाँच हो।
26 जुलाई 2024 को पानीपत पुलिस ने पांवटा साहिब स्थित शराब की फैक्ट्री से 970 शराब की पेटियों को अवैध रूप से बिहार को ले जाते हुए पकड़ा, जबकि बिहार में शराब बैन है। यही नहीं, ट्रक में शराब की पेटियों को चूने की 34 बोरियों से ढक कर ले जाया जा रहा था। चूने के बिल और ट्रक की नंबर प्लेट भी नकली थी। इस संबंध में पानीपत पुलिस ने एफ.आई.आर. भी दर्ज की और हिमाचल प्रदेश पुलिस प्रशासन को आगामी करवाई के लिए प्रेषित किया परंतु सरकारी दबाव के कारण आज तक न तो पुलिस प्रशासन ने कोई करवाई की और न ही आबकारी एवं कराधान विभाग ने। शराब माफिया का दबाव इस मामले में भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।उल्टा इस घटना के बाद भी इस फैक्ट्री से अवैध ढंग से शराब ले जाती गाड़ियाँ उत्तराखंड व अन्य राज्यों में पकड़ी।
* प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने हिमाचल में बड़ी कार्रवाई करते हुए नालागढ़ स्थित शराब कंपनी की 9.31 करोड़ रुपए की अचल संपत्ति अस्थायी रूप से जब्त की है। ईडी ने मैसर्ज काला अंब डिस्टिलरी एड ब्रीवरी प्राइवेट लिमिटेड नालागढ़ की 5.31 करोड़ रुपए की संपत्ति (फैक्टरी और भवन के साथ एक औद्योगिक भूखंड शामिल), सहित अरुणाचल प्रदेश के होलोंगी गांव में चार करोड़ की 22504 वर्ग मीटर भूमि कारखाने और भवन को जब्त किया हैं। ईडी ने यह कार्रवाई बिहार में अवैध रूप से – शराब की आपूर्ति के एक मामले में धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) 2002 के – प्रावधानों के तहत की है। हिमाचल प्रदेश में बाहर के राज्यों से भी अवैध रूप से शराब लाकर बेची जा रही है जिससे सरकारी खजाने को भारी नुकसान पहुंच रहा है।
* वर्तमान सरकार पर यह भी आरोप है कि शराब नीति में बदलाव की अब शराब की बोतल पर Maximum Retail Price (M.R.P.) लिखने की बजाए Minimum Sale Price (M.S.P.) लिखा जा रहा है, जिस का लाभ उठाकर शराब के ठेकेदार मनचाहे दामों पर शराब की बिक्री कर रहे हैं। जिससे चहेते ठेकेदारों को तो लाभ मिल रहा है परन्तु सरकारी खजाने को चूना लगाया जा रहा है।
खनन माफियाः
हि. प्र. की सुक्खु सरकार के समय खनन माफिया का सरकारी सरंक्षण में इतना दबाव बढ़ गया है कि सरेआम अवैध खनन होता है और प्रशासनिक अधिकारी चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते। बद्दी में वहाँ की एस पी का लंबी छुट्टी पर चले जाना इस आरोप की पुष्टि करता है।
आपदा के समय सरकार ने कांगड़ा जोन के सभी स्टोन क्रशर बंद करने के निर्देश दे दिए परंतु मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र नादौन में उनके भाई व मित्रों के स्टोन क्रशर चलते रहे। अवैध खनन कर इन्होंने सभी सरकारी कामों पर ऊंचे दाम पर रेत बजरी सप्लाई किया और मुख्यमंत्री ने अन्य मामलों की तरह इसमें भी अपने मित्रों को अनैतिक ढंग से लाभ पहुंचाया। हमारे इस आरोप की पुष्टि ई. डी. (E.D.) द्वारा रेड कर मुख्यमंत्री के दो करीबी लोगों की गिरफ्तारीयाँ होने से मिलती है।
यही नहीं अवैध खनन कांगड़ा, ऊना, बिलासपुर, सोलन व सिरमौर ज़िलों के सीमावरती क्षेत्रों में बेरोक-टोक हो रहा है। सरकारी सरंक्षण से खनन माफिया इतना हावी है कि साथ लगते पंजाब की तुलना में रेत बजरी महँगा मिल रहा है, मगर प्रशासन कोई करवाई नहीं कर रहा है।
