शिमला । प्रदेश हाईकोर्ट ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को लिखी एक चिटठी को धूर्ततापूर्ण और प्रचार हासिल करने की मंशा से लिखे जाने पर हिमाचल प्रदेश विश्वविदयालय के पूर्व प्रोफेसर पर पचास हजार रुपए की कॉस्ट लगाई है। हिमाचल प्रदेश विश्वविदयालय के पूर्व प्रोफेसर ने अपनी चिटठी में आब्जर्वेशन होम हीरानगर में रहने वाले अंडरट्रायल व बाकी किशोरों के मानवाधिकार के उल्लंघन के इल्जाम होम के अधीक्षक व अन्यों पर लगाए थे।
इस चिटठी की अदालत ने बतौर जनहित याचिका का सुनवाई शुरू की थी। बाद में उक्त अधीक्षक को नौकरी से बर्खास्त कर दिया था। लेकिन जांच में ये तमाम इल्जाम झूठे पाए गए । अब अदालत ने उक्त अधीक्षक की नौकरी भी बहाल कर दी है और हिमाचल प्रदेश विश्वविदयालय के पूर्व प्रोफेसर पर लगाई कॉस्ट में से 35 हजार रुपए उक्त अधीक्षक को अदा करने के निर्देश दिए है।
जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि चिटठी में लगाए गए इल्जाम मेरिट के आधार पर नहीं थे। इसे अदालत ने इसे पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन करार दिया। अदालत ने कहा कि इस तरह के इल्जाम लगने से होम के अधीक्ष के अधिकार बुरी तरह से प्रभावित हुए।
अदालत ने आदेशों की अनुपालना की रपट छह जनवरी को अदालत में पेश करने के निर्देश दिए है।
ये है मामला
प्रदेश विवि के रिटायर प्रोफेसर अजय श्रीवास्तव ने विवि के मुख्य न्यायाधीश को 13 मई 2024 को एक चिटठी लिखी थी जिसमें हीरानगर में आब्जर्वेशन होम में रह रहे अंडर ट्रायल और दूसरे नाबालिगों के मानवाधिकारों के उल्लंघन का इल्जाम लगाया गया था।
श्रीवास्तव ने अपनी चिटठी में लिखा था इस होम में रहने वाले किशोर ने जो 7 मई 2024 को होग से रिहा कर दिया गया था, उसे होम में दी जाने वाली यातनाओं का खुलासा उससे फोन पर किया। इसके अलावा भी कई इल्जाम चिटठी में लगाए गए थे। श्रीवास्तव ने किशोर की ओर से बाल न्याय बोर्ड यानी जेजे बोर्ड सोलन को उक्त किशोर की ओर से लिखी शिकायत का हवाला भी इस चिटठी के साथ दिया था।
इसमें ये भी कहा गया था कि जिस तरह का रवैया इस होम में बरता जा रहा है उससे इनके ये कुख्यात अपराधी बनने का रास्ता बन रहा है।
हाईकोर्ट ने चिटठी में लगाए गए तमाम तरह के इल्जामों को गंभीरता से लिया और इस चिटठी को जनहित याचिका के तौर पर सुनवाई शुरू कर दी।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अदालत की ओर से नोटिस भेजे जाने व इसे भारी प्रचार मिलने के बाद होम के अधीक्षक को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। समाज में उसकी छवि के गहरा धक्का लगा ।
चूंकि जे जे बोर्ड की ओर से की गई जांच में तमाम इल्जाम झूठे पाए गए।
इस पर अदालत ने 11 नवंबर 2024 को श्रीवास्तव को निर्देश दिए थे कि वे अदालत में हलफनामा दायर करे कि चिटठी लिखने से पहले उसने क्या इन इल्जामों की सत्यता जानने के लिए क्या खुद कोई पड़ताल की थी। अदालत ने श्रीवास्तव के हलफनामे का हवाला देकर कहा उन्होंने हीरानगर आब्जर्वेशन में जाकर खुद कोई पड़ताल करने की जहमत तक नहीं उठाई और तमाम तरह के इल्जाम लगा दिए।
खंडपीठ ने कहा कि अदालत ने हलफनामा दायर करने के निर्देश इसलिए दिए क्योंकि उसने खुद को समाजसेवी और विशेष बच्चों (दिव्यांगों और दृटिहीन बच्चों के लिए काम करने का दावा किया था। ऐसे में उससे उम्मीद थी कि वो इल्जामों की सत्यता की खुद पड़ताल करते।
हलफनामा में श्रीवास्तव ने बताया की यहां इस होम में रहने वाले एक किशोर ने जे जे बोर्ड सोलन को एक शिकायत लिखी थी, और इस किशोर के पिता से भी फोन पर भी बात हुई थी। अदालत ने कहा कि श्रीवास्तव ने जे जे बोर्ड की जांच रपट का इंतजार नहीं किया और इस शिकायत के एक सप्ताह के भीतर ही मुख्य न्यायाधीश को चिटठी लिख दी।
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई छह जनवरी को तय की है।
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