शिमला/मंडी । उम्मीद के अनुरूप उतराखंड की तर्ज पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी ने रणनीति का अमली जामा पहनाकर हिमाचल पहले मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के क्रप्शन को चुनावों से पहले नए सिरे से उछाल दिया व साथ ही केबिनेट मंत्री अनिल शर्मा को कांग्रेस से तोड़ लिया हैं। कांग्रेस आलाकमान की ओर से प्रदेश प्रभारी बनाए गए सुशील कुमार शिंदे और सह प्रभारी रंजीत रंजन यादव को इसकी भनक ही नहीं लगी,ये विचित्र हैं।
भाजपा की ओर से राज्यपाल को भेजे आरोपपत्रों में शुमार व मंडी से वीरभद्र सरकार में कबिनेट मंत्री अनिल शर्मा ने भाजपा ज्वाइन कर ली हैं। उनके पिता व दूरसंचार घोटाले में अदालत से दोषी ठहराए गए पूर्व मंत्री सुखराम भी भाजपा में चले गए हैं जबकि अनिल शर्मा के पुत्र आश्रय शर्मा,जो सिराज से टिकट के दावेदार थे, ने भी भाजपा कार हाथ थाम लिया हैं।
मिशन रिपीट का सपना देख रहे मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को भाजपा चहूं ओर से घेरने पर आ गई हैं। शिंदे और रंजीत रंजन की जोड़ी ये आकलन ही नहीं कर पाई कि वीरभद्र को चुनाव की कमान देना भाजपा के आंगन में खेलने जैसा हैं।भाजपा तो चाहती ही ऐसा थी कि कांग्रेस ऐसे चेहरे को चुनाव की कमान दे जिसे भ्रष्टाचार पर घेरा जा सके । वीरभद्र सिंह तो उम्रदराज भी हैं और चलने के लिए भी दूसरों का सहारा चाहिए। दूसरे पार्टी में उनका वैसे ही छतीस का आंकड़ा हैं।पार्टी नेताओं व उनके केबिनेट मंत्रियों की करीबियां उनसे कहीं ज्यादा नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल से रही हैं।
बावजूद इसके शिंदे व रंजीत रंजन ने आलाकमान को न जाने किसी तरह का फीड बैक दिया हैं। कांग्रेस के युवराज को राहुल गांधी को तो अभी राजनीतिक गुणा भाग समझने में बरसों लगने हैं।
भाजपा का मिशन अभी खत्म नहीं हुआ हैं बाकी कइयों को भाजपा में ले जाने का प्लान एक अरसा पहले बन गया था लेकिन भाजपा आलाकमान असमजस में था कि इसे अमलीजामा पहनाना हैं या नहीं। लेकिन भाजपा की अपने स्तर पर मजबूत स्थिति न देखकर भाजपा ने यहां भी उतराखंड दोहराने का फैसला किया हैं। उतराखंड की बीजेपी की सरकार में आधे मंत्री कांग्रेसी हैं।
बीते दिनों सुखराम सिराज में गए थे व वहां से उन्होंने अपने पोते आश्रय शर्मा को सक्रिय राजनीति में लाने का संकेत दिया था।इससे भाजपा के विधायक जयराम ठाकुर मुश्किल में थे। बताते है कि ये सब भाजपा के बड़े नेता व पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की सहमति से हुआ था। धूमल व जयराम में एक अरसे से ज्यादा करीबियां नहीं हैं। आश्रय को भाजपा में शामिल करवा कर जयराम को अनसेफ करवा दिया गया हैं।
अब देखना ये है कि क्या रणनीति के मुताबिक भाजपा की कमान धूमल को दी जाती है या असमंजस रखा जाता हैं।
मीडिया रिर्पोटस के मुताबिक अनिल शर्मा ने कहा है कि कांग्रेस ने पार्टी उनके पिता सुखराम का अपमान किया व घूटन महसूस कर रहे थे। उनका ये कहना गलत भी नहीं हैं। लेकिन 1998 से 2003 तक की तत्कालीन धूमल सरकार में उनके साथ क्या हुआ था , वो ये अच्छी तरह से जानते थे।बहरहाल , राजनीकि तौर परउनका ये कदम उनके केरियर के लिए बुरा नहीं हैं।
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