शिमला। HPTDC के 14 होटलों को निजी हाथों में देने के कैबिनेट के फैसले को लेकर मुख्यमंत्री सुक्खू और HPTDC के चेयरमैन रघुबीर सिंह बाली के बीच महाभारत शुरू हो गया हैं1 भाजपा ने इन होटलों को निजी हाथों में देने के सुक्खू कैबिनेट के फैसलों को हिमाचल ऑन सेल की संज्ञा देते हुए सरकार को कटघरे में खड़ा किया हैं और राजनीति शुरू हो गई हैं।
वहीं HPTDC के चेयरमैन रघुबीर सिंह बाली ने आज राजधानी में संवाददाता सम्मेलन में ये दावा कर कि इन होटलों को निजी हाथों में देने को लेकर बोर्ड आफ डायरेक्टर की ओर से सरकार को कोई प्रस्ताव नहीं भेजा गया, सनसनी फैला दी ।उन्होंने कहा कि ये सरकार का अपना फैसला हैं।
इस मामले ने सुक्खू और बाली के बीच के रिश्तों में पनप रही दरार,सरकार के विभिन्न घटकों के बीच संवाद की कमी और सरकार के फैसलें लेने की प्रक्रियाओं को भी जगजाहिर कर दिया हैं।
उधर, बाली की ओर से इन होटलों के निजी हाथों में देने का विरोध करने के पीछे एक अलग कहानी भी सता के गलियारों में घूम रही हैं।
आर एस बाली ने कहा कि इन होटलों को निजी हाथों में देने के लिए HPTDC के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की बैठक में कोई फैसला नहीं हुआ हैं। न ही इस बावत कोई प्रस्ताव सरकार को भेजा गया हैं। उन्होंने बड़ा दावा किया कि शायद कैबिनेट के सामने सही तथ्य नहीं रखे गए।
ऐसे में सुक्खू मंत्रिमंडल की ओर से HPTDC के चेयरमैन को इतने महत्वपूर्ण मसले पर नज़रअंदाज कर इतना बड़ा फैसला ले लेना अपने आप में आश्चर्यजनक हैं।
इस बावत बाली से पूछा भी गया कि क्यां उनको सुक्खू सरकार की ओर से नजरअंदाज किया जा रहा है। इस पर बाली ने कहा कि इसमें नज़रअंदाज करने वाली कोई बात नहीं हैं। सरकार ने अपने विवेक पर ये फैसला लिया होगा। अब उनका संकेत सरकार के विवेक यानी विज़डम की ओर से है या फिर सुक्खू के निजी सचिव विवेक भाटिया की ओर था, ये साफ नहीं हो पा रहा हैं।
उधर, बिना तथ्यों के कैबिनेट की ओर से 14 होटलों को आउटसोर्स पर देने का फैसला ले लेना कई सवाल खड़ा कर रहा हैं।आखिर सुक्खू सरकार ने अपने ही लाडले चेयरमैन को नज़रअंदाज क्यों कर दिया। वो भी तब जब बाली मुख्यमंत्री सुक्खू के लाडलों में गिने जाते रहे हैं।
ऐसे में उन्हें बिना पूछे इतना बड़ा फैसला लेना मुख्यमंत्री सुक्खू का उन्हें ठिकाने लगाने का कदम करार दिया जा रहा हैं।हालांकि बाली का इस तरह के विरोध पर उतरने के पीछे एक और कहानी भी ब्यां की जा रही है।लेकिन इस बावत कोई पुख्ता सबूत हाथ नहीं लगे हैं।
बाली ने कहा कि HPTDC ने पिछले ढाई सालों में जितनी भी देनदारियां अदा की वो सब अपने बूते अदा की हैं।उन्होंने मुख्यमंत्री सुक्खू से आग्रह किया कि जिन होटलों को निजी हाथों में देने का कैबिनेट ने फैसला लिया है, HPTDC उनकी वितीयfeasibility का अध्ययन कराना चाहता है। इसके लिए पर्यटन विभाग के पास कंसलटेंट हैं, उन्हीं से ये अध्ययन कराया जाएगा।
उन्होंने मुख्यमंत्री सुक्खू से आग्रह किया कि अध्ययन में क्या सामने आता है, उसके बाद किसी भी होटल को निजी हाथों में देने का फैसला लिया जाना चाहिए।उन्होंने कहा कि इन होटलों के जीर्णोद्धार के लिए उनने मुख्यमंत्री से कई बार रकम मांगी। इस बावत उनने लिखित में,ईमेल के जरिए और वाटसएप के जरिए भी अवगत कराया ।
साफ है कि अगर बाली इस तरह से मुख्यमंत्री को अवगत कराने का दावा कर रहे हैं और उसके बावजूद उनकी मांग को नजरअंदाज़ किया जा रहा है तो ये दोनों के बीच पनप रही दरार की ओर बड़ा संकेत हैं।
बाली ने कहा कि अगर उन्हें ये रकम मिल जाती है तो HPTDC का टर्नओवर सौ करोड़ से दो सौ करोड़ तक पहुंचा देंगे। लेकिन ढाई साल में HPTDC को एक भी पैसा मुख्यमंत्री ने नहीं दिया। जबकि बाकी महकमों को सरकार की ओर से अनुदान दिए जाते रहे हैं।
बाली का इस तरह मीडिया के सामने गिड़गिड़ाना कई सवाल पीछे छोड़ गया है।
उधर,इन होटलों को निजी हाथों में देने के विरोध में HPTDC के कर्मचारी भी उतर गए है । वो आज बाली से मिले और उसके बाद मुख्यमंत्री से मिलने भी जाना था। कर्मचारियों का कहना है कि इन होटलों को निजी हाथों में नहीं दिया जाना चाहिए। इसके अलावा ये कर्मचारी HPTDC के मुख्यालय को धर्मशाला ले जाने से भी खुश नहीं हैं। इन कर्मचारियों का कहना है कि मुख्यालय को धर्मशाला ले जाने से आखिर HPTDC को क्या फायदा होगा।
अब देखना ये है कि सुक्खू और बाली के बीच की ये जंग जल्द समाप्त होने वाली है और कैबिनेट के फैसले पर सुक्खू सरकार यूटर्न लेंगी या ये जंग आगे बढ़ने वाली हैं।
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