शिमला। बतौर कुलाधिपति राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल की ओर से नौणी व पालमपुर विवि के कुलपतियों के नियुक्तियों के लिए जारी किए गए नियुक्ति विज्ञापन को प्रदेश की सुक्खू सरकार ने विदड्रा कर दिया हैं।
इस कदम से कुलाधिपति यानी राज्यपाल की ओर से इन विवि की कुलपतियों को नियुक्ति करने में की जा रही मनमानी पर सुक्खू सरकार की ओर से पाबंदी करार दिया जा रहा हैं। सुक्खू सरकार का ये बड़ा कदम करार दिया जा रहा है व इसे राजभवन के साथ टकराव की आहट माना जा रहा है।
कृषि सचिव सी पालरासू की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि इन विवि के कुलपतियों की ओर से राजभवन सचिवालय की ओर से जारी विज्ञापनों को वापस लिया जाता है और राजभवन सचिवालय की ओर से इस दिशा में शुरू की कार्रवाई को शुन्य समझा जाए।
साफ है कि इन विवि के कुलपतियों की नियुक्ति में कुलाधिपति जो प्रदेश के राज्यपाल भी है कि शक्तियों को समाप्त कर दिया है और वो भी महज सचिव स्तर के एक आइएएस अफसर के आदेशों के तहत। हालांकि सी पालरासू ने अपने आदेयश में कहा है कि सक्षम अथारिटी की मंजूरी के बाद ये अधिसूचना जारी की जा रही हैं।
इस अधिसूचना में पूरे मामले पर चर्चा की गई हैं।
याद रहे प्रदेश सरकार ने 21 सितंबर 2023 को प्रदेश विधानसभा से हिमाचल प्रदेश यूनिर्सिटीज ऑफ एग्रीकल्चर ,हार्टीकल्चरएंड फारेस्ट्री संशोधन बिल पारित किया था और इसे मंजूरी के लिए गवर्नर शिव प्रताप शुक्ल को भेज दिया था।
लेकिन गवर्नर ने इस बिल को यह कह कर सराकर को वापस कर दिया कि वो चाहते है कि संशोधन विधेयक -2023 में सुक्खू सरकार निम्न संशोधनों में दोबारा से विचार करे।
उन्होंने सरकार को लिखा कि विधेयक की धारा -4 की उपधारा -1 में कुलपति की नियुक्ति के लिए चयन समिति के गठन में संशोधन व उपधारा -2 को लोप किए जाने के स्थान पर मॉडल एक्ट फार हायर एग्रीक्लचुरल एजुकेशन इंस्टीटयूशंस इन इंडियाकी धारा 4.3 का (1) के अनुसार किया जाए।
राज्यपाल के इस तरह बिल को लौटाए जाने पर सुक्खू मंत्रिमंडल ने उनकी राय को 29 जुलाई 2025 को कैबिनेट के समक्ष में रखा व फैसला किया कि इसे विचार के लिए विधानसभा के मानसून सत्र में सदन के सामने लाया जाए।
इस बीच राजभवन सचिवालय ने नौणी व पालमपुर विवि के कुलपतियों की नियुक्ति के लिए चयन समिति का गठन करने के लिए 15 मई 2025 और 21 जून 2025 को अधिसूचना जारी कर दी । इसके बाद 21 जुलाई 2025 को इन नियुक्तियों के लिए विज्ञापन भी जारी कर दिए।
सी पालरासू की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि इस बिल पर 29 जुलाई की कैबिनेट की बैठक में जब विचार किया गया तो पाया गया कि कुलपतियों की नियुक्ति के जो चयन समिति के गठन की अधिसूचना राजभवन की ओर से जारी की गई है वो हिमाचल प्रदेश यूनिर्सिटीज ऑफ एग्रीकल्चर ,हार्टीकल्चर एंड फारेस्ट्री अधिनियम 1986 के अनुरूप नहीं है। सरकार ने इस अधिसूचना को वापस लेने के लिए राजभवन सचिवालय से आग्रह भी किया । इसके अलावा पांच अगस्त 2025 को इस बावत सरकार की ओर से राजभवन को एक चिटठी भी लिखी गई।
इसके अलावा कृषि मंत्री चंदर कुमार की ओर से भी 26 जुलाई 2025 को राजभवन सचिवालय को चिटठी लिखी गई जिसमें कहा गया है कि इस बिल पर सदन में विचार किया जाना है । ऐसे में कुलपतियों के चयन प्रक्रिया को जारी रखना गैरकानूनी ही नहीं बल्कि संविधान व लोकतंत्र के मूल्यों के भी खिलाफ है।
