शिमला। भारत में हर आधे घंटे में एक किसान आत्महत्या कर रहा है और इसका सबसे शर्मनाक पहलू ये है कि इस मसले पर देश के अभिजात्य वर्ग की नैतिकता व निष्ठा सवालों में है। इस दर से आत्महत्या इतिहास में कभी नहीं हुई है।किसानों की दशा व उनकी आत्महत्या के आंकड़ों को दुनिया के सामने लाकर नई बहस छेड़ने वाले देश के नामी पत्रकार पी साईनाथ ने ये खुलासा करते हुए देश में खेती की दशा पर संसद का दस दिन का स्पेशल सत्र बुलाने की मांग की है।मोदी सरकार के इस के उस दावे को कि वो 2022 तक किसानों की आय को दुगुना कर देंगे पूरी तरह फ्रॉड करार देते हुए उल्टा सवाल किया कि देश का कोई एक व्यक्ति उन्हें ये बता दे बजट में कोई प्रावधान व नीतिगत ऐसा कोई एक कदम उठाया गया हो जिसये ये आय दुगुनी होनी हो।
इसके अलावा जेटलीके बजट में मनरेगा कोइस बार आवंटित 38 हजार करोड़ राशिको अब तक की सबसे ज्यादा राशि के जेटली के दावो को भी फ्राड करार दिया व कहा कि जब 2005-06 से योजना शुरू हुई थी तो 40 हजार रुपए का प्रावधान किया गया था। अबकी बार 38 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। इसमें भी साढ़े छह हजार करोड़ पिछले साल का बकाया है। मंहगाई दर को मिला लें तो ये 27 -28 हजार करोड़ रुपए ही बनाता है।
राजधानी शिमला में पिछले तीन दिनों से रह रहे साईनाथ ने कहा कि खेती को पब्लिक सर्विस घोषित किया जाना चाहिए।उन्होंने देशव्यापी किसान आंदोलन चलाने की वकालत करते कहा कि 1991 से लेकर अब देश भर के किसानों की जिंदगी मुश्किल में आ गई है।ये सिथति जल्द नहीं बदली तो खेती संकट व किसानों को तबाह होने से कोई नहीं बचा सकता।पिछले बीस सालों में सरकारी आंकडा़ें के मुताबिक ही तीन लाख किसान आत्महत्या कर चुके है। लेकिन ये आंकड़ा सही नहीं है।ये आतमहत्या इससे कहीं ज्यादा है और अब तक की सरकारें खेती संकट पर कुछ नहीं कर रही है।
राजधानी शिमला में पत्रकारों से रूबरू हुए देश के नामी अंग्रेजी अखबार ”द हिंदू” के पहले रूरल एडिटर पी साईनाथ ने कहा कि हिमाचल के कुल 9 प्रतिशत हिस्से में खेती होती है और इसमें भी 85 फीसद किसान लघु व सीमांत किसान है।ऐसे में खेती व किसानों पर संकट गहरा गया है। इसके उपर तूर्रा ये है कि हाेटलों, रिजार्ट्स और उद्योगों के लिए खेती योग्य जमीन का अधिग्रहण कर किसानों की सिथति को और खराब किया जा रहा है।हिमाचल के संदर्भ में उन्होंने कहा कि यहां की सिथति अजीब है तो परिणाम भी अजीब ही आएंगे।हाईकोर्ट के आदेशों पर सरकार की ओर सेचलाए जा रहे अतिक्रमण हटाओं अभियान को लेकर उन्होंने कहा कि अतिक्रमण कौन कर रहा है ,इसकी परिभाषा तय करनी होगी।साईनाथ जिला शिमला के कुई खदराला गांवों में भी गए व कहा कि जिस गांव में वो गए वो पूरा गांव दलितों का है व उनके पास एक बीघा जमीन हैजिस पर सेब के पेड़ लगे है।उन्हें भी काटा जा रहा है।
उन्होंने कहा कि किसानों के लिए मिलने वाले कर्ज अंबानी जैसे रइसों के बिजनेस में लग गया है। एग्री बिजनेस बड़ा धंधा बन गया है और जोकर्ज किसानों को मिलना चाहिए था वो बड़े बिजनेस घरानों को हसतातंरित हो गया है। इससे पहले वीरवार को बचत भवन में लेक्चर देते हुए उन्होंने कहा कि देश के टॉप पांच अरबपति एग्री बिजनेस से जुड़े है और सारे बैंक उन्हें कर्ज दे रहे है।ऐसे में किसान एक बैंक से कर्ज नहीं ले रहा हैबलिक वो साहूकारों से भी कर्ज ले रहा है। किसान इस तरह कर्ज के मकड़जाल में फंस गया है।आत्महत्या तो इस संकट की एक छाया है इस संकट के बहुत से पहलू है।
किसानों की आत्महत्याओं के मानसून से संबंध को लेकर उन्होंने कहा कि कि पिछले बीस सालों में जब मानसून खराब रही आत्महत्याएं तब भी बहुत ज्यादा हुई जब खराब हुई तब ये आंकडा बहुत ज्यादा रहा और जब मानसून ठीक रही तब भी किसानों की आत्महत्याएं बहुत ज्यादा हुई।खेती करने की लागत बहुत तेजी से बढ़ गईहै लेकिन क्या खेती से आय में भी उतनी ही बढ़ोतरी हुई है,ये उल्टा सवाल उन्होंने उछाल दिया।उन्होंने कहा कि 1991 में डीएपी खाद की एक बोरी 150 से 180 रुपए में आ जाती थी।2010 में ये 900 रुपए की हो गई और आज इसकी कीमत 15-18सौ रुपए हो गई है।
