शिमला। 1970 के बाद किसानों की आय में महज 19 गुणा बढ़ोतरी हुई जबकि बाकी मजदूरों से लेकर बाकियों की आय में सौ से डेढ़ सौ गुणा की बढ़ोतरी आंकी गई हैं। ये दावा प्रदेश के पर्यावरणविद कुलभूषण उपमन्यु ने राजधानी के होटल होलीडे होम में आयोजित हिमआरआरआर और आरआरआर संस्थाओं की ओर से राज्य स्तरीय बहु-हितधारक परामर्श सम्मेलन में किया। कुलभूषण उपमन्यु इस सम्मेलन में आनलाइन जुडे थे और उन्होंने अपने विचार रखे।
उन्होंने कहा कि हिमाचल में खेती के हालात बहुत खराब हैं।हिमाचल में 90 फीसद आबादी खेेती से जुड़ी है लेकिन 40 से 45 फीसद आबादी तो पूरी तरह से ही खेती पर निर्भर हैं।
उन्होंने कहा कि लाहुल स्पिति जैसे जिला में तो फिर भी कुछ स्थिति ठीक है वहां पर एक बीघा खेती की जमीन को 20 से 40 हजार प्रति बीघा पर लीज ले रहे हैं। ये लाभदायक हैं।जबकि निचले हिमाचल में आमदनी कम हैं। लोग खेती छोड़ रहे है। जमीन बंजर हो गई हैं। जंगली जानवरों ने अलग से तबाही मचा रखी है जबकि आवारा पशुओं ने किसानों का जीना बेहाल कर रखा हैं।
पशुपालन आजीविका का धंधा बने ऐसी स्थितियां अभी भी नहीं बनी हैं। सरकार पावर टिल्लर पर तो सबसिडी दे रही है लेकिन अगर किसान घर में बैलों को पालता है तो उसे सबसिडी नहीं हैं। लावारिस पशुओं पर सबसिडी देने के बजाय घरों में पाले जा रहे पशुओं पर सबसिडी देने के बारे में सरकार सोच नहीं रही हैं। अगर पशुपालकों को इस तरह ही राहत मिलेगी तो पशुपालक उन्हें सड़कों में नहीं छोड़ेंगे।
उन्होंने कहा कि खेती को बचाना है तो बीज की ओर ध्यान देना होगा। बाजार में धान का हाईब्रिड बीज 380 रुपए किलो बिक रहा हैं। जो बेहद महंगा हैं। इसके अलावा फसलों की विविधता खत्म हो गई है। अब एकल फसल का प्रचलन बढ़ गया हैं।हिमाचल में खेती बारिश पर निर्भर है और जोतें छोटी हैं।
गांवों से सीजनल पलायन बढ़ रहा हैं। गांव के युवा मजदूरी के लिए हैदराबाद तक जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि आने वाले 10 -20 सालों में स्थिति और भी खराब हो जाएंगी।निचले हिमाचल में तो बागवानी की संभावना भी कम हैं।ये बिडबंना ही है कि हम लोग डीपू के राशन पर निभ्र्ज्ञर हो गए है और अपना अनाज बाहर बेच रहे हैं।
इस मौके पर डाक्टर देवाशीष सेन ने कहा कि खेती के मामले में तो सबसे बड़े विशेषज्ञ पुरुष व महिला किसान ही है जो खेतों में बरसों से काम करते हैं।हिमाचल जैसे प्रदेश में एक ही गांव में जमीन 600 मीटर से 1200 मीटर तक की ऊंचाई तक है और किसान जोखिम के साथ आजीविका चला रहे हैं।खेती में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही हैं। परिवारों के पास अब तीन चार महीने ही खाद्य सुरक्षा रह रही हैं। यानी खाद्य असुरक्षा बढ़ रही हैं।जल स्त्रोत सूख रहे हैं।
उन्होंने बीज बैंक और बायो रिसोर्स सेंटर बनाने की वकालत की।
नारी शक्ति संगठन से जुड़ी निर्मल चंदेल ने महिलाओं के नाम जमीन कराने के लिए कानून में बदलाव की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि महिलाओं के नाम जमीन होने चाहिए बेशक वो इसे बेच न पाए, इस बावत कानून में प्रावधान रहने चाहिए।
चंबा से आए मोहम्मद हुसैन ने सम्मेलन में वनाधिकार कानून का मसला उठाया व कहा कि 2006 से अब तक ग्रामीणों को एफआरए के तहत जमीन नहीं मिल रही हैं। अधिकारी निर्देश दे देते है लेकिन नीचे पटवारी व बाकी स्टाफ निर्देशों को मानता ही नहीं हैं।
इस मौके पर कुपवी में ब्लाक डवलपमेंट अफसर रहे अरविंद कुमार ने खाद्य संप्रभुता का मसला उठाया व कहा कि आज के दौर खाद्य सुरक्षा तो हासिल की जा रही है लेकिन खाद्य संप्रभुता का हाशिए पर धकेल दिया गया हैं।उन्होंने बीज बैंक तैयार करने और लैब टू लैंड कैंपेन चलाने पर जोर दिया।
पदमश्री नेकराम शर्मा ने कहा कि आने वाले दिनों में आयोजित किए जाने वाले वन महोत्सवों के दौरान वनों में मोटे अनाज के बीजों को फेंका जाएंगा ताकि वनों में ये उम सके।
मुख्यमंत्री सुक्खू ने आलू पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा
सम्मेलन में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने भी शिरकत की और घोषणा की सरका अगले बजट में आलू का 9 से 10 रुपए प्रति किलो के हिसाब से न्यूतम समर्थन मूल्य देने का प्रावधान करेगी। इसके अलावा उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती के तहत उगने वाली हर फसल को सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य के तहत लाएंगी।
अमूल भी खरीदना चाहता है हिमाचल का दूध
सुक्खू ने कहा कि सरकार जल्द ही नेशनल डेयरी डवलपमेंट बोर्ड के साथ समझौता ज्ञापन हस्ताक्षरित करने जा रही है और अमूल हिमाचल का दूध खरीदना चाहता हैं।
सम्मेलन आज दूसरे दिन भी जारी रहेगा। सम्मेलन में पदमश्री हरिमन शर्मा, डाक्टर सब्यसाची व विभिन्न संस्थाओं के प्रतिनिधियों की ओर से शिरक्त की जा रही हैं।
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