शिमला।हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल को चौधरी श्रवण कुमार कृषि विवि पालमपुर में कुलपति की नियुक्ति मामले में बड़ा झटका दिया हैं।वो विवि के चांसलर भी है।
हाईकोर्ट ने राज्यपाल की ओर से इस विवि के कुलपति की नियुक्ति को लेकर गठित की गई चयन समिति को विवि एक्ट के प्रावधानों के खिलाफ बताते हुए इस समिति को रदद कर दिया है। राज्यपाल बतौर चांसलर इस मामले में पक्ष बने हुए थे। ये फैसला न्यायाधीश न्यायमूर्ति तिरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति सुशील कुकरेजा की खंडपीठ ने सुनाया।
अमूमन कुलपतियों की नियुक्तियां कम ही अदालतों में जाती हैं। मुख्यमंत्री व राज्यपाल अपने स्तर पर ही बातचीत के जरिए सहमति कर नियुक्तियां कर देते रहे हैं। लेकिन यहां पर संभवत: सहमति नहीं बनी।
ये है मामला
राज्यपाल को हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी आफ एग्रीकल्चर,हार्टिकल्चर एंड फॉरेस्टरी एक्ट 1986 के तहत पालमपुर विवि की कुलपति की नियुक्ति को लेकर एक चयन समिति का गठन करना था।
इस एक्ट के तहत चयन समिति में एक नामित सदस्य राज्यपाल यानी चांसलर का होगा और इसके इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च के महानिदेशक और यूजीसी के अध्यक्ष बतौर सदस्य होने का प्रावधान हैं। चांसलर को इनमें से किसी एक को चयन समिति का अध्यक्ष नियुक्त करना था।
चांसलर की ओर से गठित समिति में यूजीसी अध्यक्ष और महानिदेशक आइसीएआर को सदस्य होना अनिवार्य हैं।
लेकिन राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल जो विवि के चांसलर भी है ने चयन समिति में कुरुक्षेत्र विवि के पूर्व कुलपति प्रोफेसर कैलाश चंदर शर्मा , आइसीएआर के डीडीजी (कृषि ,शिक्षा) आर सी अग्रवाल और राज्यपाल के तत्कालीन सचिव राजेश शर्मा को सदस्य शामिल कर दिया। इनमें प्रोफेसर कैलाश चंदर शर्मा को इस समिति का अध्यक्ष बना दिया गय जबकि आइएएस राजेश शर्मा बतौर चांसलर के नामित सदस्य शामिल हुए।
चांसलर की ओर से इसके अलावा विवि के कुलपति के पद के लिए यूजीसी की शर्तों के दीगर कई और शर्तें भी शामिल कर दी।
चयन समिति ने कुलपति के पद के लिए विज्ञापन जारी कर दिया। जिसे विवि के एक प्रोफेसर अजय दीप बिंद्रा ने हाईकोर्ट में चुनौती दे दी।
याचिका में कहा गया कि कुलपति के कार्यालय( संभवत: यहां चांसलर या कुलाधिपति के कार्यालय से होना चाहिए था, फैसले में कुलपति का कार्यालय लिखा गया हैं)से यूजीसी के अध्यक्ष और आइसीएआर के महानिदेशक को डीओ लेटर लिखा गया जिसमें गठित समिति के सदस्यों में से किसी को एक को समिति का अध्यक्ष अधिसूचित करने के लिए सहमति मांगी गई।
इसके बाद आइसीएआर के महानिदेशक ने छह महीने बाद जनवरी 2024 में आइसीएआर के डीडीजी के नाम की चयन समिति में बतौर सदस्य नामित करने की सिफारिश की। चूंकि डीडीजी का पद कुलपति के समकक्ष ही है,ऐसे में वो चयन समिति का सदस्य नहीं हो सकता था।
अदालत में कहा गया कि कुलपति के नियुक्ति को लेकर पहले ही छह महीने की देरी हो चुकी थी बावजूद उसके 24 अप्रैल 2024 की अधिसूचना में को डीडीजी आइसीएआर का नाम बतौर सदस्य अधिसूचित किया गया।
जस्टिस त्रिलोक सिंह चौहान ने अपने फैसले में लिखा है कि इस पैनल में चांसलर और यूजीसी अध्यक्ष ही किसी को नामित कर सकते थे और आइसीएआर के अध्यक्ष का खुद सदस्य होना अनिवार्य था।
अदालत ने कहा कि इस समिति के चयन में जिन सदस्यों का चयन किया गया वो एक्ट की धारा 24 का सरेआम उल्लंघन था।ऐसे में इस चयन समिति का कानूनन गठित समिति नहीं माना जा सकता।
खंडपीठ ने कहा कि जब समिति की गैरकानूनी है तो इस समिति की ओर से कुलपति की नियुक्ति को लेकर शुरू की गई तमाम प्रक्रियाएं खुद ही गैर कानूनी हो जाती हैं और इनके कोई मायने नहीं हैं।खंडपीठ ने अपने फैसले में इस चयन समिति को व इसकी ओर से शुरू की गई तमाम प्रक्रियाओं को भी खारिज कर दिया। ये राज्यपाल के लिए एक बड़ा झटका हैं।
पालमपुर विवि के सूत्र बताते है कि राज्यपाल किसी खास व्यक्ति को कुलपति लगाना चाहते थे लेकिन सरकार इस बात को राजी नहीं थी। इस बीच राजभवन व सचिवालय में टकराव हो गया। ऐसे में इस विवि के कुलपति का कार्यभार अस्थाई तौर किसी को दे दिया गया हैं।
याद रहे सुक्खू सरकार ने पालमपुर और नौणी विवि में कुलपतियों की नियुक्ति में राज्यपाल के दखल को कम करने के लिए विधानसभा में एक एक्ट पास कराया था। लेकिन इस पर राज्यपाल के साइन नहीं हुए।बाद में स
इसके बाद 2024 में सुक्खू ने संशोधन लाते हुए इस एक्ट दोबारा पास कराया है। लेकिन इस पर अभी साइन नहीं हुए हैं। ये कहां लटका हुआ हैं इसका पता नहीं हैं। इस एक्ट की गैर मौजूदगी में कुलपति की नियुक्ति की तमाम शक्तियां राज्यपाल के ही पास हैं।
याद रहे राजभवन और सचिवालय के बीच जंग की वजह से हिमाचल प्रदेश विवि के अलावा पालमपुर विवि भी लंबे अरसे से बिना स्थाई कुलपति के चल रही हैं। जिसके लिए मुख्यमंत्री सुक्खू के साथ-साथ राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल भी बराबर के जिम्मेदार हैं। ये दोनों की प्रदेश में टॉप फंक्शनरीज है। दोनों को सहमति को बनाकर फैसले करने चाहिए न कि जंग का अखाड़ा बनाया जाना चाहिए।
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