साईनाथ ने सरकार के कृषि को मदद देने वाले ढर्रे पर सवाल उठाते हुए कहा कि देश भर के किसान केंद्र कृषि औजारों को बनाने वालों के कमिशन एजेंट बन गए है।कृषि विवि कारपोरेट के कारोबार को बढ़ाने में मददगार हो गई है।सरकार फूड क्रॉप से कैश क्रॉप पैदा करने केलिए किसानों को प्रोत्साहित कररही है और इसका सबसे दुखद पहलू ये है कि अधिकांश आत्महत्याएं वही किसान कर रहे है जो कैश क्रॉप उगा रहे है।उन्होंने कहा कि किसानी बिजनेस नहीं है ये आजीविका चलाने के लिए है।
सबसे ज्यादा कृषि कर्ज अमीरों की झोली में जा रहा है।खेती करने के अलावा खेती से जुड़ा सारा कारोबार बड़े कारोबारियों के हाथ में चला गया है।खाद ,बीज,कृषि औजार और खेती की कीमत तक में से किसी भी चीज पर किसान का नियंत्रण नहीं है।विजय माल्या 9000हजार करोड़ कर्ज लेकर फराार हो जाए तो उसे कुछ नहीं किया जाताआम किसान छह सात हजार के कर्ज को न चुकाने पर जेल जा सकता है। देश के करीब दस राज्यों में कर्ज न चुकाने पर जेल भेजने का प्रावधान है।
इससे पहले वीरवार को बचत भवन में दिए अपने लेक्चर में उन्होंने कहा कि देशमें 50प्रतिशत किसान नहीं है बलिक ये खेतीपर निर्भर है।पिछले बीस सालों में किसानों की संख्या में भारी कमी आई है।किसानों की संख्या में भारी कमी आई है।1991 से जेकर 2001 तक 72 लाख किसान कम हो गए।रोजाना 2000 किसान खेती छोड़ रहा है। उन्होंने सवाल खड़ा किया किखेती छज्ञेउ़ कर ये कहा जा रहे है।उन्होंपने कहा कि पिछले बीस सालों में गांवों से शहरों के लिएभााी विस्थापन हुआ है। बहुत से गांवों में बच्चे व बुढ़े ही रह गए है।
खेती के अलावा पानी का संकट बड़ा हो रहा है। उन्होंने कहा कि देश के 70 प्रतिशत पूंजीपतियों के पते मुंबई है लेकिल सबसे ज्यादा63 हजार आत्महत्याएं महाराष्ट्र में ही हुई है।यहांपर हर दिनहर आधे घंटे में एक किसान आत्महत्या कर रहा है।उन्होंने कहा कि पानी की समस्या मानसून की वजह से नहीं है बलिक ये मानव निर्मित है।जल संकट का देश के सामाजिक आर्थिक क्षेत्र पर प्रभाव पड़ा है और पानी का वितरण शहरों के लिए ज्यादा है गांवों के कम।महाराष्ट्र का उदाहरणदेते हुए उन्होंने कहा कि 53 फीसद पानी मुबंई,पुणे और थाने को वितरित किया जा रहा है।वहां भी लाइफ स्टाइल के लिए ज्यादा पानीखर्च हो रहा है। शहरों में बड़ी बिल्डि़गें बन गई है और हर फ्लोर पर स्वीमिंग पुल बना दिए गए है।जो किसान गांवों में पानी न होने की वजह से खेती छोड़ कर शहरों में आ गए हैवो शहरों में मजदूर बनकर स्वीमिंग पुल बना रहे है।
साईनाथ ने कहा कि फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन के मुताबिक दुनिभा कीआबादी 7अरब 25 करोड़ है ओर 14 अरब 14 करोड़ आबादी के लिए खाना है व इसे उन लोगों तक पहुंचाने की क्ष्मता भी है लेकिन शोषण के कारण दुनिया की बड़ी आबादी भूखमरी की शिकार है।उन्होंने कहा कि भारत के किसानों के पास फूड सुरक्षा नहीं है।उन्होंने कहा कि किसानों के हल के लिए एम एस स्वामीनाथन की सिफारिशों को लागू किया जाना चाहिए। स्वामीनाथन कमिश्न रिपोर्ट की मुख्य सिफारिश किसानों को कृषि उत्पादन की लागत व उस पर50 प्रतिशत ज्यादा राशि मुहैया कराने का प्रावधान है।लेकिन जब से ये रिपोर्ट सरकार के पास आई है तब से लेकर अब इस पर एक बार भीबहस नहीं हुई है।
उन्होंने मीडिया को लेकर कहा कि मीडिया ने खेती को कवर करना छोड दिया है देश के तीन बड़े चैनलों व तीन बड़े अखबारों में खेती की कवरेज कुल 0.35 प्रतिशत है।
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