शिमला ।उद्योगों के ताकतवर संगठन सीआईआई ने बजट से पहले वीरभद्र सिंह सरकार से ट्रक यूनियनों के एकाधिकार को समाप्त करने की जो मांग की हैं उस पर ट्रक यूनियनों ने उद्योगों पर पलटवार किया हैं।ट्रक यूनियनों का दावा है बड़े उद्योगों में से कोई भी अपनी गाडि़यां नहीं डालना चाहतें ।ये कुछ छोटे उद्योगों केे लोग है जो टैक्स चोरी करना व सब्सिडी खाना चाहते हैं व सरकार पर दबाव बनाकर अपने लिए रियायतों का जुगाड़ करने की फिराक में रहते हैं।
नालागढ़ ट्रक आपरेटर यूनियन ,नालागढ़ के प्रधान विदया रतन ने reporterseye .com से कहा कि ट्रक यूनियनें जो सरकारी विभागों से रेट लेती हैं वही रेट वो उद्योगों से लेने को भी तैयार हैं। सरकार रेट फिक्स कर दे। लेकिन जब टेबल पर सरकार व उद्योगों से इस मसले पर बात होती हैैं तो उद्योग पीछे हट जाते हैं। विदया रतन ने कहा कि वो सरकार के साथ है वो जो फैसला लें उससे पहले एक बार यूनियनाों का भी पक्ष ले लें। उन्होंने कहा कि नालागढ़ में बददी- बरोटीवाला- नालागढ इंडस्ट्रीज एसोसिएशन हैं जिनसे उनकी बात होती रहती हें। सीआईआई ने तो कभी उनसे कोई बात नहीं की।
उन्होंने सीआइआई की हिमाचल इकाई के अध्यक्ष संजय खुराना की इस मांग पर की उदृयोगों को अपने ट्रक चलाने की इजाजत मिले पर कहा कि ऐसी मांगे छोटे छोटे उदयोगवाले करतें है। इन लोगों को टैक्स हड़पना होता हैं। ये बाहर के लोग हैं जो कुछ सालों के लिए यहां आते हैं व जब रिबेट व पैकेज खत्म हो जाते हैं तो चले जाते हैैं।जबकि जो भी गाड़ी यूनियन ये जाएगी उसका पूरा रिकार्ड यूनियन के पास होता हैं। हाल ही नालागढ़ में एक इंडस्ट्री से लाखों का टैक्स यूनियन के रिकार्ड देखने के बाद ही वसूला गया ।
उन्होंने कहा कि उनकी यूनियन में 9500 ट्रक हैं व अगर इंडस्ट्री के सामने कोई मसला हैं तो सरकार यूनियनों से भी बात करें, उसके बाद ही कोई फैसला लें।
उधर,अंबुजा सीमेंट कारखाने में काम कर रही सोलन डिस्ट्रिक्ट ट्रक यूनियन के प्रधान रतन मिश्रा ने कहा कि इंडस्ट्री की दिक्कतें ट्रक यूनियनों की वजह से नहीं हैं। दाड़ला से सीमेंट का ट्रक चंडीगढ जाता हैं तो भाड़ा मिलता हैं आठ हजार रुपए और वहां उपभोक्ताओं को सीमेंट का बैग मिलता हैं 260 और265 रुपए जबकि दाड़ला से अगर सीमेंट का ट्रक शिमला को जाता हैं तो भाड़ा मिलता हैं चार हजार रुपए। जबकि शिमला में सीमेंट के बैग की कीमत हैं 335 और 340रुपए । ऐसे मेें ऐसे में भाड़़े की वजह से इंडस्ट्री का कोई लेना देना हैं।
मिश्रा ने कहा कि ट्रकों के भाड़ों को लेकर एक फार्मूला बना हुआ है जिसको सरकार के अफसरोंं ने ही बनाया है व मंजूर किया हैं। अगर डीजल घटता है तो भाड़ा कम हो जाता हैं अगर डीजल बढ़ता हैं तो फार्मूले के मुताबिक भाड़ा भी बढ़ जाता हैै
इस तरह की मांग छोटे उद्योग करते होंगे जिन्हें सब्सिडी खानी होती है या बीमार उद्योग हैं जिन्हें सरकार से रियायतें लेनी होती हैं।मिश्रा ने कहा कि सरकार को कोई भी फैसला लेने से पहले यूनियनों का पक्ष भी जानना चाहिए। अंबुजा में 8000 केकरीब ट्रक हैं।
उधर,सिरमौर ट्रक आपरेटर यूनियन नाहन के प्रधान बलजीत नागरा ने संजय खुराना के इस दावे का कि ट्रक यूनियनों की वजह से हिमाचल ब्रांड की छवि खराब हो रही हैं व निवेश कम हो रहा हैैं ,जवाब यह कह कर दे दिया कि काला अंब इंडस्ट्रियल एरिया में तो कोई यूनियन ही नहीं हैं तो वहां से इंडस्ट्री वाले क्यों दौड़ गए ।वहां दर्जनों प्लाट खाली हो गए हैं।
परवाणू में भी यूनियन नहीं हैं वहां से भी इंडस्ट्रीज बंद कर के लोग चले गए। उन्होंने एक और खुलासा किया कि कई इंडस्ट्रीज के जो अपने ट्रक चल रहे हैं वो पांवटा से दिल्ली के एक ही दिन में तीन तीन चक्कर लगा रहे हैं। ये संंभव ही नही हैं।वो बार्डर पार जाकर दूसरे ट्रकों में पलटी करके आ जाते हैं। यूनियन वाले नंबर एक काम करते हैं जिससे सरकार को रेवन्यू आता हैैं। नागरा ने कहा एक ट्रक से कई परिवार पलते हैं।
ऑल इंडिया ट्रक आपरेटर फेडरेशन के महासचिव नरेश गुप्ता ने कहा कि ट्रकों का भा़डा उदयोगों के साथ बैठकर उनकी सहमति के बाद तय होता हैं।अगर इंडस्ट्री वाले अपने ट्रक खरीद लेंगे तो घपले के ज्यादा चांस हैं। उदयोग लॉबिंग करते रहते हैं। उन्होंने भी इशारों इशारों में उदृयोगों पर टैक्स खाने व भ्रष्टाचार करने का आरोप लगा दिया।अंबुजा सीमेंट कारखाने में अपने ट्रक खरीदने का प्रयोग हो चुका हैं । यहां पर जब यहांपर अंंबुजा ने 400 ट्रक खरीदे थे लेकिन जब उनकी आर सी चैक की तो एक नया खुलासा हुआ था।बीस बीस गाडि़यां रिश्तेदारों के नाम पर निकली थी।
बहरहाल ट्रक यूनियनों ने उद्योगों के ताकतवर व अपने लिए लॉबिंग करने के काबिल संगठन सीआईआई की मांग पर पलटवार तो किया साथ उद्योगों के कारनामों के खुलासे भी किए हैै। ये सही है कि सीआईआई व फिक्की जैसे संगठनों के पास सरकारों के साथ हर समय नजदीकियां रहती हैं जबकि ट्रक यूनियनों व लेबर यूनियनों की आवाजें सरकारों तक पहुंचती ही नहीं हैं। ऐसे में उदयोग हमेशा से रियायतें हासिल करतेरहेहैं। लेबर कानूनों में पहले ही कई बदलाव लाने मे उदयोग कामयाब हो चुके हैं अब ट्रक यूनियनें निशाने पर हैं।
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