शिमला। क्रप्शन को नेस्तनाबूद करने के दावे के साथ सता में आई वीरभद्र सिंह सरकार के बेहद करीब व लाडले पुलिस अफसरों के कारनामे चौंकाने वाले है।जिस फर्जी डिग्री मामले में मंत्रियों के सामने वीरभद्र सिंह ने खुद दिसंबर में एफआईआर दर्ज करने के लिए कहा था उसमें उनके बेहद लाडले पुलिस अफसर व एसपी शिमला डी डब्ल्यू नेगी की पुलिस ने साढ़े चार महीने बाद एफआईआर दर्ज की है।एफआईआर तो दर्ज कर दी लेकिन कई महत्वपूर्ण धाराएं गायब है।मामले हिमाचल पर्यटन विकास निगम में फर्जी डिग्री पर सहायक मैनेजर की नौकरी हासिल करने वालों से संबधित है।पर्यटन निगम के उपाध्यक्ष भी वीरभद्र सिंह के लाडले नेता हरीश जनारथा है और इस विभाग केअतिरिक्त मुख्य सचिव वी सी फारका है।वो भी वीरभद्र सिंह के लाडले अफसरों में शुमार है।
प्रदेश का गृह विभाग वीरभद्र सिंह के खुद के पास है और एसपी शिमला उनके एसपी सोलन के बाद दूसरे सबसे लाडले अफसरों में शुमार है।हैरानी की बात ये है कि पुलिस ने ये एफआईआर तब दर्ज की जब शिकायत कर्ता ने शिमला की अदालत में 14 मई को एफआईआर दर्ज करने के आग्रह के साथ सीआरपीसी की धारा 156/3के तहत अदालत में अर्जी दायर की। वीरभद्र सिंह के लाडले एसपी की पुलिस ने होशियारी दिखाते हुए 17मई को एफआईआर दर्ज कर दी।,एफआईआर न.118/15 के तहत पुलिस ने आईपीसी की धारा 420,467,468और471के तहत मामला दर्ज हुआ है। ये भी तब जब एसपी से मीडिया पिछले दो सप्ताहों से इस मामले में एफआईआर दर्ज न होने की वजह जानने की कोशिश कर रहा था।चूंकि हिमाचल में ऐसा पहले कभीनहीं हुआ हैकि फर्जी डिग्री मिल जाने के तुरंत बाद एफआईआर दर्ज न हुई हो ।ये इकलौता मामला है।
क्रप्शन को उखाड़ फेंकने को लेकर सता में आई वीरभद्र सिंह सरकार के पुलिस अफसर क्रप्शन के मामलों को कैसे डील कर रहें है उसकी ये बानगी भर है।बताते हैं कि बड़े मगरमच्छों की फाइलें एसपी शिमला के कमरे में उनकी कुर्सी के पीछे शेल्फ पर एक अरसे से धूल फांक रही है।
ये हैं ये हाईप्रोफाइल मामला
दिसंबर 2014 को पर्यटन विकास निगम कर्मचारी महासंघ के पूर्व महासचिव ओम प्रकाश गोयल ने सचिवालय जाकर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को मंत्रियों के सामने पर्यटन निगम में धूमल सरकार के कार्याकाल में लगाए गए सहायक प्रबंधकों के कारनामों की एक फाइल थमाई। ये सब कई मंत्रियों के सामने हुआ।वीरभद्र सिंह आरटीआई के तहत निकाले गए दस्तावेजों को देखकर खुद ही बोल पड़े थे कि ये मामला गिरफ्तारी का है।इसके बाद दिसंबर 2014 में ही ये मामला निगम की बोर्ड की बैठक में गया और कार्रवाई करने का फैसला लिया गया।कहा जाता है कि फर्जी डिग्री के दम पर नौकरी हासिल करने वाला दीपक कंवर पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल का करीबी था और 2012 में इन तीन लोगों को नौकरी देने के लिए बाकायदा एक स्कीम निकाली गई थी।मामला तब भी उठा था। लेकिन तबके अफसरों और धूमल की हनक के आगे मामला आगे नही चल पाया।चूंकि करने वाले वही थे तो होना भी कुछ नहीं था।
