नई दिल्ली /शिमला। बेहद टाइट चुनावी शेडयूल जारी करते हुए हिमाचल प्रदेश की 68 विधानसभा सीटों के लिए 9 नवंबर को वोटिंग व 18 दिसबंर को मतगणना का एलान करते हुए चुनाव आयोग ने प्रदेश में चुनावी बिगुल बजा दिया हैं। भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त व गुजरात कैडर के पूर्व आइएएस अफसर अचल कुमार जोति ने ये एलान आज दिल्ली में एक संवाददाता सम्मेलन में किया।
आश्चर्यजनक तरीके से चुनाव आयोग ने गुजरात का चुनाव शेडयूल जारी नहीं किया हैं। समझा जा रहा है कि ये सब मोदी सरकार के प्रभाव में ही हुआ होगा। अन्यथा चुनाव आयोग को गुजरात व हिमाचल के चुनाव शेडयूल का एलान करना था।
बहरहाल, चालाकी से चुनाव आयोग ने हिमाचल का चुनावी शेडयूल बेहद टाइट रखा हैं। चुनाव की अधिसूचना 16 तारीख को जारी की जाएगी व इसी दिन से नामांकन भरने का काम शुरू हो जाएगा। आठ दिन बाद 23 अक्तूबर को नामांकन भरने का आखिरी दिन हैं।24 तारीख को भरे गए नामांकनों की छंटनी होगी और और 26 अक्तूबर को नामांकन वापस लिया जा सकेगा। इसके बाद 9 नवंबर को वोटिंग का एलान किया गया हैं। यहां ये महत्वपूर्ण है कि बीच में दीपावली व अन्य त्योहार हैं ऐसे में नामांकन भरने के लिए ज्यादा समय दिया जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। 26 नवंबर के बाद प्रचार के लिए भी ज्यादा समय नहीं दिया गया हैं।शेडयूल के मुताबिक सा नवंबर को प्रचार खत्म हो जाएगा।मतगणना को छोड़ दे तो नामांकन से वोटिंग तक की पूरी प्रक्रिया के लिए कुल 27 -28 दिन दिए गए हैं।प्रचार के लिए भी 11-12 दिन ही मिलेंगे। ये अजीब हैं। अगर गुजरात को ध्यान में रखकर ये किया गया हैं तो ये सही नहीं हैं।
वोटिंग के बाद कायदे से काउंटिंग 10 या 12 तारीख को ही कर दी जानी चाहिए थी। लेकिन मतगणना करीब सवा महीना बाद 18 दिसंबर को की जाएगी। जाहिर ये गुजरात चुनावों को ध्यान में रख कर किया होगा। लेकिन ये समझ से बाहर है कि जब किसी अन्य राज्य के चुनाव घोषित ही नहीं हुए तो काउंटिंग सवा महीने बाद क्यों कराई जा रही हैं।इससे चुनाव आयोग पर सवाल तो उठेंगे ही।
प्रदेश में आज से ही आचार संहिता लग गई हैं व शासन व प्रशासन अब कुछ नहीं करेगा। 9 नवंबर तक को ठीक हैं कि चुनावी शेडयूल हैं सो जनता के काम निलंबित रह सकते हैं। लेकिन मतगणना के लिए बिना कोई वजह इतना लंबा इंतजार कराना चुनाव आयोग को सवालों में खड़ा करता हैं। दिसंबर 2012 में भी इसी रिजल्ट घोषित करने के लिए इसी तरह हिमाचल के लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ा था । हालांकि तब बाकी राज्यों के चुनाव साथ तो वहां कोई प्रभाव न पड़े इसलिए ऐसा किया गया होगा। लेकिन इस बार तो चुनाव आयोग ने किसी और राज्य का चुनाव शेडयूल भी जारी ही नहीं किया तो मतगणना 10 या 12 नवंबर को कराने में क्या मुश्किल थी।
इसका मतलब ये हुआ कि 18 दिसंबर तक प्रदेश सरकार के सारे कामकज निलंबित हो जाएंगे।ये लंबा समय हैं व जो भी काम होंगे वो चुनाव आयोग की इजाजत से होंगे । चुनाव आयोग का मतलब मोदी सरकार की इजाजत के साथ। कायदे से ऐसा नहीं होना चाहिए था।
अगर मतगणना 18 दिसंबर कको ही करानी थी तो चुनाव शेडयूल लंबा रखा जा सकता था। वोटिंग दो चरणों में की जा सकती थी। जिन विधानसभा हलकों में हिमपात की संभावन हैं वहां वर 9 नवंबर व बाकियों में वोटिंग दिसंबर में कराई जाती । लेकिन चुनाव आयोग ने ऐसा नहीं किया।
चुनाव आयोग के टाइट शेडयूल से विभिन्न पार्टियों को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ेंगा व जो निर्दलीय चुनाव लड़ना चाहते हें उन्हें तो एक महीने का भी समय नहीं मिलेगा। हिमाचल व कांगेस , भाजपा जैसी तीन बड़ी पार्टियां हैं जिनके पास बेतहाशा पैसा व बड़ा कैडर हैं व ये पार्टियां तो फिर भी अपने अभियान को बुलडोज कर लेंगी। लेकिन निर्दलीय प्रत्याशियों के लिए ये लेवलिंग फील्ड कतई नहीं हैं।
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