शिमला। देश के बडे कारोबारी गौतम अदाणी समूह की कंपनी अदाणी पावर को 960 मेगावाट की जंगी थोपन पोवारी पन बिजली परियोजना की एवज में ब्रेकल एनवी की ओरसे जमा कराए 280 करोड रुपए लौटाने के प्रदेश हाईकोर्ट के एकल जज की पीठ के फैसले को क्या सुखविंद्र सरकार पलटवा पाएगी यह बडा सवाल हैं।
आज कार्यकारी मुख्य न्यायाधीशन्यायमूर्ति सबीना की खंडभ्पीठ में इस मामले की सुनवाई हुई और सरकार की ओर से समय मांगा गया। जबकि दूसरी ओर से कहा कि गया कि इस मामले में बहस हो चुकी है।खंडपीठ ने अब मामले की सुनवाई नौ मार्च को निर्धारित की हैं।
याद रहे 2022 के अप्रैल महीने में प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संदीप शर्मा की एकल पीठ ने 280 करोड रुपए की अप फ्रंट मनी को अदाणी पावर को दो महीने के भीतर लौटाने के तत्कालीन जयराम सरकार को निर्देश दिए। अगर दो महीने में यह रकम नहीं लौटाई गई तो सरकार को नौ फीसद ब्याज के साथ इस रकम को लौटाना था।
इस फैसले को सरकार ने खंडपीठ में चुनौती दीहै व रकम जमा कराने के निर्देश पर स्टे मांगा हैं। लेकिन सरकार को स्टे नहीं मिला हैं। इसके अलावा सरकार ने यह रकम भी जमा नहीं कराई हैं। उधर अदाणी ने अर्जी दायर की है कि इस एकल पीठ के फैसले को लागू किया जाए और ब्याज जब उसने पैसे जमा कराए थे(यानी 2008) से अदा किया जाए।
पिछली सरकार में इस मामले में बहस आदि हो गई थी। लेकिन दिसंबर में प्रदेश में कांग्रेस सरकार सत्ता में आ गई तो व आज मामले की सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता अनूप रत्न ने कहा कि उन्होंने तो इस मामले में अभी एक बार भी बहस नहीं की हैं। वह नए सिरे से इस मामले की पैरवी करना चाहेंगे।
इस पर अदालत ने नौ मार्च को सुनवाई निर्धारित कर दी हैं।
दिलचस्प है यह मामला
यह मामला अपनी तरह का अलग ही मामला हैं।
तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने 2007 में जिला किन्नौर में प्रस्तावित 960 मेगावाट के जंगी थोपन पोवारी पन बिजली परियोजना को नीदरलैंड की कंपनी ब्रेकल एन वी को आवंटित किया था। लेकिन तब भाजपा ने इस आवंटन ने धंधली के इल्जाम लगाए और ब्रेकल की ओर से समय पर अप फ्रंट मनी जमा नहीं कराया गया।
बोली में दूसरे नंबर पर अंबाणी समूह की कंपनी रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर थी। उसने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी कि ब्रेकल ने अप फ्रंट जमा नहीं कराया तो यह प्रोजेक्ट उसे दिया जाए । इस बीच ब्रेकल की ओर से हाईकोर्ट के दखल के बाद ब्रेकल के लेटर पैड पर अदाणी पावर ने यह अप फ्रंट मनी जमा करा दी। दूसरी ओर दिसंबर 2007 में प्रदेश में सत्ता बदल गई और पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की सरकार सता में आ गई । उसने ब्रेकल की ओर से बोली के दौरान जमा कराए दस्तावेजों की जांच कराई और उसे धांधलिया पाईं। लेकिन बाद में धूमल ने न जाने क्यों इस आवंटन को ब्रेकल को ही रहने दिया। धूमल सरकार के इस फैसले के खिलाफ रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने हाईकोर्ट में याचिका दायर करा दी और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और वी के आहुजा की खंडपीठ ने इस आवंटन को रदद कर दिया।
चूंकि यह अपफ्रंट मनी अदाणी पावर ने ब्रेकल कीओर से जमा कराया था तो अदाणी के मांगने पर सरकार ने इस पैसे को देने से इंकार कर दिया। लेकिन 2015 में वीरभद्र सिंह सरकार ने इस प्रोजेक्ट को रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर को दे दिया और फैसला लिया कि रिलायंस से मिलने वाले अप फ्रंट मनी से अदाणीकी रकम लौटा दी जाएगी।
वीरभद्र सिंह केबिनेट का यह फसला वैध था या अवैध इस पर न तो अदालत ने गौर किया और न ही सरकार की ओर से कुछ कहा गया। चूंकि यह रकम जब्त हो गई थी। बाद में 2017 में वीरभद्र सिंह सरकार ने खुद ही मान लिया कि इस रकम को लौटाने के मामले में कानूनी जटिलताएं है और यह ठेके के प्रावधानों के खिलाफ हैं व अपने 2015 के फैसले को वापस ले लिया।
इसके खिलाफ अदाणी पावर ने 2019 में जयराम सरकार में हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी व जयराम सरकार इस मुकदमें को हार गई। वह क्यों हारी यह जांच का विषय हैं। लेकिन अब सुक्खू सरकार के समक्ष चुनौती है कि वह इस फैसले को कैसे पलटवा पाती हैं।
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