शिमला। सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस ए एम खानविलकर ने कहा कि आज के युग में भी 80 से 90 प्रतिशत लोग न्याय की पहुंच से बाहर हैं जो चिंताजनक है और इस दिशा में सूचना प्रोद्यौगिकी का भरपूर इस्तेमाल किया जाना चाहिए।यही नहीं उन्होंने ये भी कहा कि 10 से 15 प्रतिशत विवादों का ही समय पर निपटारा हो पाता है,बाकी 80 प्रतिशत तक के मामलों में न्याय प्रदान करने में देरी से असंतोष की भावना पनपती है।
हिमाचल प्रदेश के चीफ जस्टिस रहे जस्टिस खानविलकर हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में हिमाचल राज्य विविध सेवा प्राधिकरण की ओर से ‘भरतीय संविधान के विभिन्न पहलू ‘ विषय पर आयोजित एक दिवसीय सम्मेलन के मौके पर बोल रहें थे। उन्होंने कहा कि देश की 80 से 90 फीसद जनता या तो अपने अधिकारों के प्रति जागरूक न होने या आर्थिक कारणों की वजह से अदालतों तक पहुंच ही नहीं पाती। इसे अलावा अदालताेें में लंबित मामलों की इतनी लंबी फेहरिस्त हैं कि केवल 10 से 15 फीसद मामलों का ही समय पर निपटारा हो पाता हैं। मौजूदा लीगल सिस्टम में खामियों के कारण 90 फीसद लोग अदालत तक पहुंच ही नहीं पाते । उन्होंने कहा कि अदालतों में जजों का अनुपात अपर्याप्त हैं । जजों व वकीलों को विशेष विषयाेें के प्रशिक्षण को कोई प्रावधान नहीं हैं। इसके अलावा बेहतर वकील, जज बनने के लिए तैयार नहीं हैं।
गौरतलब रहे कि विभिन्न हाईकोर्टों व सुप्रीम कोर्ट में जजों की कमी को देश के चीफ जस्टिस जस्टिस तीर्थ सिंह ठाकुर ने विभिन्न मंचों व मौकों पर बेबाकी से उठाया हैं व इस पर मोदी सरकार बिफरी भी हैं। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के एक और जज ने न्याय व्यवस्था की असल तस्वीर पेश कर दी हैं। चूंकि सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम ने जजों की नियुक्ति करने की सिफॅारिशें कर रखी है लेकिन मोदी सरकार ने उनमें से बहुत सी नियुक्तियां नहीं की हैं।
इस समारोह में जस्टिस खानविलकर ने कहा कि विधिक प्रणाली में विलंब से अदालतों विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगता है और इससे बचने के लिये समूचे संस्थान को सकारात्मक प्रयास करने चाहिए।
न्यायालयों में बड़ी संख्या में लंबित मामले तथा अनावश्यक दस्तावेज न्यायिक प्रणाली को प्रभावित करते हैं। पिछड़े वर्गों, दलितों, अल्पसंख्यकों, जनजातीय वर्गों व वंचितों को समयबद्ध न्याय प्रदान करना आवश्यक भी है और चुनौतिपूर्ण भी। न्यायिक प्रक्रिया को पेचीदा बनाना, वादी-प्रतिवादी को असमान अवसर प्रदान करना, मामले में सुनवाई देरी से करना, अत्यधिक कोर्ट फीस व विधिक चार्जिज, एक विवाद की पैरवी अनेक मंचों पर चलना इत्यादि से अधिक बाधा उत्पन्न हो रही है और अधिवक्ता इस समस्या का समाधान कर सकते हैं।
न्यायमूर्ति खानविलकर ने कहा कि कानून की पहुंच समाज में प्रत्येक व्यक्ति तक होनी चाहिए।व्यक्ति कितना ही प्रभावशाली क्यों न होए गलती के लिये सजा मिलनी चाहिए। थोड़ी भी ढील अथवा छूट न्याय प्रदान करने में बाधा उत्पन्न करती है।न्याय प्राप्त करने के लिये न्यायालय सर्वाधिक विश्वसनीय है तथा लोगों के पास आखिरी विकल्प भी। लोगों की न्याय की उम्मीदों को पूरा करने पूरे संस्थान की जिम्मेवारी है।
न्यायमूर्ति खानविलकर ने हिमाचल में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा कानून की जानकारी ग्रामीण तथा दूरवर्ती क्षेत्रों तक पहुंचाने तथा लोगों को विधिक सहायता प्रदान करने के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि गरीब लोग व महिलाओं को प्राधिकरण न्याय प्राप्त करने के लिये सहायता प्रदान कर रहा है और अमीर लोगों को न्याय के लिये धन की चिंता नहीं है, लेकिन मध्यम वर्गीय लोगों को न्याय प्राप्त करना काफी मुश्किल हो रहा है। ऐसे में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण ने इस वर्ग को भी सस्ते न्याय की व्यवस्था की है।
इस अवसर पर हिमाचल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूति मंसूर अहमद मीर किसी भी व्यक्ति को न्याय से वंचित नहीं रखा जा सकता। निरंतर बढ़ रही आबादी में अनेकों विविधताएं स्वाभाविक हैं और भौतिकतावाद के चलते लोगों की आकांक्षाए बढ़ रही है। ऐसे में सभी को न्याय प्रदान करना बड़ी चुनौती है।
इस मौके पर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश व हिमाचल राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष न्यायमूर्ति संजय करोल ने कहा कि प्राधिकरण ने राज्य की विभिन्न पंचायतों में 6000 पैरा लीगल वॉलन्टियरों की तैनाती की है। राज्य में मध्यस्थता के माध्यम से भी मामलों का निपटारा किया जा रहा है जिसमें 15 अधिवक्ता निःशुल्क सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव यशवंत सिंह चोगल ने सभी का आभार व्यक्त किया ।
सम्मेलन में हिमाचल हाईकोेर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति धर्म चन्द चौधरी, न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान, न्यायमूर्ति पीएस राणा, न्यायमूर्ति सुरेश्वर ठाकुर, जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर, न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल व न्यायमूर्ति संदीप शर्मा के अलावा प्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों में आर के महाजन, केसी सूद , डीपी सूद व राज्य प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष वी के सूद ने शिरक्त की।
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