शिमला। राज्य के सबसे बड़े अस्पताल इंदिरा गांधी मेडिकल अस्पताल के फार्माकलॉजी विभाग में जून2012में 26लाख 57हजार 612रुपए में खरीद ली गई एचपीएलएस (High-performance liquid chromatography)नामक मशीन आज तीन साल के बाद भी फार्माक्लॉजी विभाग के प्रमुख डा.ए के सहाय के कमरे में धूल फांक रही है। इससे आईजीएमसी प्रशासन और आईजीएमसी का फार्माक्लॉजी विभाग सवालों में आ गया है । इस मशीन की खरीददारी पूर्व धूमल सरकार के वक्त में हुई थी। उनके कार्याकाल में भी ये मशीन नहीं लगी। इसके बाद प्रदेश में वीरभद्र सिंह कीसरकार आ गई और अढा़ई साल से भी ज्यादा इस सरकार को सता में हो गया है लेकिन ये मशीन नहीं लगी। साफ है कि गवर्नेंस सवालों में है।
आईजीएमसी प्रशासन की दलील माने तो इस मशीन को लगाने के लिए जून 2012 से लेकर जून 2015 तक मशीन लगाने को कमरा ही नहीं मिला है। पर यहां बड़ा सवाल ये है कि ये इंतजाम तो मश्ाीन खरीदने से पहले होना चाहिए था। विभाग के डॉक्टरों के पास इसका भी दिलचस्प जवाब है। विभाग के डाक्टरों के माने तो इस मशीन को खरीदने की प्रक्रिया 2009 में शुरू हुई थी। लेकिन सचिवालय के बाबूओं से खरीद के लिए मंजूरी ही देरी से मिली और2012 में खरीद की जा सकी।विभाग के डाक्टरों के कहना है कि अगर पहले कमरे का इंतजाम करते तो प्रशासन कहता पहले मशीन लाओ तब कमरे का इंतजाम कर लिया जाएगा। अब पिछले तीन सालों से कमरे की लड़ाई लड़ी जा रही है।
सूत्रों के मुताबिक इसके बाद इस मशीन को चलाने के लिए ट्रेनिंग अलग से दी जानी है और विभाग के डॉक्टरों को भी ट्रेनिंग लेनी होगी। अभी इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ है।सवाल तो ये भी है कि क्या ये मशीन सप्लायर को फायदा पहुंचाने के लिए की गई थी। इस सवाल पर सब मौन है। विभाग के डॉक्टरों का कहना है कि एमडी कराने के लिए एमसीआई की टीम बहुत कुछ देखती है।डॉक्टरों का कहना है कि ट्रेनिंग मशीन लगने के बाद ली जाएगी।
ये मशीन शरीर में ड्रग के स्तर को जांचने के काम आती है। इसके अलावा अगर किसी ने नशीली वस्तु कोकीन,चरस,भांग,अफीम,शराब आदि का सेवन भी करता है तो इस मशीन से पता लगाया जा सकता है कि शरीर में इसका स्तर कितना है।हालांकि ये पेचिदा प्रक्रिया है ।
आरटीआई एक्टिविस्ट और व्हीसल ब्लोअर दीपक सूद ने इस मसले को जुलाई 2013में भी उठाया था। उन्होंने आरटीआई लगाकर पूछा कि ये मशीन लगा दी गई है या नहीं। आईजीएमसी प्रशासन ने जवाब दिया कि ये अभी नहीं लगी है और मामले को प्रिंसिपल से उठाया गया और प्रिंसीपल ने मामले को पीडब्ल्यूडी से उठाया है। इसके बाद दो साल तक कुछ नहीं हुआ । न पीडब्ल्यडी ने कुछ किया और न ही प्रिंसिपल ने की कोई कदम उठाया। विभाग ने भी मामला आगे सरकाने में कोई जहमत नहीं उठाई।
इसके बाद दीपक सूद ने फरवरी में फिर आरटीआई लगाई तब कहीं जाकर विभागाध्यक्ष और प्रिंसिपल जागे। इस मसले पर अईजीएमसी के प्रिंसिपल एसएस कौशल ने कहा कि इस मशीन को लगाने के लिए सेट्रंल वायरोलॉजी लैबोरेटरी के साथ कमरा दे दिया गया है। उसे तैयार कर दिया गया है।एक दो महीने में इसे लगा दिया जाएगा। तीन साल का अरसा क्यों लगा एक कमरा अलॉट करने में। डा. कौशल ने कहा कि आईजीएमसी में कमरा मिलना बहुत मुश्िकल है। लेकिन ये सब मशीन का प्रस्ताव बनाते व खरीदने से पहले देखा जाना चाहिए था।
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