कायदे से दिसंबर में ही एफआईआर हो जानी चाहिए थी। लेकिन वीरभद्र सिंह के लाडले अफसर कैसे काम करते है इसकी झलक ये मामला पेश करता है।बोर्ड की बैठक में मामला आने के बाद दिसंबर में दीपक कंवर से कागजात मांगे गए ।वो कल्पा में तैनात था। पृथ्ाम दृष्टया सबूत होने के बावजूद उसे सस्पेंड नहीं किया गया। तब तक उसे पता चल चुका था किवो फंसने वाला है। उसने कल्पा से अपने कार्यालय के इमेल आईडी से एमडी मोहन चौहान को 2 बज कर34 मिनट पर एक दिलचस्प मेल भेजी। जिसमें कंवर ने लिखा कि उसकी मां का पीजीआई से कैंसर का इलाज चल रहा हैऔर पिता की हार्ट की सर्जरी हो रखी है।उसने कई बार उसे किन्नौर से हमीरपुर और चंडीगढ़ ट्रांसफर करने की गुहार लगाई गई लेकिन उसे ट्रांसफर नहीं किया गया।वो इतनी दूर से अपने माता-पिता की देखभाल नहीं कर सकता। इसलिए वो अपनी नौकरी से इस्तीफा देता है। इस ईमेल आने के बाद भी उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की गई।
छह जनवरी 2015 को निगम ने उसे जवाबतलबी का नोटिस भेजा। इसका जवाब निगम की डायरी में19 जनवरी को दर्ज हुआ। दीपक कंवर ने दिलचस्प जवाब दिया कि वो इस्तीफा दे चुका है।अब वो निगम का कर्मचारी नहीं है ।आगे लिखा” to state anything further shall seriously prejudice his legal rights. कंवर ने अपना लाइन ऑफ एक्शन क्लीयर कर दिया था।जब छह जनवरी के नोटिस को कोई जवाब नहीं आया तो निगम ने 14 जनवरी को अखबारों में पब्लिक नोटिस निकाल दिया। इस नोटिस में भी खामी रखी गई।लिखा गया की अगर जवाब नहीं आया तो उसे टर्मिनेट कर दिया जाएगा। डिसमिस नहीं लिखा गया। कानून में इन दोनों शब्दों के अलग- अलग मायने है।फिर भी कंवर से कोई जवाब नहीं आया तो 28 जनवरी को उसे डिसमिस कर दिया गया। साथ ही एजीएम ट्रासंपोर्ट एन के बाली को एक चिटठी लिखी गई कि वो इस मामले में आगामी कार्रवाई करे। समझा जा रहा है ये चिटठी लिखना एक खेल का हिस्सा था।बताते है कि बाली ने रामपुर केडीएसपी से ये मामला फोन पर डिस्कस किया तो डीएसपी रामपुर ने कहा कि इस मामले में एफआईआर शिमला में होनी है। अगर आप हमें भेज भी देंगे तो हम इसे शिमला को ही भेज देंगे।कंवर कल्पा में तैनात था और बाली के पास किन्नौर और रामपुर का प्रभार भी था।ऐसे में मामला रामपुर को भेजने का खेल निगम के मुख्यालय में बैठे अफसरों ने खेला।
डीएसपी से बात करने के बाद एजीएम बाली ने एमडी पर्यटन निगम मोहन चौहान को 11 फरवरी को लिखा कि इस मामले से जुड़ा सारा रिकार्ड मुख्यालय में है। ऐसे में उसे क्या कार्रवाई करनी है,उसे बताया जाए।उसने मामला मुख्यालय को भेज दिया। यहां जमकर खेल चलता रहा।इसके बाद इस मामले को एफआईआर दर्ज करने के लिए अकाउंट्स को भेजा गया।अकाउंटस ने एफआईआर दर्ज करने से मना कर दिया तो मामला एडमिनिस्ट्रेशन विंग को भेजा गया।यही नहीं इस पर लीगल राय भी ली गई।ये सब तब हुआ जब निगम के उपाध्यक्ष वीरभद्र सिंह के लाडले हरीश जनारथा हैं,एमडी मोहन चौहान है और पर्यटन के अतिरिक्त प्रधान सचिव वीसी फारका है।
इसके बाद गोयल ने 12मार्च को सीएम ,फारका,मोहन चौहान और हरीश जनारथा को एक चिटठी लिखी और इस मामले में एफआईआर दर्ज करने का आग्रह किया गया। चूंकि ये पता नहीं चला है कि फर्जी डिग्री की फैक्टरी कहां पर खुली हुई है और रेट क्या है।गिरोह तो नहीं चल रहा है कहीं।
