शिमला। मुंबई की प्रसिद्ध साहित्यिक संस्था स्वर संगम फाउंडेशन की ओर से प्रख्यात कथाकार और सामाजिक एक्टिविस्ट एस आर हरनोट का आज मुंबई विरुंगला केंद्र सभागार मीरा रोड में कहानी पाठ और चर्चा का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम वरिष्ठ साहित्यकार धीरेन्द्र अस्थाना, हरि मृदुल और कुसुम त्रिपाठी के सानिध्य में आयोजित हुआ जिसमें मुंबई महानगर के अतिरिक्त बाहर से आए लेखक, पत्रकार और रंग कर्मी भी मौजूद रहे।
कार्यक्रम का संयोजन राकेश शर्मा, रमन मिश्र और हरि प्रसाद राय ने किया। हरनोट ने अपनी बहु चर्चित कहानी “भागा देवी का चायघर” का पाठ किया जिसने श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रसिद्ध कथाकार धीरेन्द्र अस्थाना ने कहा कि भागा देवी का चायघर हरनोट की बेहतरीन कहानी है। हालांकि कहानी एक पहाड़ पर चाय बेचने वाली स्त्री की है परंतु इसमें स्त्री मन की बारीकियों को हरनोट ने सामयिकता के साथ बयान किया है। उन्होंने कहा कि पहाड़ों पर जिस तरह बाजार गया है उसने वहां के जनजीवन को तो प्रभावित किया ही है परंतु पर्यावरण भी नष्ट हुआ है। भागा देवी दबंगता से जो प्रतिरोध करती है वह पहाड़ की स्त्रियों की मुखर आवाज है। हरनोट की कहानियों में पहाड़ और गांव की ऊष्मा दिप दिप करती रहती है और गांव की सोंधी सिंधी गंध भी महकती है। वह भाषा के साथ प्रयोग नहीं करते ना ही कोई चमत्कार करते हैं। वे सीधी सादी भाषा में कहानी कहने में यकीन करते हैं। उनकी भाषा सधी हुई और लोकजीवन से रंगी हुई है।
जानेमाने कथाकार और पत्रकार हरि मृदुल ने अपनी बात हरनोट की कहानी “बिल्लियां बतियाती है” से शुरू की और कहा कि आज तमाम कहानियों की स्मृतियां ताज़ा हो गई। भागा देवी का चायघर पर अपनी बात कहते हुए उन्होंने कहा कि कहानी में एक एक पंक्ति पहाड़ और स्त्रियों की वेदना व्यक्त करती है। पहाड़ चाहे उत्तराखंड के हो या हिमाचल के आज सभी संकट में हैं। उनकी ऊंचाइयों पर न जाने कितनी भागा देवियां इस तरह का संघर्षमय जीवन व्यतीत कर रही है। भूमंडलीकरण के इस दौर में एक जहां स्त्रियां सबसे ज्यादा आहत और शोषित हैं वहां नदियों से लेकर गांव के लोगों के जंगल और जमीन खतरे में हैं। उन्होंने हरनोट की कहानियों को वर्तमान की सच्चाइयां बताया और कहा कि आज लाखों कहानियां लिखी जा रही है लेकिन इस तरह का कहानीपन उनसे गायब है। वहां ज्यादातर विवरण और वक्तव्य मिलते हैं कहानियां नहीं।
रमन मिश्र ने हरनोट का विस्तार से परिचय दिया और कहा कि पिछले दिनों आयोजित कथा मुंबई में उनकी कमी खेलती रही इसीलिए आज उनका कथा पाठ और चर्चा हमने रखी है। वे जितने विनम्र और आत्मीय है उतने ही चर्चित लेखक भी है इसीलिए आज हरनोट देश के ही नहीं विश्व के हिंदी साहित्य में भी एक जाना पहचाना नाम है। वे एक साहित्यिक एक्टिविस्ट भी है। उन्होंने भलकू स्मृति कालका शिमला साहित्य यात्रा का उदाहरण देते हुए कहा कि ऐसा हरनोट जैसा जमीन से जुड़ा सजग लेखक ही सोच सकता है।
शैलेश सिंह ने बरसों पहले शिमला किन्नौर की अपनी यात्रा और Harnot से पहली मुलाकात का जिक्र किया और कहा कि भागा देवी का चाय जैसी कहानी Harnot ही लिख सकते हैं। वे जिस बारीकी से चीजों को देखते पकड़ते हैं वे अदभुत हैं। उनकी कहानियों में प्रतिरोध के स्वर बहुत तीखे हैं जो आज के समय की जरूरत है।
प्रसिद्ध समाजसेवी पर्यावरणविद कुसुम त्रिपाठी ने कहा कि आज स्त्री के साथ पहाड़ों के जल जंगल और जमीन को मल्टीनेशनल कंपनियां सरकारों के सानिध्य में जिस तरह विज्ञापनों, व्यापार और अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं वे भयावह है। आज स्त्री कोई देवी दुर्गा या गृहलक्ष्मी नहीं, उनके लिए केवल भोग और विज्ञापनों की वस्तु है। हरनोट की कहानियों में वहीं आवाजें, खतरे लेकर और प्रतिरोध पुरजोर दर्ज हुए हैं।
हरनोट से चर्चा करते हुए किन्नर जनजाति का भी जिक्र हुआ कि आज कैसे किन्नर शब्द थर्ड जेंडर के लिए इस्तेमाल होने लगा है। हरिमृदुल ने स्मरण किया कि हिमाचल का किन्नौर जिला किन्नर जनजाति का जिला है लेकिन यह विडंबना है कि आज किन्नर थर्ड जेंडर को कहा जाने लगा है।
स्मरण करवा दें कि जब यह शब्द थर्ड जेंडर को कहा जाने लगा तो हरनोट ने ही वर्ष 2000 में इसका विरोध किया था और बाद में मधुर भंडारकर की फिल्म ट्रैफिक सिग्नल हिमाचल में बैन हो गई। साहित्य में उनकी कहानी “किन्नर” इस बात की पुष्टि करती है। कुछ लेखकों ने वर्तमान में हो रही कुछ टीवी चैनलों में इस विषय में हुई डिबेट का जिक्र भी किया और कुंभ में टीवी डिबेटर पत्रकार और समाजसेवी जितेंद्र खुराना के कुछ साक्षात्कारों का हवाला भी दिया जिन्होंने इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर जीवित कर दिया है।
हृदयेश मयंक ने हरनोट का आभार व्यक्त किया कि उन्होंने कहानी पाठ और चर्चा के लिए समय निकाला।
धीरेन्द्र अस्थाना, हरि मृदुल, हुस्न तबस्सुम, शैलेश सिंह, हृदयेश मयंक, कुसुम त्रिपाठी, सुशीला तिवारी, ललिता अस्थाना, रमन मिश्र, राकेश शर्मा। मुख्तार खान और छत्तीसगढ़ से आये कवि बुद्धि लाल पाल भी अन्य लेखकों और साहित्य प्रेमियों के साथ मौजूद रहे।
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