ज़िला मंडी की ब्यास नदी, पोंटा साहिब की यमुना और काला अम्ब की मारकण्ड में तो सरकारी आदेश से ही अवैध रूप से भारी मात्रा में खनन हुआ और आज ये नदियाँ अपनी दिशाएँ बदल रही हैं जिससे आने वाले समय में किसी आपदा की संभावना पैदा हो रही है।
वन माफिया
वर्तमान सरकार ने प्राइवेट ज़मीन से पेड़ काटने को अपने चहेतों को लाइसेंस दे रखे हैं और वे ठेकेदार एक तो जिन 9 किस्म के पेड़ों के कटान की परमिशन है उनके अलावा अन्य किस्म के पेड़ों को भी काट रहे है और दूसरा प्राइवेट ज़मीन के अलावा सरकारी जंगलों से भी अवैध रूप से कटान किया जा रहा है। सरकारी दबाव के कारण वन विभाग के अधिकारी मूकदर्शक बन गए हैं। सिर्फ गगरेट में पिछले दिनों 50 गाड़ियाँ अवैध कटान कर लकड़ी ले जाती हुई पकड़ी गई जबकि अवैध कटान हर क्षेत्र में सरकारी संरक्षण में सरेआम हो रहा है।
सरकारी जंगलों में अवैध रूप से खैर की कटान भी करवाया जा रहा है जिसके कारण प्रदेश की वन सम्पन्दा ही तबाह हो रही है। सरकारी जंगलों में अवैध रूप से खैर की कटान भी करवाया जा रहा है जिसके कारण प्रदेश की वन संपदा ही तबाह हो रही है।
हिमाचल ऑन सेल (Himachal on Sale):
वर्तमान प्रदेश सरकार में बड़े पैमाने पर हिमाचल प्रदेश की संपत्तियों को बेचना शुरू कर दिया है और पर्यटन निगम इसका एक उदाहरण है। पर्यटन निगम के कर्मचारी संघ ने सेवानिवृत कर्मचारियों की देनदारियों को लेकर एक मामला उच्च न्यायालय में दर्ज किया जिसमें जानबूझकर पर्यटन निगम ने अदालत के आदेश पर जो रिपोर्ट अदालत में रखी उसमे पर्यटन निगम के उन 18 होटलों को घाटे में दर्शा दिया जो प्राइम स्थानों पर चल रहे हैं। अदालत द्वारा पूछे जाने पर की पर्यटन निगम इन्हें कैसे लाभ में लाएगा, सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया, जिसके परिणाम स्वरूप अदालत ने इन होटलों को बंद करने के आदेश दे दिए, और अभी मामला स्टे पर है परंतु आरोप यह है की सरकारी वकीलों ने मामले की पैरवी इसलिए ढंग से नहीं की ताकि बंद होने पर इन होटलों को अपने चहेतों को बेचा जा सके। हमारे इस आरोप की पुष्टि मुख्यमंत्री द्वारा द ट्रिब्यून को दिए साक्षात्कार से मिलती है
हि. प्र. के माननीय उच्च न्यायालय ने 13 जनवरी 2023 को Seli Hydro Electric Power Co Ltd द्वारा हिमाचल सरकार के ऊर्जा विभाग पर दायर एक मामले में सरकार को उक्त कंपनी को 64 करोड़ रु. जमा करवाने के निर्देश थे परंतु सरकार द्वारा यह राशि न देने के कारण अब 18 नवंबर 2024 को उच्च न्यायालय ने दिल्ली स्थित हिमाचल भवन को उपयोक्त कंपनी के साथ अटैच कर उसे कुर्क करने के आदेश दे दिए। इससे प्रतीत होता है कि सरकार ने जानबूझ कर पैसा जमा नहीं करता ताकि हिमाचल भवन किसी चहेते मित्र को दिलाया जा सके। चौतरफ़ा विरोध सुन अब शायद प्रदेश सरकार यह पैसे जमा करवाये।
लोक निर्माण विभाग बना भ्रष्टाचार का अड्डाः
