शिमला। प्रदेश की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार प्रदेश हाईकोर्ट से’पंगा’ लेने से बाज नहीं आ रही है। अब सुक्खू सरकार ने नया कांड कर दिया है।सुक्खू सरकार ने प्रधान सचिव लॉ का कामकाज ही संयुक्त सचिव कानून को दे दिया है।वो भी तब जब प्रधान सचिव कानून ने अभी कामकाज शुरू भी नहीं किया था। सुक्खू सरकार में कई नई रिवायतें शुुरू की जा रही है। अफसरों को एडिशनल चार्ज देने के कारनामे का धुंआ अभी छंटा नहीं है कि अब नया कारनामा कर दिया है।
गौरतलब हो हाईकोर्ट ने सुक्खू सरकार में तैनात प्रधान सचिव लॉ शरद कुमार लगवाल का तबादला बतौर जिला सत्र जज सोलन कर दिया व कांगड़ा के जिला सत्र जज राजीव बाली को सरकार के अधीन कर दिया ताकि सरकार उन्हें प्रधान सचिव लॉ के पद पर तैनाती कर सके।
हाइकोर्ट ने ये आदेश 22 सितंबर को कर दिए लेकिन सुक्खू सरकार ने राजीव बाली के बतौर प्रधान सचिव लॉ की अधिसूचना ही जारी नहीं की। ऐसे में छह अक्तूबर का हाईकोर्ट में उन्हें लीव रिजर्व /ट्रेनिंग तैनात कर दिया। रजिस्ट्रार जनरल के आदेशों में कहा गया कि जब तक प्रदेश सरकार उनके बतौर प्रधान सचिव लॉ आदेश नहीं करते है तब तक वो हाईकोर्ट में कामकाज देखेंगे।
लेकिन सुक्खू सरकार ने बाली की बतौर प्रधान सचिव लॉ के पद पर तैनाती को लेकर अधिसूचना ही जारी नहीं की। बताते है कि इस बीच मुख्य सचिव का अतिरिक्त कार्यभार देख रहे राज्य के टॉप आइएएस अफसर संजय गुप्ता को अधिसूचना के बारे में पूछा जाने लगा तो उन्होंने 15 अक्तूबर को जाकर बाली के बतौर प्रधान सचिव लॉ के पद पर तैनाती के आदेश जारी कर दिए।
अभी इन आदेशों को किए हुए चंद ही घंटें हुए थे कि सुक्खू सरकार की ओर से एसी दिन एक और अधिसूचना घातक अधिसूचना जारी कर दी गई। अब इस अनोखी अधिसूचना में कहा गया कि प्रधान सचिव लॉ सचिवालय में लॉ विभाग का लेजिसलेशन और ओपीनियन का काम छोड़ कर तमाम काम देखेंगे।
इसी अधिसूचना में सरकार ने आगे जोड़ दिया कि संयुक्त सचिव लॉ डा. विवेक ज्योति लेजिस्लेशन और ओपीनियन का कामकाज संभालेंगे। ये सब जनहित में किया जा रहा है।ये अधिसूचना आश्चर्यजनक थी । अभी तक इतिहास में पहले कभी ऐसा हुआ हो ऐसी जानकारी नहीं मिल पाई है। लेकिन सुक्खू सरकार ने ऐसा कर दिया है।
इतना होने के बाद भी सुक्खू सरकार का दिल नहीं भरा। इस नई अधिसूचना के जारी हुए दो ही दिन हुए थी कि तीसरे दिन यानी 18 अक्तूबर को सरकार की ओर से एक और अधिसूचना जारी कर दी गई।
इस अधिसूचना में प्रधान सचिव लॉ को फरमान जारी कर दिया कि वो लॉ विभाग की एडमिनिस्ट्रेटिव और लिटिगेशन विंग का ही कार्यभार संभालेंगे। जबकि संयुक्त सचिव लॉ विवेक ज्योति लॉ विभाग का बाकी का देखेंगे।
सुक्खू सरकार के इस अजीबो कारनामें के चर्चे अब जगह-जगह हो रहे है।उधर, बताते है कि मामले को प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के नोटिस में भी ला दिया गया है।लेकिन बीच में दीपावली की छुटिटया पड़ गई। ऐसे में अब सोमवार के बाद इस मामले में संभवत कुछ नई हलचल जरूर होनी है।
अब ये साफ नहीं हो रहा है क ये सब सुक्खू के सिपहसलारों की राय पर ही हो रहा है या सुक्खू खुद ही अंतर्यामी बने हुए है। कहते है कि सुक्खू अपनी अंतरआत्मा के बल पर कुछ भी फैसले ले लेते है। ये दीगर है कि उनकी अंतरआत्मा से कब क्या फूट पड़े ये किसी को पता नहीं होता।