इसके बाद निगम का प्रशासन फिर हरकत में आया ।26 मार्च को को एडीजीपी विजीलेंस को एक चिटठी लिखी गई कि निगम ने दीपक कंवर को नौकरी से डिसमिस कर दिया है।इसलिए वो आगे की कारर्वाई करे।एसपी विजीलेंस ने एक अप्रैल को निगम को लिखा कि मामला पहले ही एसपी शिमला को भेज दिया है आप वहां से संपर्क करे।अब 13 अप्रैल को निगम ने एसपी शिमला को लिखा कि इस मामले में कार्रवाई करे।
इससे पहले 22 दिसंबर 2014 को जब गोयल ने ये मामला मुख्यमंत्री के नोटिस में लाया था तो ही मामला विजीलेंस को भी भेज दिया था और विजीलेंस ने जनवरी में ही ये मामला एसपी शिमला को भेज दिया था।थाना सदर में 17-18 जनवरी को गोयल को थाने में बुलाया भी गया और उनसे मामले की जानकारी भी ली गई। लेकिन एफआईआर अब 17 मई कोअदालत में 156/3 की अर्जी जाने के बाद दर्ज की गई।
बताते हैं कि इस बीच 27 मार्च को दीपक कंवर अपनी बीवी को साथ लेकर शिकायतकर्ता गोयल के घर पहुंच गए और उनसे मामले को वापस लेने का आग्रह किया गया। उन्होंने गोयल से किस किस के बारे में क्या-क्या कहा उसका जिक्र मुनासिब नहीं है।गोयल ने ये बात उसी दिन निगम के उपाध्यक्ष हरीश जनारथा के नोटिस में ला दी।उन्होंने क्या किया किसी को कोई मालूम नहीं है।
पर्यटन निगम मुख्यमंत्री के अपने अधीन है। उपाध्यक्ष हरीश जनारथा है।आईएएस अफसरोें के स्तर पर वीसी फारका अतिरिक्त मुख्य सचिव,एमडी के तौर पर मोहन चौहान है। इसके अलावा गृह विभाग भी वीरभद्र सिंह के खुद के पास है।ऐसे में एसपी शिमला डी डब्ल्यू नेगी के अधीन थाने में ये मामले जनवरी से लंबित था।
गौरतलब हो कि ओम प्रकाश गोयल को 2003 से2008की तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार के समय भ्रष्टाचार के मामले उजागर करने को मिसकंडक्ट मानते हुए पर्यटन निगम के तत्कालीन एमडी तरुण श्रीधर ने डिसमिस कर दिया था।वो इन दिनों वीरभद्र सिंह सरकार में अतिरिक्त मुख्य सविच के पद पर तैनात है। उस समय मौजूदा परिवहन मंत्री जी एस बाली पर्यटन मंत्री होते थे।उन्होंने बाकायदा विधानसभा में कई टिप्पणियां की थी।ये मामला पहले ही ज्यूडिशियल स्क्रूटनी के तहत एडवांस स्टेज पर है व कभी भी फैसला आ सकता है।बाली इन दिनों फिर वीरभद्र सिंह की केबिनेट में मंत्री है। जबकि गोयल भ्रष्टाचार के मामले उजागर करने की सजा भुगत रहे और न्याय की लड़ाई लड़ रहे है।वीरभद्र सिंह ने उन्हें खुद हिमाचल का पहला व्हीसल ब्लोअर करार दिया है।धूमल सरकार में उनकी डिसमिसल को गलत ठहरा दिया गया था लेकिन सजा के तौर पर उन्हें कंपलसरी रिटायरमेंट दे दी थी।जिसके खिलाफ वो इस सरकारमें मुख्यमंत्री वीरभद्र से बार-बार मिले।गोयल ने सरकार में वरिष्ठ आईएएस अफसरों के भ्रष्टाचार के मामले अदालत व सरकार के समक्ष उठा रखे है। समझा जाता है कि नौकरशाह डील करने की मंशा पाले हुए है।वो चाहते है कि इन अफसरों के कारनामों को वापस ले लिया जाए।
ऐसे में जिस राज्य में क्रप्शन के मामले उजागर करना गुनाह हो वहां के मुख्यमंत्रियों ,मंत्रियों और नौकरशाहों से क्या आस लगाई जा सकती है,इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।अब बड़ा सवाल ये है कि उपरोक्त ये सारे कारनामें इन अफसरोंने खुद ही दिखाएंहै या सीएम वीरभद्र सिंह की ओर से कोई इशारा था।
(0)