* वर्तमान सरकार के समय लोक निर्माण विभाग भ्रष्टाचार का अड्डा बना है। मुख्यमंत्री और मंत्री की लड़ाई के बीच जहाँ विकास प्रभावित हो रहा है वहीं इस विभाग में भ्रष्टाचार के लिए भी दोनों के बीच प्रतियोगिता चल रही है। हमीरपुर व कांगड़ा जोन में मुख्यमंत्री सीधा हस्ताक्षेप कर अपने चहेतों को टेंडर दिलाने में लगे हैं। अगर उनमें चहेतों को काम नहीं मिलता तो टेंडर ही रद्द कर दिया जाता है। भरवाईं डिवीज़न में एक काम का टेंडर इसी कारण 10 बार रद्द हो गया।
कई डिविजनों में अपने मित्रों को काम देने के लिए अन्यों के टेंडर रद्द कर दिए जाते हैं। मंडी व शिमला जोन में मंत्री महोदय अपना सिक्का चलाने का प्रयास करते हैं परंतु कोशिश यह रहती है की येन-केन-प्रकेण उनके चहेतों को ही काम मिले और चहेते बिना काम किए बिल पेश कर पेमेंट लेने के लिए अधिकारियों के पास जाते हैं और भारी दबाव में कई बार असहाय होकर, अधिकारी भी ग़लत कार्य करने को अंजाम दे रहे हैं।
लोक निर्माण विभाग में घट रहे घोटालों का उदाहरण बंजार डिवीज़न का है 16 महीनों में 14 करोड़ रू. के 1809 टेंडर लगवाकर मलवा हटाने पर खर्च कर दिए, परंतु कई जगह यह मलवा हटाया ही नहीं गया। विधानसभा में मुद्दा उठाने पर भी सरकार ने जांच नहीं करवाई जिससे स्पष्ट है की यह घोटाला ही सरकार के सरंक्षण में घटा है। आपदा में चहेतों की मशीनें ही सड़कों की मुरम्मत करने के लिए लगाई गई, बिना काम किए बिल देकर पेमेंट ले ली गई और सड़कों की अभी तक मुरम्मत नहीं हुई। ऐसे अनेक उदाहरण प्रदेश में मिल जाएँगे।
भ्रष्ट अधिकारियों को सरंक्षण देने का आरोप
पिछली भाजपा सरकार के समय प्रदेश के मुख्य सचिव आइएएस अधिकारी राम सुभाग सिंह पर सुखविंदर सिंह सुक्खु जी ने विधायक रहते हुए विधानसभा के अंदर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे और आज उसी राम सुभाग सिंह को उन्होंने अपना मुख्य सलाहकार बना रखा है।
* जिस पुलिस अधिकारी फ़िरोज़ ख़ान पर बद्दी में एफआइआर दर्ज हुई थी और उच्च न्यायलय ने जिसके ख़िलाफ़ सख्त टिप्पणी की थी उसे इस सरकार ने ऊना में विजिलेंस विभाग में तैनात कर दिया है।
* जिस विक्रम महाजन ने नगर निगम पालमपुर में आयुक्त पद पर रहते हुए अवैध नक्शों को पास किया और विजिलेंस ने भी जिसे दोषी करार दिया था, उसे सरकार ने हि. प्र. चयन आयोग हमीरपुर में सचिव के पद पर तैनात किया है।
* जिस ड्रग इंस्पेक्टर कमलेश नायक पर भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच चल रही है, उसे स्वास्थ्य विभाग के असिस्टेंट ड्रग कंट्रोलर के पद पर बद्दी में लगा दिया है और बाकी वरिष्ट अधिकारियों से ज़्यादा क्षेत्र का काम देकर सम्मानित भी किया।
बैंक घोटाले
* कांगड़ा सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक ने वन टाइम सेटलमेंट पालिसी के नाम पर प्रभावशाली लोगों को लाभ पहुंचाया। ऊना सदर के पूर्व विधायक व पिछले लोकसभा चुनाव में हमीरपुर से कांग्रेस प्रत्याशी सतपाल सिंह रायज़ादा के 5 करोड़ 97 लाख रू. में से 3 करोड़ 15 लाख रू. माफ कर लाभ पहुंचाया। इसके अलावा भी अनेक प्रभावशाली लोगों को लाभ पहुँचाने के आरोप इस बैंक के अधिकारियों पर लगे हैं। आश्चर्य की बात तो यह है की जब तक इस पालिसी का पता आम आदमी को लगता, यह पालिसी बंद कर दी गई।
