शिमला। हिमाचल प्रदेश में मीडिया सत्ता केंद्रों के हमलों से अछूता नहीं हैं।समाचार या विचार शाया (छापने)) करने पर अब एफआइआर होना मामूली सी बात हो गई हैं। इसमें आइएएस, आइपीएस अफसरों से लेकर तमाम ताकतवर लोग शामिल है।एफआइआर के अलावा प्रॉक्सी मानहानि के मुकदमे दायर करना एक जरिया सत्ता के करीब के लोगों ने निकाल लिया है। इसके अलावा पुलिस पूछताछ , पत्रकारों के मोबाइल व अन्य उपकरणों को जब्त करना भी आम होता नजर आ रहा है।
पूर्व की जयराम सरकार में ये चलना बढ़ना शुरू हुआ और कांग्रेस की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार में ये सिलकसला रुका नहीं हैं।
जयराम सरकार में देश के नामी पत्रकार विनोद दुआ बीजेपी के निशाने पर आ गए । उनके एक कार्यक्रम को लेकर लोगों ने देश भर एफआइआर दर्ज कराने का अभियान छेड़ दिया। हिमाचल के कुमारसेन थाने में बीजेपी के नेता ने उनके खिलाफ एफआइआर दर्ज करा दिया व जयराम सरकार में पुलिस विनोद को गिरफतार करने के लिए उतावली हो गई। बीजेपी ने 2022 के विधानसभा चुनावों में इस नेता को पार्टी का टिकट दिया। इसी तरह ही जयराम सरकार में ही जी टीवी के शिमला में पत्रकार के खिलाफ एफआइआर दर्ज की। इसके भीतर की कहानी कुछ अलग तरह की सामने लाने की कोशिश हुई । लेकिन बलि का बकरा शिमला स्थित पत्रकार को बना दिया गया। उसे नौकरी छोड़कर जाना पड़ा।
ये दो बड़े मामले जयराम सरकार के है। इसके अलावा एक साप्ताहिक समाचार पत्र के वरिष्ठ पत्रकार के खिलाफ तो जयराम सरकार में मुहिम छेड दी गई। मामले दर्ज कर दिए गए। उनकी इसके अलावा भी कई कुछ किया गया। क्योंकि जयराम सरकार उक्त पत्रकार से सहज नहीं थी। इसके अलावा कोरोना की आड़ में भी कई पत्रकारों पर एफआइआर हुई । इसी सरकार में कुछ लोगों ने मानहानि के प्रॉक्सी मुकदमे भी अदालत में दायर किए। एक पुलिस अफसर ने तो इसलिए एफआइआर करा दी क्योंकि एक पत्रकार ने खबर छाप दी कि उक्त पुलिस अफसर व कई अन्यों अफसरों ने शिमला व दिल्ली दोनों जगहों पर सरकारी आवास हथियाएं हुए हैं।
इसके बाद सुक्खू सरकार सत्ता में आई तो उम्मीद थी ये सिलसिला रुकेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आइएएस अफसर रिषिकेश मीणा के को लेकर कोई चिटठी वायरल हुई इस पर कुछ पत्रकारों ने खबर छाप दी तो मीणा ने मानहानि का मुकदमा दायर नहीं किया ,बालूगंज थाने में एफआइआर दर्ज कराई और पुलिस ने कर भी दी। इस मामले में एक पत्रकार का मोबाइल जब्त कर लिया जो शायद अभी तक लौटाया नहीं गया है।
ताजा मामला धर्मशाला के एक पत्रकारों का है। उन्होंने हरियाणा में कांग्रेस की हार के लिए प्रदेश की सुक्खू सरकार की कारगुजारियों को भी जिम्मेदार ठहराने जैसे लोगों व अपने विचार शाया कर दिए तो शिमला के एक व्यक्ति ने उनके खिलाफ एफआइआर दर्ज करा दी। पुलिस ने उनसे बहुत लंबी पूछताछ की। ये बिलकुल तेजी से हुआ। यहां भी मानहानि का मुकदमा दर्ज नहीं हुआ बलिक एफआइआर दर्ज हुई।
इसके अलाव संजौली मस्जिद कांड हुआ तो पत्रकारों को पुलिस हुक्मनामे भेज दिए। उनके पूछताछ की गई। कहा जा रहा है कि समोसा कांड में भी पत्रकारों से कोई बातचीत या पूछताछ की गई।
इसके अलावा भी मीडिया पर प्रहार करने के तमाम तरह के तौर तरीके अपनाए जा रहे है।ये सिलसिला रुक नहीं रहा। तमाम मंचों से मीडिया पर हमला करने के प्रयास नेताओं और ताकतवर लोगों की ओर से लगातार किए जा रहे है व सत्ता प्रतिष्ठानों की ओर से ऐसे लोगों को सरेआम शह दी जा रही है।
पिछले दस –बारह सालों में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर पत्रकारों को टारगेट करने का सताकेंद्र कोई मौका नहीं छोड़ रहा है। पिछले दस सालों में किसी को अर्बन नक्सली तो किसी को वामपंथी कहकर टारगेट करना आम हो गया है। यही नहीं देशद्रोह के तक मामले दर्ज किए गए है। इन सबका सबसे ज्यादा बुरा असर जनता के जानने के हक पर पड़ा है ।
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