शिमला। भाजपा के तेजतर्रार व पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल खेमे के नेता राजीव बिंदल आरएसएस और भाजपा आलाकमान के एक खेमे से अपने रिश्तों के दम पर बेशक प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बनने में कामयाब हो गए हो लेकिन वह ढाइ महीने बाद भी भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी का गठन करने में कामयाब नहीं हो पाए हैं। वह अप्रैल महीने के आखिरी सप्ताह में प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बन गए थे लेकिन वह जुलाई महीने के दूसरे सप्ताह की शुरूआत तक भी अपनी कार्याकारिणी गठित नहीं कर पाए।
यह सब तब है जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नडडा हिमाचल से ही है। उनके अपने ही राज्य में भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी का ढाइ महीने तक गठन न होना अपने आप में कई सवाल लिए हुए हैं।
कार्यकारिणी का गठन न हाने से साफ है कि प्रदेश भाजपा में बिंदल मंसूबों को सफल होने में पार्टी के भीतर जबरदस्त खींचतान हैं।
वह पूर्व की जयराम सरकार में भी प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनने में कामयाब हुए थे लेकिन जयराम खेमे ने उनके मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया व स्वास्थ्य घोटाले में उनके करीबी का नाम आने पर उन्हें विवादित कर दिया गया और उन्हें अपने पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया गया।
2000 से लेकर 2022 तक विधानसभा हलके बदलने के बावजूद बिंदल एक बार भी अपना चुनाव नहीं हारे थे। लेकिन जयराम सरकार में भाजपा के भीतरी दंगल के चलते वह 2022 का विधानसभा चुनाव हार गए।
इस हार में पार्टी की भीतरी जंग का ज्यादा हाथ रहा ऐसा भाजपाइयों का भी मानना हैं।
हार से अपने राजनीतिक अस्तित्व पर आए संकट से निकलने के लिए उन्होंने अपना जुगाड़ लगाया और पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के बेहद करीबी,सिरमौर से दलित नेता व सांसद सुरेश कश्यप को भाजपा अध्यक्ष पद से हटवाने मे कामयाब हो गए और इस पद पर खुद काबिज हो गए।
समझा जा रहा था कि नगर निगम शिमला के चुनावों में वह अपना कुछ जलवा दिखा पाएंगे लेकिन भाजपा का वह जीत नहीं दिला पाए। साफ है कि वह प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष तो बन गए है लेकिन प्रदेश भाजपा की कमान कहीं और ही हैं। ढाइ महीने बाद भी कार्यकारिणी का गठन न कर पाना इसकी जिंदा मिसाल हैं।
कहा जा रहा है कि कार्यकारिणी गठन को लेकर उनके हाथ बांध दिए गए हैं। पार्टी में उनका विरोधी खेमा उन्हें आसानी से करवट तक नहीं लेने दे रहा हैं।
भाजपा अब कांग्रेस की राह पर हैं। कायदे से तो भाजपा अध्यक्ष से लेकर बाकी तमाम पदाधिकारियों का नियुक्ति चुनाव के जरिए होनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब नामिनेट करने का रास्ता अख्तियार किया गया है और अगर कार्यकारिणी गठित की भी जाती है तो उन्हें नामिनेट ही किया जाएगा। इस सबकी मंजूरी आलाकमान देगा। साफ है बिंदल के हाथ ज्यादा कुछ नहीं हैं। आलाकमान ने सब कुछ अपने हाथ में रखा हैं और प्रदेश के जिन नेताओं का आलाकमान के साथ जुगाड़ है वह बिंदल के फैसलों को कब पलटवा दे कोई नहीं कह सकता।
कहा जा रहा है कि बिंदल एक कठपुतली पार्टी अध्यक्ष न बन कर रह जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
उन्होंने अपनी राजनीतिक लाइन भी कुछ इसी तरह से तय कर दी है वह किसी भी तरह की जंग से दूरी बना चुके है व आलाकमान के इशारों पर चलने के विकल्प उन्होंने चुन लिया हैं।आलाकमान को हिमाचल की राजनीतिक स्थितियों की जमीनी हकीकत कितनी है ये विधानसभ चुनावों में जगजाहिर हो ही चुका हैं।
जानकारी के मुताबिक आलाकमान को एक लंबी फेहरिस्त भेजी गई है और इनमें से किसको बिंदल की कार्यकारिणी में जगह मिलती है और किस खेमे का वर्चस्व इस कार्यकारणी में रहता है ,यह देखना लाजिमी है
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