शिमला। पर्यावरण की तबाही के अंदेशे के बीच देश-विदेश के 900 सामाजिक सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों,पर्यावरण कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से जिला किन्नौर के पांगी में निर्माणधीन काशंग पन बिजली परियोजना के दूसरे व तीसरे चरण के कार्यान्वयन के लिए पर्यावरण मंजूरी न देने की मांग की है।इस बावत इन संगठनों ने मंत्रायल को एक ज्ञापन भेजा है।
स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ताओं के अलावा इस ज्ञापन पर देश की जानी मानी हस्तियों मेधा पाटकर,प्रफुल समान्त्रा, हिमांशु ठक्कर के अतिरिक्त साउथ एशियन नेटवर्क आन डैम, रिवर्स एंड पीपल जैसे संगठनों के प्रतिनिधियों ने भी दस्तख्त किए है।
इन संगठनों ने कहा है कि काशांग परियोजना को 2010 में पर्यावरण मंज़ूरी मिली थी और इसकी शर्तों के अनुसार कंपनी को 10 वर्षों में चारों चरणों का काम पूरा करना था, जो कि नहीं किया गया। अब दस साल बीत गए हैं और इस मंज़ूरी की अवधि समाप्त हो चुकी है और हिमाचल प्रदेश बिजली निगम ने मंत्रालय के सामने इसको बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है जिस पर मंत्रालय की विशेषज्ञों की समिति 15 मई को चर्चा करने वाली है। इन संगठनों की प्रतिनिधियों ने कहा है कि ‘हिमालय के इस आपदा ग्रसित क्षेत्र में यह परियोजना अब नहीं बननी चाहिए और लिप्पा और अन्य प्रभावित जन जातीय गाँव के लोगों को सुरक्षित रहना चाहिए ।
हिमालय को पर्यावरण की तबाही से बचाने के लिए आवाज बुलंद कर रही हिमधारा समूह की मांशी, सुमित महर और हिंमशी सिंह ने कहा है कि
अभी दस दिन पहले ही हिमाचल के किन्नौर जिले के पांगी क्षेत्र का पहाड़ भयंकर रूप से दरक कर जमींदोज हो गया जिसके चलते पांगी गाँव के बगीचे नष्ट हुए और एक मजदूर की मौत भी हो गयी. यह वही पहाड़ है जिसमें चार चरणों में एकीकृत 243 मेगावाट की काशांग बिजली परियोजना बन रही है। इसका 65 मेगावाट का पहला चरण पूरा हो चुका है और 3 चरण का निर्माण अभी बाकी है। पिछले 10 वर्षों से इस जन जातीय और प्राकृतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र के लोग बिजली परियोजनाओं के खिलाफ और अपने जल, जंगल ज़मीन पर अधिकार को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
इन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश पावर कोर्पोरेशन की ओर से बनायी जा रही 130 मेगावाट की काशांग जल विद्युत् परियोजना चरण दो और तीन के विरोध में प्रभावित क्षेत्र के लोग ख़ास कर ग्राम सभा लिप्पा पिछले 10 वर्षों से संघर्षरत है। विरोध की मुख्य वजह परियोजना के निर्माण और सुरंग की गतिविधि से होने वाला नुकसान है।
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