शिमला। सुप्रीम कोर्ट ने स्की विलेज मामले में फैसला दिया है कि कोई भी गैर कृषक प्रदेश में 118 के तहत सरकार से मंजूरी लिए बगैर जमीन नहीं खरीद सकता और न ही कोई जमीन हस्तातंरित कर सकता हैं।यह प्रदेश के गरीब किसानों को बचाने के लिए जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में मैसर्स हिमालयन स्की विलेज प्राइवेट लिमिटेड और प्यारे राम व सुरेंद्र सिंह व अन्य की याचिकाएं खारिज कर प्रदेश हाईकोर्ट व निचली अदालतों के फैसलों को बहाल रखा हैं।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस सुधाशु धुलिया व पी एस नरसिम्ह की खंडपीठ ने इन याचिकाओं को खारिज कर दिया।
पूर्व में मैसर्स हिमालय स्की विलेज प्राइवेट लिमिटेड प्रदेश के जमीन मालिक और कृषक से उसकी जमीन खरीदने के लिए बिक्री समझौता किया था। लेकिन प्रदेश में हिमाचल प्रदेश मुजारा और भूसुधार अधिनियम की धारा 118 के तहत प्रावधान है कि अगर किसी गैर कृषक को जमीन खरीदनी है तो उसके लिए सरकार से पहले मंजूरी लेनी होगी।
लेकिन हिमालयन स्की विलेज एक कंपनी है व गैर कृषक हैं। ऐसे में उसे जमीन खरीदने से पहले तय समय में मंजूरी लेनी होगी।लेकिन सरकार ने इस बावत मंजूरी नहीं दी ।। इस पर कंपनी ने जिससे जमीन खरीदी उसी को जमीन पर गतिविधियां करने के अधिकार दे दिए व उक्त किसान ने अपनी जीमन पर स्की विलेज बसाने की मंजूरी देने के लिए याचिका दायर कर दी।
लेकिन 118 के तहत इस तरह जमीन को हस्तातंरित नहीं किया जा सकता हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि जब स्की विलेज कंपनी को 118 के तहत मंजूरी नहीं मिली तो भूमि मालिक यानी सुरेंद्र सिंह को इस जमीन पर विशिष्ट गतिविधियां चलाने के लिए अपने अधिकार दे दिए। बाद में सुरेंद्र सिंह ने मैसर्स हिमालयन स्की विलेज को भी मुकदमे में पार्टी बना दिया। खंडपीठ ने पाया कि सेल एग्रीमेंट में ऐसा कहीं नहीं था कि अगर खरीददार 118 के तहत मंजूरी लेने में विफल रहता है तो वह अपने अधिकार हिमाचली कृषक दे सकता हैं और तब बेचने वाले को तब कंपनी के पक्ष में सेल डीड बनाने में कोई आपति नहीं होगी।
खंडपीठ ने कहा कि निचली अदालत ने इस मामले को इसलिए खारिज कर दिया क्यों कंपनी ने धारा 118 के तहत मंजूरी नहीं ली थी।थी।बिक्री समझौते की बाकी शर्ते इस एक शर्त पर निर्भर थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि In the present case the assignment is not valid as there was
no prior consent or approval of the seller before the assignment.
In the absence of such a condition and in lieu of the fact that
before assignment of its rights to the plaintiff/Appellant herein
no permission of the seller was obtained, there was no question
of granting a decree of Specific Performance in favour of the
plaintiff. Consequently, this is not a case which calls for our
interference.
सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि We may here add that the whole purpose of Section 118 of
the 1972 Act is to protect agriculturists with small holdings. Land in Himachal Pradesh cannot be transferred to a nonagriculturist, and this is with a purpose. The purpose is to save the small agricultural holding of poor persons and also to check the rampant conversion of agricultural land for non-agricultural purposes. A person who is not an agriculturist can only purchase land in Himachal Pradesh with the permission of the State Government. The Government is expected to examine from a case to case basis whether such permission can be given or not. In the present case, it thought it best, not to grant such a permission. However, the purpose of the transfer remains the same, which is a non-agricultural activity. By merely assigning rights to an agriculturist, who will be using the land for a purpose other than agriculture, would defeat the purpose of this Act.
इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं को खारिज कर दिया। यह मामला 31 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में लगा था।
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