इसके जवाब में राज्यपाल के सचिवालय ने 6 अगस्त 2025 को साफ किया कि पालमपुर विवि में कुलपति का पद 2023 से खाली पड़ा है जबकि मई 2025 से नौणी विवि के कुलपति का पद खाली पड़ा है। साथ ही उन्होंने सुक्खू सरकार को साफ किया कि ये चयन समिति की प्रक्रिया को पूरी तरह स हिमाचल प्रदेश यूनिर्सिटीज ऑफ एग्रीकल्चर ,हार्टीकल्चर एंड फारेस्ट्री अधिनियम -1986 के तहत किया गया है और पूरी तरह से कानूनन व नियमों के मुताबिक है।
इसके बाद सरकार ने इस मामले मामने को काानूनी राय के लिए महाधिवक्ता को भेज दिया।
महाधिवक्ता ने अपनी राय में कहा कि उपरोक्त अधिनियम की धारा -24 के मुताबिक कुलाधिपति विवि का महज एक अधिकारी है।ऐसे में राज्यपाल जब बतौर कुलाधिपति अपने अधिकारों का प्रशेग करते है तो वो बतौर राज्यपाल के कर्तव्यों के तहत काम नहीं कर सकते बल्कि विवि के अधिकारी के तौर पर काम कर सकते है जो सरकार निर्देशोंको मानने के लिए बाध्य हैं।
जब सरकार ने कुलाधिपति को बिल के पारित होने तक विज्ञापनों को वापस लेने का आग्रह किया तो कुलाधिपति को सरकार के निर्देशों का पालन करना चाहिए था।
महाधिवक्ता ने कहा कि अधिनियम की धारा 8 व 23 के तहत कुलाधिपति के पास सीमित शक्तियां हैं और राज्यपाल के सचिव के पास पदों को भरने के लिए विज्ञापन जारी कर विवि के कामों में दखल देने को कोई शक्तियां नहीं है। प्रदेश सरकार ने राज्यपाल के सचिव प्रदेश सरकार के मुलाजिम है व सरकार ने सचिव को कभी भी कोई भी शक्ति नहीं दी कि वो ऐसे विज्ञापन जारी करे। ऐसे में जारी ये विज्ञापन ऐसी अथारिटी की ओर से जारी किया गया है इसे जारी करने के लिए सक्षम ही नहीं है।
महाधिवक्ता ने अपनी राय में कहा कि विज्ञापन को विवि के रजिस्ट्रार या विभाग के सचिव की ओर से जारी किया जाना चाहिए। ऐसे में इस अधिसूचना को विदड्रा करने की जरूरत है और दोबारा से जारी करने की जरूरत है ताकि तमाम पात्र लोगों को आवेदन करने का मौका मिले।
इस राय में ये भी कहा गया है कि राजभवन ने दलील दी है कि पालमपुर विवि में दो साल से नियमित कुलपति का पद खाली है।
महाधिवक्ता ने राज्यपाल को याद दिलाया कि विधानसभा ने 21 सितंबर 2023 को इस बिल को पारित कर राज्यभाल की मंजूरी को भेज दिया था जो 14 अप्रैल 2025 तक उन्हीं के पास लंबित रहा। ये संविधान के अनुच्छेद 200 का उल्लंघन था। जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है।
माधिवक्ता ने अपनी राय में कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला कानून बन जाता है। ऐसे में इस देरी के लिए सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। इसके अलावा 18 अगस्त 2025 से विधनसभा का मानसून सत्र शुरू होने वाला है ऐसे में इस बिल को दोबारा से सदन में पेश किया जाएगा।ऐसे में सरकार के सभी अंगों को एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए और राजभवन को नए बिल को पारित करने तक इंतजार करना चाहिए।
इस अधिसूचना में राजभवन को सलाह दी गई है कि वो इस विज्ञापन को विदड्रा करे और नया कानून बनने के बाद दोबारा से प्रक्रिया शुरू करे।हालांकि राजभवन ने इसे विदड्रा नहीं किया ।
इस राय के बाद सरकार ने राजभवन की ओर से जारी विज्ञापन को अपने स्तर पर विदड्रा कर दिया है। इस पर अभी राजभवन का कोई जवाब नहीं आया है लेकिन साफ है कि राजभवन और सरकार के बीच इस मसले पर टकराव सामने आने के पूरे आसार हो गए है।
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