शिमला। यूपीए अध्यक्ष व कांग्रेस पार्टी की मुखिया सोनिया गांधी की लाडली प्रियंका वाड्रा के छराबड़ा स्थित मकान व जमीन को लेकर आरटीआई के तहत जानकारी मांग रहे कथित आरटीआई एक्टिविस्ट के वकील ने इस मामले से खुद को अलग कर लिया है।इस महत्वपूर्ण मामले में ये घटनाक्रम तब आया जब इस आरटीआई एक्टिविस्ट ने 28 जुलाई को इस मामले में हिमाचल हाईकोर्ट की ओर से सुनाए आर्डर को लेकर मीडिया में ये दावा कर दिया कि कुछ मीडिया वालों को ये आर्डर 27 तारीख को ही मिल गया था। जबकि मामले की सुनवाई 28 तारीख को हुई थी।उन्होंने अपने दावे को पुख्ता करने के लिए इमेलज की ट्रेल्ज भी मीडिया को जारी की थी।
आरटरआई एक्टिविस्ट का ये हास्यस्पद दावा दिल्ली के मीडिया में एक दो जगह रिपोर्ट भी हो गया। प्रियंका गांधी की याचिका में इस आरटीआई एक्टिविस्ट की ओर से अदालत में पैरवी कर रहे वकील विक्रांत ठाकुर ने कहा कि उन्होंने मामले से अपनी पावर ऑफ अटार्नी वापस ले ली हैै व आरटीआई एक्टिविस्ट को भी जानकारी दे दी है।उन्होंने कहा कि वो ये सब व्यक्तिगत कारणों से कर रहे है।बहरहाल मामला जो भी हो। लेकिन सिस्टम/कम्प्यूटर/लैपटॉप की सेेटिंग में गडबड़ होने पर डेट बदल जाने के इस मामले को नया मोड़ दे दिया गया हैं।
इमेल्ज की ट्रेलिंग में एक दिन पहले की डेट आने के मसले को इस आरटीआई एक्टिविस्ट ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से लेकर राष्ट्रपति ,प्रधानमंत्री व हिमाचल के मुख्य न्यायाधीश को चिटिठयां लिखी व इन सब चिटिठयों को मीडिया को भी जारी किया गया।आरटीआई एक्टिविस्ट ने मीडिया में जाने से पहले न तो हाईकोर्ट अथारिटी से चीजें स्पष्ट करने की कोशिश की और न ही अपने वकील से ही इस मसले पर कोई बात की। यही नहीं अपने संवाददाता मित्रों से भी जानकारी नहीं ली। ऐसा क्योंं नहीं किया ये आरटीआई एक्टिविस्ट खुद ही बयां कर सकते है।
राजधानीके एक रेस्तरां में मिले भट्चार्य से पूछा गया कि क्या उन्होंने इस मामले लेकर सुप्रीम कोर्ट या अन्य जगहोंं पर जाने से पहले हाईकोर्ट के पीआरओ,किसी रिपोर्टर से ये पता करने की कोशिश की थी कि ये मेल उन्हें 27 तारीख को मिली या 28 को।उन्होंने इंकार किया कि उन्होंने किसी से ऐसा कुछ पता नहीं किया। अगर कुछ ऐसा होता तो पीआरओ की सेंट मेल में से सब कुछ पता चल जाना था। इसके अलावा कोई संवादददाता ही ऐसा दावा कर देता कि उसे ये मेल एक दिन पहले मिल गई थी। लेकिन किसी ने ये दावा नहीं किया। जो भी हो लेकिन इन सब चिटिठयों से ये भ्रम फैल गया कि इस मामले में कहीं कुछ गड़बड़ हो गई है।साथ ही ये झूठ भी फैल गया कि ये आर्डर 27 तारीख को संवाददाताओं को भेज दिया गया था।जबकि ऐसा कुछ सामने नहीं आया ।
रिपोर्टर्स आइ डॉट कॉम की ओर से की गई पड़ताल के मुताबिक अगर किसी के कंंप्यूटर/लेपटॉप में टाइम जोन गलत फीड है तो उस कंप्यूटर से जो भी मेल आगे फारवर्ड होगी वो अलग डेट जनरेट करेगा। आईटी से जुड़े विशेषज्ञ ने अनाधिकारिक तौर पर बताया कि अगर किसी के कम्प्यूटर में टाइम जोन IST+5.30 स्थान पर( UTC-12.00)international date line west फीड है तोऐसे कंप्यूटर से फारवर्ड करने पर पिछले दिन की डेट जनरेट होगी।
कंप्यूटर की इस गलफत की व्याख्या आरटीआई एक्टिविस्ट ने अलग तरीके से कर दी।बगैर पूरी तरह जांच पड़ताल किए इस तरह की जानकारियां मीडिया में जारी करना घातक होता है व विश्वसनीयता पर भी सवाल उठता है। सुर्खियां बटोरना अलग मसला है लेकिन गंभीर मसलेे व संवेदनशील संस्थानों के मामले में सुर्खियां बटोरेे जैसे करतब करना ज्यादा दिन तक नहीं चल सकते।
इस आरटीआई एक्टिविस्ट ने छराबड़ा में प्रियंका गांधी की ओर से खरीदी जमीन व वहां बन रहे उनके मकान को लेकर आरटीआई के तहत जानकारी मांगी थी। प्रदेश सूचना आयोग ने सरकार को ये जानकारी उन्हें मुहैया कराने केे आदेश दिए थे।इस पर प्रियंका गांधी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर आग्रह किया कि ये जानकारी सार्वजनिक न की जाए। मामला हाईकोर्ट में लंबित पड़ा है। 28 जुलाई को हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई की थी व आरटीआई एक्टिविस्ट की एक अर्जी को खारिज कर मामले की सुनावाई 9 सितंबर को निर्धारित तय कर दी थी।इस बीच ये बखेड़ा खड़ा कर दिया गया।
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