शिमला।दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की हिमाचल आम आदमी पार्टी के भीतर अंदर ही अंदर चल रहा घमासान पार्टी के संयोजक राजन सुशांत के इस्तीफे से बाहर आ गया है। पार्टी के संयोजक व भाजपा सरकार में पूर्व मंत्री रहे राजन सुशांत ने आलाकमान की ओर से उनके एक फैसले को दर किनार कर देने पर आम आदमी पार्टी के संयोजक पद से इस्तीफा देकर पार्टी के प्रभारी संजय सिंह व हर्ष कालरा के सामने नई चुनौती खड़ी कर दी है।हर्ष कालरा की माने तो पार्टी ने अभी तक राजन सुशांत के इस्तीफे पर कोई फैसला नहीं लिया है।
आम आदमी पार्टी के नेता हिमाचल में पार्टी को खड़ा करने के लिए एक अरसे से प्रयास कर रहे है।लेकिन भाजपा व कांग्रेस के चक्रव्यूह को पार्टी तोड़ नहीं पा रही है।भाजपा व कांग्रेस के बड़े नेता शुरू से ही अपने लोगों को आम आदमी पार्टी में घुसपैठ कराने में जुटे है।वो यहां कामयाब भी रहे हैं और वो आम आदमी पार्टी के बड़े नेता संजय सिंह व हर्ष कालरा इस खेल को अभी भी नहीं समझ पा रहे है।इस खेल के चलते लोकसभा चुनावों में पार्टी की बुरी गत हुई। उसके बाद पंचायत चुनावों में तो हिमाचल आम आदमी पार्टी के रणनीतिकार बुरी तरह से बेनकाब हो गए।इन सब विफलताओं के पीछे की सबसे बड़ी वजह जवाबदेही का न होना है।
पार्टी के सूत्रों की माने तो राजन सुशांत की उना जिला के आप नेता अनिल जोशी से खटपट चल रही थी। जिस तरह राजन सुशांत आरएसएसके नेता रहे हैं उसी तरह अनिल जोशी भी वीरभद्र सिंह सरकार में उद्योग मंत्री मुकेश अग्निहोत्री के बेहद करीबी रहे हैं। इसी खटपट के चलते अनिल जोशी ने अपने पद से इस्तीफा राजन सुशांत को भेजा व राजन सुशांत ने मंजूर कर इसे आलाकमान को भेज दिया बताते है कि आलाकमान ने राजन सुशांत के फैसले को यह कह कर दरकिनार कर दिया कि जनवरी महीने में पार्टी की शिमला में हुई बैठक में संसदीय कार्य मामलों की एक समिति बनाने का फैसला हुआ था। किसी को निकालने व पार्टी में रखने का काम पीएसी ही करे।यहां बड़ा सवाल पीएसी के गठन को लेकर भी है।
पार्टी के हिमाचली सह प्रभारी हर्ष कालरा ने कहा कि अभी तक सुशांत के इस्तीफे पर फैसला नहीं लिया गया है।सूत्रों के मुताबिक सुशांत का इस्तीफा शिमला जोन के प्रभारी डीएस पथिक की मेल से गया है। ऐसे में यहां भी कई सवाल खड़े हैं।
इस पीएसी का गठन राजन सुशांत को करना था लेकिन उन्होंने इसका गठन नहीं किया। प्रदेश की वीरभद्र सिंह सरकार , कांग्रेस पार्टी व भाजपा के प्रति प्रदेश के लोगों में बेशक जबरदस्त गुस्सा है लेकिन राजन सुशांत इस गुस्से को आम आदमी पार्टी के मंच तक नहीं ला पाए और न ही वो लोगों को पार्टी से जोड़ पाए। हालांकि जिस तरह के लोग पार्टी में घुसपैठ करने की कोशिश कर रहे हैं व थे, उन्हें पार्टी में न लेकर उन्होंने एक तरह से आम आदमी पार्टी का ही भला किया है।
पार्टी के ढांचे में अभी तक जो नेता शामिल किए गए हैं वो या तो रिटायरी कर्मचारी व अधिकारी है या फिर कांग्रेस व भाजपा के बागी है।इनका नई पार्टी खड़ी करने से ज्यादा दिलचस्पी अपने को कहीं न कहीं जोड़े रखना है।यानि की टाइम पास शगल बना हुआ है। यही वजह है कि चाहते हुए भी लोग पार्टी से जुड़ नहीं पा रहे है। जिस तरह वीरभद्र सिंह सरकार पर रिटायर्ड व टायर्ड अफसरों व नेताओं की ओर से सरकार चलाने के आरोप लग रहे है उसी तरह आम आदमी पार्टी पर भी सवाल उठ रहे है। काम करने की गति भी दोनों की एक सी है।
करीब एक साल पहले ही भाजपा में ये गहमागहमी हो गई थी कि किन किन नेताओं की आम आदमी पार्टी में घुसपैठ करानी है। जबकि वीरभद्र सिंह के कई वफादार कतार में खड़े है। धूमल व वीरभद्र सिंह की ये नीति रही है कि जो भी नई पार्टी खड़ी हो उनमें अपने वफादारों कीघुसपैठ करा दो। जब सुखराम की हिविंकां बनी थी तो उसमें वीरभद्र सिंह के कई एजेंट घुस गए थे। बाद में धूमल ने भी हिविंका के कई नेताओं को अपनी वो झोली में डाल दिया। उनमें से कई इन दिनों वीरभद्र सिंह सरकार में मंत्री कौल सिंह के साथ है। फिर पद्रेश में लोक जनशक्ति पार्टी आई।इस पार्टी में भी धूमल ने अपने लाडलों की घुसपैठ करा दी।सपा ,बसपा आदि पार्टियों ने भी पैर जमाने के प्रयास किए। लेकिन आज वो सब गायब हो चुके है।
कांग्रेस के बागी रह चुके नेता मेजर विजय सिंह मनकोटिया ने कई बार वीरभद्र सिंह के खिलाफ बागावत की लेकिन हर बार वो वीरभद्र सिंह की ही गोद में आकर बैठते रहे। 2007 के विधानसभा चुनावों में धूमल ने उनका बेजा इस्तेमाल किया और उन्हें बाद में शाहपुर से जीतने भी नहीं दिया।जनता दल का हाल भी ऐसा ही हुआ था। बगावती राजन सुशांत भी इसी तरह अपनी भाजपा में चले जाते रहे।
बहरहाल जो भी आम आदमी पार्टी के नेताओं को इस चक्रव्यूह को समझना होगा व इसकी काट निकालनी ही होगी। आरएसएस पहले ही आम आदमी पार्टी को तोड़ने के अपने काम मेंलगी हुईहै। भाजपा पृष्ठभूमि से आप में आए लोगों से आरएसएस के लोग यदा कदा बात करते ही रहते है।हो सकता है वो इस तरह की बातों को रिकार्ड भी करते हो।जबकि कांग्रेस के नेता किसी भीकीमत पर अपने लोगोंं की घुसपैठ कराने की जुगत में है। ये लोग पार्टी का क्या हाल करेंगे इसकाअंदाजालगाया जा सकता है। फिलहाल अभी सबकी नजरें पंजाब के आगामी चुनावों पर है।
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