शिमला। खेती के तौर तरीकों को बदल कर जमीन को जहरीला होने से बचाने व किसानों की आय में इजाफा करने के लिए शून्य लागत प्राकृतिक खेती का मंत्र जानने के लिए राजधानी के नामी सरकारी होटल पीटरहॉफ में पूरी जयराम ठाकुर सरकार मैदान में उतरी। यही नहीं इस खेती के लिए बजट में केवल 25 करोड़ का प्रावधान रखा रखा गया है। जबकि प्रदेश में 35 लाख किसान सीमांत व छोटे किसान है।
प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने इस बावत एक अरसे से अभियान चलाया हुआ था लेकिन पिछल्ली वीरभद्र सरकार में उनके इस अभियान को ज्यादा तरजीह नहीं दी। बहरहाल, आज उनके आहवान पर इस बावत कृषि विभाग की ओर से आयोजित
समारोह में मुख्यमंत्री,उनकी केबिनेट के अधिकांश मंत्री ,विधानसभा अध्यक्ष राजीव बिंदल,कई विधायकों के अलावा मुख्य सचिव
समेत बाकी सचिवों से लेकर विभाग प्रमुखों और सभी जिला के उपायुक्तों न हाजिरी भरी। कृष्ज्ञि विवि पालमपुर और बागवानी व वानिकी विवि नौणी सोलन के उपकुलपतियों ने भी इसमौके पर शिरकत की।
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस मौके पर अपने केबिनेट के सभी मंत्रियों व विधायकों से आग्रह किया कि वह अपने खेतों में इस अभियान को जमीन पर उतारे तभी बाकी लोग भी इसे अपनाएंगे। पहले खुद करेंगे तो दूसरों को भी कह पाएंगे। उन्होंने कहा कि राज्यपाल ने खुद शुन्य लागत प्राकृतिक खेती को कुरुक्षेत्र में अपने गुरुकुल में खुद आजमाया व उसके बाद वह इस पर काम कर रहे है।
प्रदेश में जैविक व शून्य लागत प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए इस बार बजट में 25 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है
। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस मौके पर कहा भी कि यह बजट बहुत कम है । उन्होंने भरोसा दिया इस अभियान में प्रदेश सरकार पूरा सहयोग देगी और अगले वित साल से और ज्यादा बजट का प्रावधान भी करेगी। उन्होंने उन्होंने कहा कि विज्ञानियों ने
किसानों व बागवानों को कीटनाशकों व रासायनिक खादों के इस्तेमाल के क्षेत्र में उस स्तर पर पहुंचा दिया है वहां से किसानों व
बागवानों का लौटना आसान नहीं है। यह बहुत जटिल है। उन्होंने कहा कि धरती मां ने कभी नहीं सोचा था कि लोग कीटनाशकों व
रासायनिक खदी से उसे इतन लाचार बना देंगे।
इस मौके पर राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि पूरे विश्व में जैविक उत्पादों के नाम पर उद्योग स्थापित करने के कारण जैविक कृषि किसानों के लिए अब लाभकारी नहीं है व रसायनिक खादों के कारण कृषि की लागत में वृद्धि हो रही है।उन्होंने कहा कि शून्य लागत प्राकृतिक कृषि प्रणाली ही केवल मात्र रसायनिक व जैविक खेती का विकल्प है। इस प्रणाली के तहत उत्पादन लागत शून्य रहती है और उत्पाद भी बिल्कुल शुद्ध होते हैं। इससे भूमि की उत्पादकता में भी वृद्धि होती है और इसके लिए पानी की भी कम जरूरत होती है।
उन्होंने कहा कि एक स्थानीय गाय 30 एकड़ भूमि में खेती करने में सहायक हो सकती है और इससे मिट्टी की उर्वरता में भी सुधार आएगा ।
इस मौके पर आंध्रपद्रेश सरकार के कृषि सलाहकार व वहां के पूर्व मुख्य सचिव टी विजय कुमार ने कहा कि चीन और भारत में
तीस गुणा की रफतार से मिटटी का विनाश हो रहा है। इसे रोका जाना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि पूरे संसार में खेती संकट में
है।
जलवायु परिवर्तन की बजह से दुनिया भर के कृषि विज्ञानिक मंथन कर रहे है कि इससे कैसे निपटा जाए। खेती की ऐसी
व्यवस्था की जरूरत हैं जो ज्यादा बारिश हो तब भी और कम बारिश हो तब भी किसानों को कम नुकसान हो। शून्य लागत
प्राकृतिक खेती से जमीन की उर्वरा को जमीन में से ही बढाÞया जा सकता है। उन्होंने कहा कि खेती स्वायल बायोलॉजी के बजाय
स्वायल केमिस्ट्री की तरफ चली गई है। जिससे जमीन जहरीली हो गई हैं और पैदावार भी जहरीली हो गइ है।
इसके नुकसान से बचने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ से लेकर दुनिया की तमान संबंधित संस्थाएं चितिंत हैं और एग्रोइकोलॉजी की ओर बढ़ने को तरजीह दे रही है।
अतिरिक्त मुख्य सचिव कृषि श्रीकांत बाल्दी ने कहा कि प्रदेश में बाकी राज्यों के मुकाबले प्रदेश में रासायनिक खादों व कीटनाशकों को बहुत कम इस्तेमाल हो रहा है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर प्रति हैक्टेयर 141 किलो रसायनिक खाद के मुकाबले प्रदेश में केवल 59 किलो रसायनिक खाद प्रति हैक्टेयर का उपयोग किया जा रहा है। इसी प्रकार पंजाब में प्रति हैक्टेयर 1164 ग्राम कीटनाशक के मुकाबले प्रदेश में केवल प्रति हैक्टेयर 158 ग्राम कीटनाशक का प्रयोग किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि लगभग 40 हजार किसान जैविक खेती कर रहे हैं।
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