शिमला।सुक्खू सरकार की ओर से पूर्व की जयराम सरकार में सरकारी उपक्रमों को आवंटित चार बिजली परियोजनाओं को फ्री बिजली के मसले पर एसजेवीएनएल और एनएचपीसी से टेकओवर करने के फैसले के बाद अब कानूनी जंग शुरू हो गई हैं।
बीते रोज यानी दस अप्रैल 2025 को सरकार ने प्रदेश हाईकोर्ट में चंबा में निर्माणाधीन 500 मेगावाट के डुग्गर हाइडल पावर प्रोजेक्ट को टेक ओवर करने के अपने फैसले से अवगत करा दिया हैं। सरकार की ओर से कह दिया गया है कि इस मामले में भारत सरकार के बिजली सचिव की ओर से जो डुग्गर परियोजना पर अब तक एनएचपीसी का खर्च बताया गया है, उस बावत सरकार इसका दोबारा से मूल्याकंन यानी इवैल्यूएशन करना चाहती है और सरकार ने इवैल्यूटेर को नियुक्त करने का फैसला भी ले लिया हैं।
भारत सरकार के बिजली सचिव की 12 मार्च की चिटठी के मुताबिक एनएचपी ने अभी तक डुग्गर प्रोजेक्ट पर 107 करोड़ रुपए ही खर्च किए हैं और इसमें एफसी और इसी की मंजूरी प्रकिया में हैं।
न्यायमूर्ति तिरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति सुशील कुकरेजा की खंडपीठ में इस मामले की सुनवाई करते हुए जब एनएचपीसी का पक्ष जानना चाहा तो एनएचपीसी ने जवाब दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय मांग लिया। खंडपीठ ने एक सप्ताह का समय देते हुए मामले की अगली सुनवाई 24 अप्रैल को निर्धारित कर दी हैं।
याद रहे सुक्खू सरकार ने जयराम सरकार के समय आंवटित इस परियोजना से प्रदेश को मिलने वाली फ्री बिजली की शर्तों को बदलने का परमान जारी कर एनएचपीसी को कहा था कि वो 12, 18, 30, 40 फीसद फ्री बिजली देने की हिमाचल की पूर्व नीति के तहत ये बिजली दें अन्यथा सरकार इस प्रोजेक्ट को टेकओवर कर लेंगी।
याद रहे 7 नवंबर 2024 को सुक्खू और केंद्रीय ऊर्जा एवं शहरी मामलों के मंत्री मनोहर लाल खट्टर की उपस्थिति में एक बैठक आयोजित कर मुफ्त बिजली रॉयल्टी के संबंध में मुद्दे पर चर्चा की गई। इस बैठक में सुक्खू ने साफ कर दिया था यदि राज्य सरकार की ओर से अधिसूचित मुफ्त बिजली रॉयल्टी और अन्य शर्तें संघ या बिजली उत्पादकों को स्वीकार्य नहीं हैं, तो राज्य सरकार इन परियोजनाओं पर किए गए व्यय का भुगतान करने के बाद संबंधित परियोजनाओं सहित संबंधित परियोजनाओं को अपने अधीन करने का निर्णय ले सकती है।
इस बैठक के बाद बिजली मंत्रालय एवं अन्य हितधारकों के बीच विचार-विमर्श किया गया और 12 मार्च 2025 को केंद्रीय बिजली मंत्रालय की अोर से कहा गया कि या तो इन परियोजनाओं का काम देश हित में चलने दें या फिर अब तक जो भी खर्च हुआ है उसका ब्याज समेत भुगतान करने के बाद परियोजना को वापस लें लें। ।
इस बावत बीते रोज यानी 10 अप्रैल 2025 को अदालत में बता दिया गया कि प्रदेश सरकार ने एनएचपीसी को आवंटित डुगर (500 मेगावाट) जल विद्युत परियोजना को अपने अधीन लेने का निर्णय लिया है व इस परियोजना पर होने वाले वास्तविक व्यय का मूल्यांकन करने के लिए एक स्वतंत्र मूल्यांकनकर्ता नियुक्त करने का निर्णय लिया है।
अब इस मामले में एनएचपीसी की ओर से दायर किए जाने वाला जवाब तय करेगा कि ये प्रोजेक्टस भी क्या कानूनी जंग की भेंट चढ़ने वाले है या नहीं ।
याद रहे इस प्रोजेक्ट धूमल सरकार में 2009 में इस प्रोजेक्ट को टाटा पावरव सिंगापुर की कंपनी स्टेटका्रफट को आवंअित यिका गया था लेकिन इन्होंने इस पर कोई काम नहीं किया तो और 2019 में इस आवंटन को रदद कर दिया। टाटा पावर व सिंगापुर की कंपनी ने अपना अप फ्रंट प्रीमियम वापस मांग लिया व उसके पक्ष में अवार्ड भी हो चुका हैं।
उसके बाद इस परियोजना को प्रदेश व केंद्र में भाजपा की सरकार के दौरान एनएचपीसी को दे दिया गया लेकिन फ्री बिजली की फीसद जो पहले 12 सालों तक 12 फीसद,13 से 30 सालों तक 18 फीसद और 31 से 40 सालों तक 30 फीसद और 40 साल के बाद जब तक प्रोजेक्ट चलता है तब तक 40 फीसद रायल्टी प्रदेश को देने का प्रावधान था उसे बदल कर प्रोजेक्ट चालू होने के बाद पहले के दस सालों में प्रदेश को महज चार फीसद, 11 से 25 साल तक 8 फीसद और 26 से 40 तक 12 फीसद और 40 साल के बाद 25 फीसद रायल्टी प्रदेश को देने का प्रावधान कर दिया। सुक्खू सरकार ने इसे प्रदेश हित के खिलाफ बताते हुए इसे पहले जैसी शर्त मानने का मामला एनएचपीसी के सामने रखा था।
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