शिमला। सुप्रीम कोर्ट के जज मदन भीमराव लोकुर ने केंद्र व राज्यों की सरकारों के कारनामों को बेपर्दा कर ज्यूडिशियल एक्टिविज्म की आलोचना करने वालों को करारा जवाब दिया हैं। जस्टिस मदन भीमराव लोकुर ने चौंकाने वाले खुलासा किया व कहा कि निर्माण श्रमिकों का 29 हजार करोड़ रुपया सरकार के खजाने में जमा हैं लेकिन ये इन जरूरतमंदों को बांटा नहीं गया । उन्होंने कहा कि ये हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के नोटिस में आया। उन्होंने कहा कि निर्माण कामगारों के लिए 1986 में कानून अस्तित्व में आ गया था लेकिन सरकारें कानून को लागू करने में विफल रही हैं। ऐसे में कोर्ट का दायित्व हैं कि वो आगे आकर कानून को लागू कराएं।
जस्टिस मदन भीमराव लोकुर ‘’संविधान के विभिन्न आयाम’’ विषय पर राज्य विधिक सेवा अथारिटी की ओर से आयोजित कराई जा रहा व्याख्यान माला के तहत चौथे व्याख्यान के आयोजन के मौके पर शनिवार को हिमाचल हाईकोर्ट के सभागृह में बोल रहे थे। उन्होंने संविधान में प्रदत सामाजिक व आर्थिक न्याय जैसे संवेदनशील व गंभीर मसले पर अपने विचार रखे।
जस्टिस लोकुर ने ज्यूडिशियल एक्टिविज्म पर भी अपनी बेबाव राय रखी व सरकारों की करतूतों को बेपर्दा किया।उन्होंने कहा कि मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने के लिए कानून हैं लेकिन दिलली में ही पिछले दिनों मैनहोल में एक व्यक्ति की मौत हो गई। उक्त व्यक्ति को पैसे से नहीं जिंदगी से ही वंचि琭ఀत कर दिया गया।कानून था लेकिन उसे लागू नहीं किया गया।
पूर्व यूपीए सरकार में बने मनरेगा एक्ट को आश्चर्यजनक बताते हुए उन्होंने कहा कि ये गरीबों के लिए सौ दिन का काम देता था,लेकिन इसमें भी जाली हाजरियों व भ्रष्टाचार की शिकायतें आई। 15 दिनों में मजदूरी के भुगतान का प्रावधान हैं,लेकिन महीनों तक मजदूरी नहीं मिलती।देरी से मजदूरी देने पर ब्याज देने से राज्य सरकारें इंकार कर रही हैं।जबकि ये मजदूरों का अधिकार हैं। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद कुछ सुधार हुआ हैं।एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि देश की 60 फीसद संपदा 1 फीसद आबादी के पास हैं।असमानता लगातार बढ़ रही।अमीर व गरीब में विशाल खाई हैं। इस बावत संसद व विधानसभाओं को गौर करना चाहिए।
सरकारों की पोल खोलते हुए उन्होंने नेश्नल फूड सिक्योरिटी एक्ट का हवाला देते हुए कहा कि इस एक्ट के तहत हर राज्य में स्टेट फूड कमिशन गठित करने का प्रावधान हैं। लेकिन राज्यों ने आयोग का गठन नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार बोला लेकिन कुछ नहीं हुआ। राज्य ये दलीलें देते आएं कि उनके राज्यों में स्टेट क्ंज्यूमर कोर्ट हैं वो ये काम देख लेगा। जबकि स्टेट फूड कमिशन की बहुत सी अलग जिम्मेदारियां हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जब कई राज्यों के मुख्य सचि琭ఀवों को तलब किया तो तब राज्यों सरकारें हरकत में आईं।
