शिमला। सुक्खू सरकार के फैसलों ने प्रदेश के कर्मचारियों में उथल पुथल मचा रखी है । इसी तरह की स्थितियां 1990 में तत्कालीन भाजपा सरकार के मुखिया शांता कुमार के शासन में उभरी थी और तब भी बिजली बोर्ड के कर्मचारियों ने शांता के खिलाफ ऐसा मोर्चा खोला था कि वो दोबारा सत्ता में लौट नहीं पाए।
प्रदेश में वो दौर दोबारा लौटने की राह पर है। बिजली बोर्ड में सात सौ पदों को समाप्त करने और दर्जनों तबादले करने के बाद बिजली बोर्ड कर्मचारी उबाल पर है।
कहीं ये उबाल प्रदेश के बाकी विभागों, निगमों और बोर्डों के कर्मचारियों को भी लामबंद न कर दे । जबकि दूसरी ओर सचिवालय के कर्मचारी पहले ही सरकार से खार खाए हुए हैं।
उधर, मुख्यमंत्री के कांगड़ा के नगरोटा बंगवा से सखा विधायक व पर्यटन विकास बोर्ड के अध्यक्ष आर एस बाली पर्यटन निगम के मुख्यालय को शिमला से कांगड़ा ले जाने का दांव चल चुके हैं। वो अपनी कांगड़ा की राजनीति में लीन हो गए है। ये कर्मचारी भी मौके की तलाश में है कि कब सड़कों पर उतरने की स्थितियां पैदा हो। हालांकि बाली से कोई वार्ता हो चुकी है।
इसी तरह से कई कर्मचारी संगठन नौकरशाहों के क्रियाकलापों को देखकर नाराज चल रहे है। उधर,बेरोजगारों की भीड़ दूसरी ओर से ताक में है।
ऐसे में बिजली बोर्ड के कर्मचारियों में जिस तरह का आक्रोश लंबे से पनप रहा है वो अब ज्वालामुखी बनने के कगार पर पहुंच गया है। बिजली बोर्ड में पुरानी पेंशन की बहाली भी नहीं हुई है। उल्टे पदों को समाप्त करने व कर्मचारियों को नौकरी से निकालने का अभियान सुक्खू सरकार ने छेड़ रखा है और कर्मचारियों को भरोसे में नहीं लिया जा रहा है।
जिस तरह की स्थितियां बन रही हैं उससे लग रहा है कि कहीं बिजली बोर्ड के कर्मचारी सालों बाद दोबारा प्रदेश में कर्मचारियों के आंदोलन का अगुवा न बन जाए और जिस तरह का हश्र पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार का हुआ था उसी तरह का हश्र सुक्खू की राजनीति का न कर दे।
कर्मचारियों के अलावा प्रदेश की जनता का रूझान भी सुक्खू सरकार के क्रियाकलापों को लेकर नकारात्मक दिशा में आगे बढ़ रहा है।
विपक्षी पार्टी भाजपा तो है ही मौके की तलाश में कि कब कोई बड़ा संगठन सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले और वो पीछे से उसके विरोध को हवा दें। हालांकि कर्मचारियों को भाजपा से भी ज्यादा उम्मीदें नहीं हैं।इसीलिए इन कर्मचारियों का रूझान भाजपा की ओर भी ज्यादा नहीं है।
बिजली बोर्ड कर्मचारियों व अधिकारियों के संयुक्त मोर्चा ने पहले ही सरकार के कर्मचारी विरोधी फैसलों के खिलाफ मोर्चा खोल ही दिया हैं। अब देखना है कि आने वाले दिनों में कर्मचारी किस रणनीति के तहत अपना आंदोलन जारी करते हैं और सरकार व उसके प्रबंधकों का क्या रुख रहता हैं।
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