शिमला।आपसी फूट व नॉन परफार्मेंस पर कड़ा रुख अपनाते हुए आम आदमी पार्टी ने हिमाचल प्रदेश की पार्टी की इकाई को भंग कर दिया है। आम आदमी पार्टी के आलाकमान का ये प्रदेश में पार्टी पर कब्जा जमाए बड़े नेता राजन सुशांत व उनके बाकी चेलों को बड़ा झटका है।लेकिन बड़ा सवाल यही है कि आखिर आलाकमान ने कार्यकारिणी को भंग करने का फैसला इतनी देर बाद क्यों लिया।
प्रदेश में चुनाव के लिए एक साल तीन महीने बचे है ऐसे में पार्टी 2017 का विधानसभा का चुनाव लड़ेगी इसमें संशय है।चूंकि चुनाव के बड़ी तैयारी कि जरूरत होती है व जमीन पर टीम व कार्यकर्ता होने चाहिए। जमीन पर ऐसा कुछ नहीं है।ऐसे में कार्यकारिणी को भंग करने का फैसला देरी से लिया गया। कमोबेश अक्तूबर-नवंबर 2017 में प्रदेश में आचार संहित लग जाएगी।इसलिए जमीन पर अब तक अधिकांश काम हो जाना चाहिए था।
ये फैसला भी तब लिया गया जब पार्टी के प्रदेश प्रभारी संजय सिंह के सामने सुदंरनगर में बूथ प्रभारियों की बैठक में पार्टी की बुरी स्थिति पर्दाफाश हुआ। तब रिपोर्टर्स आइ डॉट कॉम ने संजय सिंह से पूछा भी था कि जिस तरह की परफार्मेंस यहां देखने को मिल रही है,क्या ऐसे में प्रदेश इकाई में बदलाव किया जाएगा। हालांकि संजय सिंह ने इसका सीधा जवाब नहीं दिया था। सुंदरनगर के बाद शिमला में फिर पार्टी के नेता भिड़ गए। जबकि पार्टी को मजबूत करने का काम होना चाहिए था।लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
ऐसे में कोई न कोई फैसला तो लिया ही जाना था। सो पार्टी की कार्यकारिणी को भंग कर दिया गया है।अब बडा़ सवाल ये भी है कि पार्टी के संयोजक रहे राजन सुशांत क्या पार्टी में बने रहेंगे या वापस भाजपा में लौट जाएंगे।
जब से प्रदेश में पार्टी का गठन हुआ हैं तभी से इसकी स्थिति खराब रही है।लोगों को जोड़ने का काम ही नहीं हुआ। सभी पदाधिकारी खुद को सीएम समझ बैठे थे। युवा विंग हो या महिला विंग शुरू से ही डिफंक्ट रहे। फिर पीएसी भी बनाई गई। पीएएसी के सदस्यों के पास पार्टी चलाने को कोई मॉडयूल ही नहीं था।एक दूसरे पर हमला करतेे रहे। यहां तक कि आलाकमान को भी दूर रहने का आग्रह किया गया।आलाकमान ने पूरी कमान सुशांत के हाथ में दे दी लेकिन फिरभी कुछ नहीं हुआ। सुंदर नगर से पहले उना में पार्टी ने रैली कि जो बहुत बुरी तरह से फ्लाप रही । कायदे से कार्यकारिणी को उसी दिन भंग कर देना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं किया गया।इन दोनों जगह पार्टी की स्थितिअपमानजनक थी।
अब आलाकमान के पास भाजपा व कांग्रेस के दर्जनों वो नेता जिनका इन पार्टियों में राजनीतिक वजूद समाप्त हो गया है, हाजरियां भर रहे हैंं। अगर इनमें से किसी के पास भी पार्टी की कमान गई तो पार्टी का वही हाल होगा जो सुशांत की कमान में हुआ।
।आम आदमी पार्टी की कार्यशैली से ये साफ हो गया है कि पार्टी को वो व्यक्ति कभी नहीं चला सकते जो भाजपा व कांग्रेस से पार्टी में आए हों।चूंकि इन दोनोंं पार्टियों की कार्यशैैली अभिजात्यता का रंग लिए हुए है।इसलिए सुशांत यहां पार्टी को चलाने में सफल नहींं हुए।
पार्टी की प्रदेश इकाई के भंग होने सेेेे भ्रष्टाचार के जांचे झेल रहे मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह व नेता विपक्ष प्रेम कुमार धूमल के चेहरे खिल गए है। उन्हें कारनामों पर सवाल उठाने वाला अब फिलहाल कोई नहीं है। जो हैं भी वो उन्हीं के कुनबे के है।ऐसे में प्रदेश में तीसरे विकल्प का रास्ता फिलहाल बंद हो गया है।
ऐसे में अब ये देखना दिलचस्प हो गया है कि पार्टी प्रदेश में कैसा चेहरा उतारती है। सारा जिम्मा अब संजय सिंह को सौंपा गया है।वो पंजाब के चुनाव में व्यस्त है।
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