इसी तरह घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत प्रोटेक्शन अफसर तैनात नहीं हैं, जो तैनात हैं उन्हें कानून की समझ नहीं हैं।पोसको व जूवेनाइल एक्ट की भी यही स्थिति हैं। दिक्कतें हैं लेंकिन सरकारों की इच्छा नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि लीगल एड को लेकर भी यही हाल हैं। एक सर्वे का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट जज ने कहा कि देश में दस हजार लोगों से लीगल एड को लेकर पूछा गया । सामने ये आया कि केवल तीन प्रतिशत ने ही लीगल एड ली हैं।
अंडर ट्रायल रिव्यू कमेटी बनी हुई हैं। उन्होंने खुद ही सवाल किया ,उनकी सिफारिशों का क्या हुआ।क्या उनकी सिफारिशें कैदियों व अंडर ट्रायल तक पहुंचती हैं। इन सब मसलों पर गौर करने की जरूरत हैं।
दिल्ली के ऑब्जर्वेशन हाउस की दशा का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि वहां पाया गया सौ बच्चों की क्षमता वाले आब्जर्वेशन हाउस में 258 बच्चे रह रहे थे। जब सरकार से रिपोर्ट मांगी तो जांच में सामने आया कि वहां 45 बच्चे ही ऐसे थे जो नियमों के मुताबिक वहां रह सकते थे । 200 बच्चे वहां रह रहे थे वो वहां रहने ही नहीं चाहिए थे।
जस्टिस लोकुर ने कहा कि जहां कानून हैं पर सरकारें उन्हें भी लागू नहीं कर रही हैं और कहीं जगह कानून ही नहीं हैं।ऐसे में अदालतें चुप कैसे बैठ कर रह सकती हैं। संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकार हैं उनकी रक्षा अदालतों को करनी ही हैं।इसे ज्यूडिशियल एक्टिविज्म नहीं कहा जा सकता । अदालतों को तब दखल देना पड़ रहा हैं,जब सरकारें परफार्म नहीं कर पा रहीं हैं।उन्होंने टिप्पणी की कि सरकारें संसद व विधानसभा में बनाए जाने वाले कानूनों को ही लागू नहीं करती।
महिलाओं पर एसिड हमले को लेकर कोई कानून नहीं हैं। दोषी के लिए आइपीसी में सजा का प्रावधान नहीं हैं। लेकिन महिला अपना जीवन कैसे जीएगी इस बावत कोई कानून नहीं हैं।इसी तरह संरक्षण गृहों का मसला हैं। महिलाओं के लिए कोई प्रबंध नहीं हैं। ये कैसे रेगुलेट होंगे कोई कानून नहीं हैं।
वृंदावन में रहने वाली विधवाओं की स्थिति पर भी उन्होंने कहा कि यहां पर गरीब ,परित्यक्ता ही नहीं अच्छे घरों की महिलाएं भी हैं। वो भजन करती हैं जिसकी एवज में उनको कुछ पैसे मिलते हैं। लेकिन वो नाकाफी हैं। बहुत बार भोजन भी नहीं मिलता। उनका जीवन कैसे रेगुलेट होगा,कोई कानून नहीं हैं।
कई जगह प्रेग्नेंट महिला की ही नसबंदी कर दी। ऐसी महिलाओं के लिए कोई कानून नहीं हैं। जब अदालतें दखल देती हैं तो सरकारें सोचती हैं कि अदालतें यहां क्यों दखल दे रही हैं।जहां कानून नहीं वहां पीडि़तों के अधिकार हैं व ये अदालतों का दायित्व हैं कि वो पीडि़तों के बचाव में आए। ये कोई ज्यूडिशियल एक्टिविज्म नहीं हैं।
उन्होंने सीधे तौर पर कहा कि जिसे सरकारें ज्यूडिशियल एक्टिविज्म कहती हैं वो कायदे से राज्य की डयूटी हैं। कानून हैं या नहीं।अधिकारों का संरक्षण किया जाना ही हैं। सरकारें परफार्म नहीं करती,या तो गवर्नेंस ही नहीं हैं या मिस गवर्नेंस हैं। साथ ही उन्होंने जोड़ा कि अदालते एक्स पार्टी(एक तरफा फैसला थोड़े ही लेती हैं। सरकार से जवाब मांगा जाता हैं। इसलिए सरकारों की ओर ज्यूडिशियल एक्टिविज्म की आलोचना करना सही नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि भारत ने बहुत सारी अंतराष्ट्रीय डिक्लेरेशंस,कंवेशंस,चार्टर्स व संधियां साइन कर रखी हैं। ऐसे में इन का पालन करना सरकारों का दायित्व हैं।जहां सरकारें अपने दायित्व का निर्वहन नहीं करेगी अदालतें तो दखल देगी ही