इस मामले में भी कहा जा रहा है कि सरकार का प्रधान सचिव लॉ यानी लगवाल का बदलने से पहले उनकी सरकार को भरोसे में नहीं लिया गया। इसलिए सुक्खू खफ़ा हो गए । अब उनके ख़फा होने के बाद उठाए जाने वाले सरकार के कदम कितने संवैधानिक और कानूनन है इस पर बहस चली हुई है। प्रदेश के कानून विभाग में तो बड़ी छटपटाहट चली हुई है।आखिर छटपटाहट हो भी क्यों न ,कांड ही ऐसा किया गया है।
इससे पहले भी सुक्खू सरकार अदालत से टकराव में आ चुकी है। सेली हाइडल बिजली प्रोजेक्ट के एक मामले में अदालत बार-बार सुक्खू सरकार को पैसे जमा कराने के आदेश दे रही थी लेकिन सुक्खू सरकार ने जिदद पकड़ ली कि पैसे जमा नहीं कराने है। जब हाईकोर्ट से 440 बोल्ट का झटका लगा और हिमाचल भवन की कुर्की के आदेश हुए तो सुक्खू हतप्रभ रह गए और उने सलाहकार बगले झांकने लगे।बाद में अदालत में पैसे जमा कराने पड़े।
इतना कुछ होने के बावजूद भी सुक्खू सरकार ने सबक नहीं लिया। इससे पहले रेरा के अध्यक्ष के मामले में सरकार एक बार दोबारा से टकराव में आ गई। हाईकोर्ट ने रेरा अध्यक्ष के तौर पर पूर्व मुख्य सचिव राम दास धीमान की तैनाती की सिफारिश कर दी । लेकिन सुक्खू सरकार धीमान को तैनाम नहीं करना चाहती थी। इस तैनाती की अधिसूचना तय अवधि में होनी थी। लेकिन सुक्खू सरकार ने तय अवधि के भीतर अधिसूचना की जारी नहीं की। चूंकि मामला अदालत में था तो जब जवाब तलब किया गया तो अदालत में सरकार ने बचकाना जवाब दिया कि वो रेरा के कार्यालय को ही धर्मशाला ले जा रहे है ऐसे में फाइल कहीं उलट पुलट हो गई। चलों अदालत ने अगली तारीख दे दी । लेकिन सुक्खू सरकार ने तब भी धीमान के आदेश जारी नहीं किए तो अदालत ने पांच लाख रुपए का जुर्माना लगा दिया। सुक्खू और उनकी सरकार को तब जाकर कहीं झटका लगा और आनन-फानन में धीमान को रेरा का अध्यक्ष नियुक्त करना पड़ा।सुक्खू व उनके सिपहसलार देखते ही रह गए।
यही नहीं पूर्व मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना को मुख्य सचिव के पद पर छह महीने का सेवा विस्तार दे दिया गया। ये जानते हुए कि ये मामला अदालत में लंबित है और सक्सेना को लेकर अदालत की ओर से सरकार को बार-बार हिंट दिए जाते रहे लेकिन सुक्खू ने अपनी नहीं छोड़ी। । उन्होंने सक्सेना को सेवा विस्तार दिया। सेवा विस्तार समाप्त होने के बाद भी सुक्खू का सक्सेना से मोह नहीं छूटा और अब उन्हें बिजली बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त कर रखा है। यहां पर सुक्खू सरकार ने कांड किया हुआ है। सक्सेना की तैनाती के बाद अब कार्मिक विभाग से सक्सेना का निष्ठा का प्रमाणपत्र याना (इंटेग्रेटी सर्टिफिकेट)मांगा गया है। कायदे से ये प्रमाणपत्र नियुक्ति से पहले लिया जाता है। लेकिन सुक्खू और उनकी सरकार के अपने ही कायदे कानून है।
उधर, सक्सेना को लेकर एक मामले में हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा हुआ है। अब इस फैसले में क्या होता है, ये जब फैसला सुनाया जाएगा तब ही पता चलेगा।
याद रहे सक्सेना आइएनएक्स मीडिया घोटाले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदबंरम के साथ सह आरोपी है। इस मामले में अदालत में दिल्ली की सीबीआइ अदालत में चालान पेश हो चुका है लेकिन लंबे अरसे से आरोप निर्धारित यानी चार्ज फ्रेम नहीं हुए हैं।प्रदेश हाईकोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार से सक्सेना के खिलाफ प्रासिक्यूशन सेंक्शन यानी अभियोजन मंजूरी के दस्तावेज रिकार्ड पर लेने के आदेश दिए थे। मामले में सुनवाई पूरी हो चुकी है। अब दीपावली की छुटिटयों की बाद कभी फैसला आ सकता है।
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