शिमला। किन्नौर के लिप्पा गाँव के निवासियों ने एचपीपीसीएल पर काशांग जल विद्युत परियोजना चरण दो और तीन का काम शुरू करने के लिए दबाव डालने का विरोध किया है। 9 अक्तूबर को कंपनी के अधिकारियों द्वारा गाँव में पुलिस के सहारे घुसने की कोशिश पर गाँव निवासियों द्वारा प्रदर्शन कर धरना दिया गया जिस कारण एचपीसीएल टीम को वापस लौटना पड़ा। याद रहे पिछले 10 वर्षों से लिप्पा गाँव के लोग पर्यावरण संरक्षण संघर्ष समिति के बैनर तले इस परियोजना के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं।
वनाधिकार समिति लिप्पा के सचिव ताशी चवांग ने कहा कि 2016 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के जारी किए एक आदेश में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय व प्रदेश सरकार को इस परियोजना के वन हस्तांतरण का पूरा प्रस्ताव प्रभावित ग्राम सभाओं के समक्ष रख कर उनसे अनुमति लेनी थी। आदेश में कहा गया था किग्राम सभा वन अधिकार कानून 2006 के तहत सभी व्यक्तिगत और सामुदायिक दावों पर विचार करेगी और इसके बाद परियोजना को एनओसी देने के लिए विचार करेगी
आदेश का पालन करते हुए 2016 में लिप्पा गाँव की वन अधिकार समिति ने अपने दावे पेश करने की प्रक्रिया शुरू की और वन अधिकार कानून के तेहत वन भूमि पर 47 व्यक्तिगत दावे और 1 सामूहिक दावा भर कर उप मंडल स्तरीय समिति को पेश किया । प्रशासन और राज्य सरकार की उदासीनता के चलते इस पूरी प्रक्रिया में काफी विलम्ब भी हुआ लेकिन अगस्त 2018 में उप मंडल एवं जिला स्तरीय समितियों ने लिप्पा के सामूहिक दावों को मान्यता दे दी लेकिन अभी भी व्यक्तिगत दावों के लिए उप मंडल स्तरीय समिति की तरफ से मंजूरी नहीं दी गई हैं। इस मामले में दावेदारों द्वारा आपत्तियां दर्ज की जायेंगीं। इस पूरी प्रक्रिया के समाप्त होने पर ही कंपनी द्वारा परियोजना से जुडी कोई भी कार्यवाही की जा सकती है।
उन्होंने इल्जाम लगाया कि 2017 में राज्य सरकार के अधिवक्ता ने एनजीटी को यह गलत जानकारी दी कि लिप्पा ग्राम सभा द्वारा दावे पेश नहीं किये जा रहे। जब कोर्ट के सामने संघर्ष समिति के दस्तावेज पेश करने पर कोर्ट ने दिसंबर 2017 में आदेश दिया की ग्राम सभा ने व्यक्तिगत एवं सामूहिक दावे दायर कर दिए हैं और अधिकारों को मान्यता देने की प्रक्रिया पूरी की जाये। इसके बावजूद कंपनी के अधिकारीयों द्वारा गाँव में बार बार दौरा किया जा रहा था और 24 अगस्त को रिकांग पियो के एसपी ने चिठ्ठी जारी की जिसमें कंपनी को परियोजना का काम शुरू करने के लिए पुलिस सुरक्षा प्रदान करने का फैसला लिया गया।
कंपनी ने पुलिस को भी यह गलत जानकारी दी कि परियोजना से जुडी कानूनी कार्यवाही समाप्त हो चुकी है जब की वन अधिकार कानून के तहत एनओसी लेना अभी बाकी है और जब तक दावे मंजूर होने की प्रक्रिया पूरी नहीं होती तब तक ग्राम सभा एनओसी का फैसला नहीं ले सकती है।
चवांग ने कहा कि समिति ने एसपी को लिखित में अपनी आपत्तियां दी हैं और यह भी बताया है कि वन अधिकार कानून हमारे देश के संसद द्वारा पारित कानून है जिसका उलंघन हकदारों के संवैधानिक अधिकारों का उलंघन होगा। चूंकि किन्नौर एक अनुसूचित जन जातीय इलाका है इस कानून के प्रावधानों में यह भी शामिल है कि अनुसूचित जनजाति के दावेदारों को अपने अधिकारों से वंचित करने पर एससी,एसटी अत्याचार निवारण कानून का भी उलंघन होगा
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