उन्होंने जनहित याचि琭ఀकाओं का समर्थन करते हुए कहा कि बहुत सी एनजीओ ने समाज में बहुत काम किया हैं। उनके पास विशेषज्ञता भी हैं। उनकी याचि琭ఀकाओं के जरिए सुप्रीम कोर्ट के सामने बहुत कुछ आया हैं व सुप्रीम कोर्ट ने आदेश भी दिए।
जस्टिस लोकुर ने कहा कि इन खामियों को लेकर सरकारों,विधायिका पर इल्जाम लगाने से कुछ हल होने वाला नहीं हैं।वो इल्जामों की वकालत नहीं करते। भविष्य को देखकर काम होना चाहिए।
इससे पहले हिमाचल हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस संजय करोल ने जस्टिस लोकुर का स्वागत करते हुआ कहा कि जस्टिस लोकुर दूसरी पीढ़ी के जज हैं। उन्होंने कहा बीते दिनों मंडी में पहाड़ी धसक जाने से एचआरटीसी बस पूरी तरह से मलबे में दब गई और उसमें 45 लोगों की मौत हो गई। जस्टिस करोल ने कहा कि हाईकोर्ट ने पहल करते हुए 45 मृतकों में से 17 के आश्रितों को मुआवजा दे दिया। इस काम में बैंच का साथ कई वकीलों ने दिया । इन 17 परिवारों में से एक परिवार इस मौके पर भी पहुंचा व जस्टिस लोकुर ने मंच से नीचे आकर इन आश्रितों को अवार्ड प्रदान किया व जस्टिस लोकुर ने इस मामले में सहयोग देने वाले वकीलों को भी सम्मानित किया। जिनमें अर्चना दता, रीता गोस्वामी,कपिल देव सूद,जी डी वर्मा, नरेश सूद,अजय कुमार सूद,जे एस भोगल,एडवोकेट जनरल श्रवण डोगरा, दलीप शर्मा, एस सी शर्मा, परनीत गुपता,डी डी शर्मा, भुवनेश शर्मा,सुभाष शर्मा,एचकेएस ठाकुरऔर सत्येन वैद्य शामिल थे। जस्टिस करोल ने इसके अलावा प्रदेश लीगल सर्विस अथारिटी की ओर से किए जाने वाले कार्यों का ब्योरा रखा
इस मौके पर प्रदेश स्टेट लीगल सर्विस अथारिटी के कार्यवाहक अध्यक्ष जस्टिस धर्मचंद चौधरी के अलावा जस्टिस त्रिलोक चौहान,जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर,जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर,जस्टिस अजय मोहन गोयल, जस्टिस संदीप शर्मा,जस्टिस चंदर भूषण बारोवालिया ने भी शिरक्त की
देखें समारोह की ये तस्वीरें-:
मंडी के कोटरुपी बस हादसे में मारे गए व्यक्ति केआश्रितों को अवार्ड देते जस्टिस मदन बी लोकुर
हिमाचल हाईकोर्ट के सभागार में हाईकोर्ट के जज व अन्य
हिमाचल हाईकोर्ट के सभागार में न्यायिक अधिकारी ,वकील व बाकी लॉ स्टूडेंट्स
हिमाचल हाईकोर्ट के सभागार में सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस मदन भीमराव लोकुर का स्वागत करते हुए हिमाचल हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस संजय करोल
ये सभी तस्वीरें हाईकोर्ट के पीआरओ संजीव सेठी व इलेक्ट्रानिक मीडिया पत्रकार राजेंद्र शर्मा के सौजन्य से
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