शिमला। मुख्यमंत्री सुखविदर सिंह सक्खू सता में आने के बाद नियुक्तियों को लेकर अपना पूरा दिल खोल दिया हैं। सुक्खू ने छह विधायकों को मुख्य संसदीय सचिवों के पद पर नियुक्ति देने के बाद अब नगरोटा बगवां से विधायक पूर्व मंत्री जीएस बाली के पुत्र रघुबीर सिंह बाली को प्रदेश पर्यटन निगम का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया हैं। उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया हैं। वीरभद्र सिंह सरकार में इस पद पर हालीलाज कांग्रेस के बेहद वफादार हरीश जनारथा उपाध्यक्ष हुआ करते थे। लेकिन तब हरीश जनारथा विधायक नहीं हुआ करते थे।
लेकिन भाजपा सरकार में जयराम ठाकुर ने इस पद को हमेशा खाली रखा । संभवत: उन्हें अपना कोई मिला ही नहीं होगा। उन्होंने पर्यटन बोर्ड में जरूर भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष रश्मिधर सूद को ताजपोशी दी थी।
सुक्खू ने कांग्रेस आलाकमान के करीबी आर एस बाली को पर्यटन विकास निगम का अध्यक्ष तो बना दिया लेकिन बडा सवाल यही है क्या यह आफिस आफ प्राफिट नहीं हैं और क्या किसी विधायक को इस पद पर बिठाया जा सकता हैं।
इससे पहले सीपीएस की तैनाती को लेकर पहले ही भाजपा का विधि विभाग मंथन करने में जुटा हुआ हैं। अब तो निगम के अध्यक्ष पद पर ही विधायक की तैनाती कर दी हैं। सुक्खू इस तरह विधायकों की नियुक्तियां कर दो धारी तलवार पर चल रहे हैं। अगर यह नियुक्तियां कानून की कसौटी पर खरी नहीं उतरी और आफिस आफ प्राफिट के दायरे में आ गई तो बाली को विधायकी छोडनी पड सकती हैं।
पूर्व में सोनिया गांधी और जया बच्चन को भी अपनी सांसदी से इस्तीफा देकर दोबारा चुनाव लडना पडा था। अब सबकी नजरें भाजपा पर है कि वह क्या करती हैं।
इसी तरह सीपीएस के पदों पर दी गई नियुक्तियां भी बेशक आफिस आफ प्राफिट के दायरे में न आए लेकिन मंत्रिमंडल की सीमित सीमा का उल्ल्ंघन तो हैं ही। प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा 12 मंत्री हो सकते है लेकिन मुख्यमंत्री व उप मुख्यमंत्री समेत अभी तक नौ मंत्री बन चुके है। जबकि छह सीपीएस हो गए हैं। ऐसे में इस सीमा का उल्लंघन हो चुका हैं। विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय के कई फैसलें इस मसले पर पहले ही आ चुके हैं।
अगर ये नियुक्तियां अदालत में संवैधानिक कसौटी पर परखी गई तो निश्चित तौर पर सुक्खू सरकार को बडा झटका लगेगा। हालांकि तब तक तो मजे कराए ही जा सकते हैं।
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