* हि.प्र. राज्य सहकारी बैंक की नोहराधार शाखा के सहायक प्रबंधक का भी 4 करोड़ रू. से अधिक का घोटाला सामने आया है परंतु सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री उसे बचाने में लगे हैं।
* 10 जुलाई 2024 को दी सुबाथु अर्बन को-ऑपरेटिव सोसाइटी में हुई करीब 18 करोड़ की धोखाधड़ी मामले में सुबाथु की पुलिस टीम ने गिरफ्तार किया है परंतु सरकार के कई कर्णधार उक्त आरोपी को बचाने में लगे हैं।
* राज्य सहकारी बैंक जंजेहली में भ्रष्टाचार का एक मामला उजागर हुआ है जिसमें जांच अभी चल रही है परंतु सरकार के कारणधार दोषियों को बचाने का काम कर रहे हैं।
देहरा राशन घोटाला
* हिमाचल प्रदेश राज्य खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम के देहरा स्थित राशन गोदाम में करीब एक करोड़ रुपये की कीमत के राशन का घोटाला हुआ। आरोपी राशन गोदाम इंचार्ज के जवाब से खाद्य एवं उपभोक्ता विभाग के अधिकारी संतुष्ट नहीं है। अब आरोपी गोदाम इंचार्ज से विभागीय दंड संहिता के अंतर्गत गायब हुए राशन की बाज़ारी कीमत के अनुसार दोगुना जुर्माना वसूला जाएगा। फिलहाल गोदाम इंचार्ज को देहरा स्थित गोदाम से हटाकर जिला मुख्यालय में तैनात किया गया है। राज्य खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम की देहरा में राशन गोदाम है, जहाँ से क्षेत्र की 100 से अधिक उचित मूल्य की दुकानों के लिए सार्वजनिक राशन वितरण प्रणाली के अंतर्गत दालें, चीनी, नमक, तेल, गंदम, आटा और चावल समेत अन्य खाद्य सामग्री पहुँचती है। लेकिन बीते माह गोदाम से करीब एक करोड़ क़ीमत का राशन गायब हो गया। गोदाम में इस राशन की एंट्री है, लेकिन उचित मूल्य की दुकानों पर यह राशन नहीं पहुँचा। डिपो संचालकों ने जब विभाग से इस बात की शिकायत की तो यह घोटाला उजागर हुआ ।
ग्रीन एनर्जी प्रोजेक्ट घोटाला
* प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खु अक्सर मंचों पर ग्रीन एनर्जी को लेकर बड़े-बड़े दावे करते हैं, लेकिन प्रदेश के ऊना जिला के पेखुवेला में लगे 32 मेगावाट के ग्रीन एनर्जी प्रोजेक्ट को लेकर बड़ा गोलमाल हुआ है। इस प्रोजेक्ट का उद्घाटन सीएम सुक्खु ने 15 अप्रैल 2024 को किया था और इस पर 220 करोड़ रुपय खर्च हुए। ऐसा ही एक प्रोजेक्ट जो 35 मेगावाट का गुजरात में लगा है उसकी लागत 144 करोड़ रुपय है। वहीं, गुजरात में इस प्रोजेक्ट का निर्माण करने वाली कंपनी 10 साल तक प्रोजेक्ट की मुरम्मत और रखरखाव करेगी जबकि हिमाचल में लगे इस प्रोजेक्ट की मुरम्मत और रखरखाव कंपनी मात्र 8 साल तक करेगी। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि प्रोजेक्ट की इतनी ज़्यादा लागत कैसे हुई? क्या इसमें भी भ्रष्टाचार हुआ है।
क्रूज घोटाला
* गोबिंदसागर झील में क्रूज उतारने में भी कथित तौर पर रिश्वत कांड का मामला उजागर हुआ है। इस रिश्वत कांड से एम. डी. एडवेंचर कंपनी के पार्टनर रहे गौरव कुमार ने सरकार के एक प्रभावशाली मंत्री और जिला के प्रशासनिक अधिकारियों को 11 मई 2024 को मोरनी हिल्स में और कुछ दिन बाद घुमारवीं रेस्ट हाउस में लाखों रुपय रिश्वत देने का आरोप लगाया है। यही नहीं, गोबिंदसागर झील में उतारे गए क्रूज घटिया स्तर के हैं जिसके कारण कई दुर्घटनाएँ होते होते बची हैं। आरोप तो यह भी है कि यह क्रूज संबंधित अधिकारी से अनुमति लिए बिना ही चल रहे हैं और इस संबंध में शिकायत भी संबंधित विभाग के अधिकारियों के समक्ष दर्ज की गई है।
