शिमला। शिमला नगर निगम पर फतह पाने के लिए मोदी सरकार ने जहां अपने ताकतवर मंत्री व जे पी नडडा की कमान में विश्वस्त भाजपाइयों को मैदान में उतार दिया है वहीं कांग्रेस के प्रदेश प्रमुख सुखविंदर सुक्खू ने वजनदार मंत्री कौल सिंह, जीएस बाली व मुकेश अग्निहोत्री,आशा कुमारी को कमान देने के बजाय बिना असर के वन मंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी,प्रकाश चौधरी और डिप्टी स्पीकर जगत सिंह नेगी को मैदान में उतार कर ये साफ कर दिया है कि कांग्रेस इन चुनावों को लेकर भाजपा के मुकाबले कितना संजीदा हैं। कांग्रेस ने निगम चुनाव में वार्डों के प्रभारियों की सूची जारी की है जो दिलचस्प हैं।
मजे की बात है कि कांग्रेस की ओर से एयर कंडीशन में रहने वाले राज्य सभा सांसद आनंद शर्मा ने भी शिमला में पांव धरे है। उनके हित का एक ही वार्ड है ,वो हैं भराड़ी। आनंद शर्मा ने कोई चुनाव नहीं जीता है।न विधायकी का और न ही सांसद का। कांग्रेस के लिए कितना प्रचार कर पाएंगे ,देखना दिलचस्प होगा। वो सूट –बूट व सेल्फी नेता जरूर हैं।
वामपंथियों की वजह से उतर भारत के इस नगर निगम में मुकाबला तिकोना हो गया हैं जिस पर राजनीतिक विशलेषकों की निगाहें हैं।
कांग्रेस पार्टी इन मंत्रियों के अलावा हारे हुए नेता व शिमला में जिनका ज्यादा असर नहीं है ऐसे सीपीसी, विधायक चुनाव के प्रबंधनमें लगाए हैं। जबकि वोटिंग के लिए चंद दिन ही बचे हैं।
जब से खुखविंदर सिंह सुकखू ने कांग्रेस पार्टी की कमान संभाली हैं कांग्रेस ने सभी चुनाव हारे हैं। अब नगर निगम की बारी हैं। नतीजा 17 जून को आ जाना हैं।कांग्रेस पार्टी पहले ही प्रत्याशियों को उतारने में सबसे पीछे रही हैं। 34 सीटों के नगर निगम में केवल 28 प्रत्याशी ही उतार पाई हैं। कई बागी भी हैं। ऐसे में कांग्रेस की स्थिति इन चुनावों में क्या रहेगी,अंदाजा लगाया जा सकता हैं।प्रचार भी सबसे ढीला हैं, जो प्रत्याशी काम कर रहे हैं वो अपने दम पर लगे हैं। जिस तरह देश में कांग्रेस की स्थिति राहुल गांधी की कमान में चल रही हैं बिलकुल वही सिथति सुकखू के राज में कांग्रेस की स्थिति हिमाचल में हैं।
कांग्रेस पार्टी के पिछले हाउस मे भी 12 पार्षद थे। कांग्रेस में अंदरखाते ये जंग चल रही हैं पिछली बार कई प्रत्याशियों को मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह व उनके खेमे ने हरवाया था सो इस बार विरोधी खेमा कांग्रेसी पार्षदों को जीतने नहीं देगा।
जिस तरह से सुक्खू ने पार्टी के नेताओं की चुनाव प्रचार के लिए डयूटियां लगाई हैं,उससे साफ है कि कांग्रेस की स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं हैं। हैं।मजे की बात है शिमला के नेता व वीरभद्र के लाडले हरीश जनारथा का सूची में नाम ही नहीं हैं।हरभजन सिंह भज्जी का नाम भी नहीं हैं।
निगम चुनावों में इस बार वामपंथियों की वजह से तिकोना मुकाबला हैं।इससे पहले कभी भी नगर निगम चुनावों में तिकोना मुकाबला नहीं रहा। भाजपा व कांग्रेस के बीच हमेशा ही फिफ्टी –फिफ्टी का खेल चलता रहा था। लेकिन 2012 में तत्कालीन धूमल सरकार ने मेयर व डिप्टी मेयर के चुनाव भी प्रत्यक्ष करा दिए।जिसका सीधा लाभ वामपंथियों को मिला व मेयर व डिप्टी मेयर की कुर्सी वामपंथियों ने अपनी झोली में डाल दी।
पिछले पांच सालों में भाजपा व कांग्रेस पार्टी के अलावा वीरभद्र सरकार का कोप झेलने के बावजूद वामपंथी मेयर व डिप्टी मेयर अल्पमत में होने के बावजूद निगम को करीब-करीब भाजपा-कांग्रेस की छाया से बाहर रखने में कामयाब रहे व वीरभद्र सरकार को भी डिफेंसिव में रखा। जहां जरूरत रही वहां साथ भी लिया।
वामपंथियों ने आम आवाम से जुड़े कई मसलों पर संजीदगी जताई व जहां तक हो सका अंदरूनी तौर पर लोगों की मदद भी की।ये सब कर वामपंथियों ने अपना एक वोट बैंक खड़ा कर दिया। जो अब से पहले केवल कांग्रेस व भाजपा ही करती थी।
इस बार ये भी दिलचस्प हैं कि जब निगम चुनावों के लिए जब वोट बन रहे थे कांग्रेस पार्टी वोट बनाने में भी पिछड़ गई। सुक्खू की कमान में कांग्रेस पार्टी ज्यादा कुछ नहीं कर पाई जबकि वीरभद्र सिंह व उनका खेमा अपने क्रप्शन के मामलों में उलझा रहा। भाजपाइयों व माकपाइयों ने जमकर वोटें बनाई हैं।
इन तमाम पहलुओं का भाजपा ने सही आकलन किया व भाजपा विधायक सुरेश भारद्वाज ने खुद को खतरा समझते हुए वामपंथियों के खिलाफ चार्जशीट तक बनाव डाली।इसके अलावा भी यदा कदा व माकपाइयों पर हमला करते हैं।वो समझ चुके थे कि उनका नुकसान अगर करेंगे तो वामपंथी ही करेंगे। लेकिन कांग्रेस पार्टी में इन तमाम पहलुओं पर गौर करने का किसी के पास समय नहीं था। आलाकमान में कोई पूछने वाला नहीं हैं,प्रदेश से कोई रिपोर्ट भेजना वाला नहीं हैं। कांग्रेस के निशाने पर न तो भाजपा है न माकपा हैं । उसका प्रचार अजीब मसलों पर चल रहा हैं। अब तो वीरभद्र सिंह सरकार ये डर भी नहीं दिला सकती कि अगर पार्टी प्रत्याशी को वोट नहीं दिया तो सरकारी कर्मचारी का तबादला करा देंगे।
उनके चेले चांटे पहले ही अपना रुतबा गवां चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस का वोट बैंक वामपंथियों को शिफ्ट हो जाए तो कांग्रेस भाजपा को निगम पर भगवा लहराने से रोक सकती हैं और भाजपाइयों की नजरों मे शूल की तरह चुभ रहे वामपंथी अपनी स्थिति बेहतर बना सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो ये भाजपा को बुरे सपने जैसा होगा व इसकी गूंज वामपंथियों को नेस्तनाबूद करने की मुहिम पर चल रही मोदी-शाह जुंडली को परेशान करती रहेगी।
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