शिमला। राजधानी शिमला में जजों, नौकरशाहों और नेताओं ने निर्माण कानूनों का उल्लंघन किया हैं। ये दावा प्रदेश विवि के कानून विभाग में प्रोफेसर रहे अमर सिंह सांख्यान ने राजधानी में पर्यावरण को लेकर दो दिवसीय संगोठी में कर सबको चौंका दिया। प्रोफेसर अमर सिंह सांख्यान न्यू शिमला में तमाम कानूनों को ठेंगे पर रखकर हो रहे निर्माण को लेकर टिप्पणी कर रहे थे। उन्होंने कहा कि सरकारी अधिकारी अदालत में झूठे हलफनामें दे रहे हैं।सता केंद्रों ने सब कूछ हाइजैक कर लिया है व कुछ भी कानूनी तौर तरीकों से नहीं होने देना चाहता। प्रोफेसर सांख्यान अपनी बेबाक व कानूनसम्मत टिप्पणियों के लिए ख्यात हैं।
इसी तरह पूर्व पार्षद माला सिंह ने शिमला के दरकने ,बेतरतीब निर्माण पर योजनाकारों व नीति निर्माताओं को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि क्या वो तब जागेंगे जब पूरा शिमला बैठ जाएगा।उन्होंने कहा कि आज योजनाएं मतदाताओं को जेहन में रख कर की जा रही हैं।आलीशान भवन, आलीशान होटल बन रहे हैं। नौकरशाही व पैसे वाले कुछ भी मैनेज कर रहे हैं।उन्होंने योजनाकारों व नीति-निर्माताओं को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि जब शिमला जो पहाड़ पर बसा है तो जब ये पूरा पहाड़ बैठ जाएगा तो उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा। आखिर वो कब बोलेंगे। वो राजधानी शिमला में बढ़ रहे कंकरीट के जंगलों को लेकर अपनी चिंता बयां कर रही थी।
इसी तरह चंबा से आए एक पर्यावरणविद ने कहा कि पहाड़ों से जड़ी बूटियों का बड़े पैमाने पर दोहन हो रहा हैं। इसे रोकने के लिए सरकार क्या कदम उठा रही हैं।
ये सब लोग उतरी पश्चिमी हिमालयन शहरों के लोगों की ओर से जलवायु परिवर्तन के प्रभाव व चुनौतियों पर चर्चा करने के लिए शिमला क्लाइमेट मीट में शामिल होने आए थे।
मीट के दूसरे दिन प्रदेश सरकार के पूर्व मुख्य वास्तुकार एन के नेगी ने स्मार्ट सिटी के तरह राजधानी में हुए निर्माण को कटघरे में खड़ा कर दिया। उन्होंने ड्रैनेज सिस्टम में मचाई बेतरतीबी को उजागर कर किया और कहा कि यहां पर पहले 70 फीसद बारिश का पानी जमीन के भीतर रिस कर भूजलस्तर को रिचार्ज करता था व तीस फीसद बह जाता था। लेकिन जिस तरह से कंकरीट का जाल बिछाया जा रहा है उससे अब उल्टा हो गया हैं। 70 फीसद बारिश का पानी बह जाता है व 30 फीसद ही रिस कर भूजलस्तर को रिचार्ज करता हैं। इसके अलावा यहां पर ब्रिटिश राज के वक्त के डंगों में पत्थर लगे थे वो कहां गायब हो गए कुछ पता नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि अब ये लोगों को तय करना है कि उन्हें अपनी आलीशान कारों को पार्क करने के लिए पार्किंग चाहिए या बेहतर पर्यावरण।
उन्हेंने शिमला डवलपमेंट प्लान को भी कटघरे में खड़ा कर दिया व दावा किया के जब सरकार ने इस पर आपतियां मांगी थी तो उन्होंने भी आपति जताई थी लेकिन उस पर क्या हुआ किसी को कुछ नहीं पता। जबकि सुप्रीम कोर्ट में सरकार की ओर से कहा गया कि तमाम आपतियों पर गौर फरमा लिया गया हैं।
उन्होंने कहा कि शिमला डवलपमेंट प्लान को लेकर तमाम विकल्प खुले है। ये मामला अभी तक पूरी तरह से बंद नहीं हुआ हैं। डिपार्टमेंट आफ अर्बन डिजाइन,स्कूल आफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर नइ दिल्ली के प्रोफेसर अरुनवा दासगुप्ता ने निर्माण के पुराने व नए वास्तु डिजाइनों को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की व कहा कि मैदानों के वास्तु तौर तरीकों को पहाड़ों में लादा जा रहा हैं। उन्होंने कल्पा, सांगला और भरमौर के भवन निर्माण के पुराने व नए तौर तरीकों का तुलनात्मक खुलासा किया व कहा कि मैदानों की भवन निर्माण शैलियों को पहाड़ों में लागू नहीं किया जा सकता। ये आत्मघात करने जैसा हैं। उन्होंने कहा सैलानी यहां की सुंदरता देखने आते हैं अगर यहां पर भी कंकरीट के जंगल उग गए तो कोई नहीं आएगा। जिस तरह से चांद चुंबी भवन बन गए हें अगर हलका जलजला भी आया तो किस कद्र तबाही मचेगी इसका अंदाजा लगा कर ही डर लगने लगता हैं।
उन्होंने का कि शहरों का वास्तु गांवों में पहुंच गया हैं।
राजधानी विवि में पढ़ा रहे प्रोफेसर एस एस चंदेल चंदेल ने कहा कि भवनों के निर्माण में सौर ऊर्जा के उपयोग को लेकर अपनी बात रखी जबकि जिला सिरमौर के ट्रांसगिरी के अंधेरी गांव से आए कुलदीप वर्मा ने कहा कि प्रदेश व देशभर में फलाईओवर बन गए हैं। सड़कें बन रही हैं लेकिन गांव के लोगों के जीवन में इससे क्या बदलाव आया ये बडा सवाल हैं। वह 70 के दशक में चंडीगढ से दिल्ली जाते थे तो भी पांच से छह घंटे लगते थे व अब भी उतना ही समय लगता हैं। इसके अलावा इतने फलाइओवर बन गए हैं जब इनकी लाइफ समाप्त हो जाएगी तो इनका मलबा कहां ठिकाने लगाया जाएगा। ये किसी को पता नहीं हैं।
सब कुछ मध्य वर्ग व अभिजात्य वर्ग के लिए हो रहा हैं, देश की 40 फीसद आबादी योजनाओं के प्रारुप से बाहर हैं।
वर्मा ने बड़ा सवाल उठाया कि 2014 में युवाओं ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुंलद की थी आज वो आवाज मंद हो गई हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि युवाओं को आगे आना होगा।
इसके अलावा भी जलवायु के बदलते पैटर्न को लेकर इस मीट में चिंता जताई गई।
इस मीट का आयोजन एशिया पेसेफिक नेटवर्क फार ग्लोबल चेंज रिसर्च, हयूमन डवलपमेंट आर्गेनाइजेशन,शिमला क्लेक्टिवऔर एक्शनएड एसोसिएशन इंडिया ने मिलकर किया था।
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