औद्योगिक क्षेत्र में घोटाला
बद्दी औद्योगिक क्षेत्र के अंतर्गत मुख्य संसदीय सचिव रहे विधायक की पत्नी कुलदीप कौर ने M/S czar faucets Itd. और M/S Om Stainless Steel नाम की दो फैक्ट्रियाँ ख़रीदी और कुछ माह बाद ही 10 गुना ज़्यादा दाम पर बेच दी। अब प्रश्न यह उठता है कि उद्योग विभाग ने किस के दबाव में इन औद्योगिक इकाइयों को इस तरह बार-बार बेचने की अनुमति दी और क्या इस ख़रीद-फरोख्त में काले धन का इस्तेमाल कर सरकारी ख़ज़ाने को नुक़सान पहुंचाया । जानकारी मिली है कि इसकी अंतिम स्वीकृति तो मुख्यमंत्री ने स्वयं दी है।
पर्यटन निगम की गड़बड़ी
पर्यटन निगम मुख्यमंत्री के विधान सभा क्षेत्र नादौन में एशियन विकास बैंक से क़र्ज़ लेकर पंच सितारा होटल बना रहा है जिसमे शुरू से ही भ्रष्टाचार की बू आ रही है। एक तो उस होटल के निर्माण का टेंडर L1 की बजाय L2 को दिया गया। दूसरा, जिस ज़मीन पर होटल बनना था उसपर अदालत से स्टे होने कि बावजूद प्रशासन ने छुट्टी वाले दिन ज़मीन को समतल करने का काम किया जो कि जनता में चर्चा का विषय बना कि आख़िर किसके दबाव में टेंडर देने में गड़बड़ी की गई और किसके सरंक्षण में कोर्ट के स्टे के बावजूद ज़मीन समतल की गई। चर्चा यही है कि मुख्यमंत्री स्वयं यह सब करवा रहे हैं। वैसे नादौन में पंच सितारा होटल आवश्यक भी है या नहीं, इस बात पर भी प्रश्न चिन्ह खड़ा किया जा रहा है। क्या इस होटल को भी बाद में अपने मित्रों को देने की योजना तो नहीं?
आउटसोर्स घोटाला
* हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार में ट्रामा सेंटर में मैन पॉवर उपलब्ध करवाने के नाम पर घोटाला हुआ। डेढ़ साल से बंद पड़ा आईजीएमसी का नवनिर्मित ट्रामा सेंटर सिर्फ कागजों में चल रहा था और वहां पर अलग-अलग समय में सपोर्टिव और पैरामेडिकल स्टाफ की नियुक्ति ठेकेदार के माध्यम से कर दी गई थी। अपने चहेतों को लाभ दिलवाने के लिए सभी कायदे कानून ताक पर रख दिए गए। एक बंद पड़े ट्रामा सेंटर में सैकड़ों कर्मचारी नियुक्ति की गई और बिना एक भी मरीज का इलाज किए ट्रामा सेंटर के मैन पॉवर के नाम पर दो करोड़ तीस लाख का बिल सरकार पर लाद दिया गया।
मैंन पॉवर के लिए आने वाले खर्च को केंद्र सरकार द्वारा उठाया जा रहा है। यह केंद्र द्वारा जनहित के लिए भेजे गए पैसों की खुलेआम लूट है। फाइनेंस प्रूडेंस और फाइनेंस डिसिप्लिन के नाम पर कर्मचारियों का वेतन और पेंशनधारकों की पेंशन रोकने वाले पाले मुख्यमंत्री की नाक के नीचे इस तरह से जनहित के काम में आने वाले पैसों को अपने चहेतों में बाटा जा रहा है। आउटसोर्स एजेंसी के माध्यम से अभी नर्सों की आउटसोर्स पर भर्ती होनी थी, उसमें भी सरकार के दलाल प्रार्थियाँ से भर्ती करवाने की एवज में लाख-लाख रुपए ले रहे थे, परंतु मामला अदालत में जाने से भर्तियाँ अभी तक नहीं हो पाई।
कबाड़ घोटाला
गुम्मा पेयजल परियोजना से लाखों का तांबे और कांसे का कबाड़ गायब हो गया है और कंपनी ने नगर निगम को घटना की भनक नहीं लगने दी। राजधानी की सबसे बड़ी गुम्मा पेयजल परियोजना से तांबे और कांसे का कई क्विंटल कबाड़ गायब हो गया है।
* औद्यगिक क्षेत्र बद्दी, बरोटीवाला, नालागढ़, काला अम्ब, ऊना, पांवटा साहिब आदि में भी कबाड़ माफिया सरकारी संरक्षण में फल-फूल रहा है, सरेआम उद्योगपतियों को डराया धमकाया जा रहा है और मनमर्जी के दाम पर स्क्रैप की बिक्री हो रही है। कई बार तो यह कबाड़ माफिया गुंडागर्दी पर भी उतारू हो जाते हैं और कई जगह गोलियां तक चल गई मगर प्रशासन चुपी साधे रखता है।
टेंडर घोटाला
* हिमाचल प्रदेश मार्केटिंग बोर्ड में केंद्र सरकार से आए लगभग 7 करोड़ के मंडियों को डिजिटलाइज करने के टेंडर को लेकर भी सवाल खड़े हुए हैं। मार्केटिंग बोर्ड के एम.डी. की अध्यक्षता वाली कमेटी ने टेंडर डालने वाली कंपनियों में से जिस कंपनी को टेक्निकल आधार पर रद्द किया था, प्रदेश सरकार के कृषि सचिव ने उसी कंपनी को टेंडर दे दिया था।
भारतीय जानता पार्टी नेताओं द्वारा प्रेस वार्ताओं के माध्यम से इस मुद्दे को उठाने के बाद सरकार ने यह टेंडर रद्द कर दिया था।
इसी तरह बिजली बोर्ड में 7 शहरों में बिजली के ढांचागत विकास को लेकर केंद्रीय योजना के तहत 175.73 करोड़ रू. आये थे जिस कार्य हेतु मात्र एक कंपनी ने ही टेंडर भरा और उसका रेट 40% ज़्यादा, यानी 240.84 करोड़ रू. था।
वित्त विभाग के अधिकारियों की लिखित आपत्ति के बावजूद बिजली बोर्ड के अधिकारियों ने यह सिंगल टेंडर पारित कर दिया, जिसका विरोध भाजपा के नेताओं ने विधानसभा के अंदर एवं बाहर प्रभावी ढंग से किया जिसके कारण प्रदेश सरकार ने यह टेंडर भी रद्द कर दिया। लोक निर्माण विभाग में पूरे प्रदेश के अंदर टेंडरों की बंदरबांट हो रही है। भाई-भतीजावाद के आधार पर सरकार के करणधारों के निर्देश पर ही लोक निर्माण अधिकारी काम दे रहे हैं। पूरे प्रदेश से इसकी शिकायतें मीडिया के माध्यम से प्रचारित होती रही हैं।
* इसी तरह, जल शक्ति विभाग में भी कई डिविजनों से टेंडर प्रक्रिया में अनियमितताएँ बरतने के आरोप लगे हैं। शिमला जल प्रबंधन निगम द्वारा शिमला शहर में 24 घंटे पेय जल आपूर्ति हेतु वर्ल्ड बैंक से स्वीकृत प्रोजेक्ट के 450 करोड़ में हुए टेंडर को रद्द कर अब सरकार ने दोबारा टेंडर कर, 872 crore में यह काम दिया। प्रश्न तो खड़ा हो ही गया कि आख़िर ऐसा क्यूँ किया गया।
आपदा में घोटाला
- हिमाचल प्रदेश में पिछले वर्ष भारी बरसात के कारण आई आपदा में केंद्र सरकार द्वारा दिए गए 1782 करोड़ रुपये और जानता द्वारा आपदा राहत कोष में दिए गए 251 करोड़ रुपये की धनराशि का जमकर दुरुपयोग हुआ। प्रदेश सरकार के मंत्रियों, विधायकों और यहाँ तक की जनता द्वारा हारे-नकारे लोगों ने अपने चहेतों को इस राशि को बांट दिया। विधानसभा के अंदर व बाहर बार बार मामला उठाने पर सरकार किसी तरह की जांच करने की जहमत नहीं उठा रही क्योंकि सरकार की सहमति से इस राशि की बंदरबाँट हुई और आपदा के कारण से वास्तविक रूप से प्रभावित लोग केंद्र की ओर से भेजी इस राशि से वंचित रह गए, जिसकी ज़िम्मेदार सिर्फ और सिर्फ़ यह सुक्खु सरकार है।
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