शिमला।हिमाचल प्रदेश के इतिहास में संभवत: ये पहली बार हुआ है कि प्रदेश सरकार का प्रशासनिक मुखिया कई घंटों तक कोई नहीं रहा। भारतीय संविधान के मुताबिक मुख्य सचिव किसी भी राज्य सरकार का प्रशासनिक मुखिया होता है और प्रावधानों व परंपराओं के मुताबिक इस पद को खाली नहीं रखा जा सकता।
लेकिन 30 सितंबर को जिस दिन प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना सेवानिवृत हुए उसके बाद तुरंत किसी को भी मुख्य सचिव की कुर्सी पर नहीं बिठाया गया। रात को लगा कि शायद 1993 बैच के आइएएस अफसर के के पंत के बतौर मुख्य सचिव आदेश कर दिए होंगे लेकिन दूसरे दिन भी उनके ऐसे कोई आदेश नहीं हुए थे।
30 सितंबर और 1 अक्तूबर की रात को प्रदेश के सबसे वरिष्ठ आइएएस अफसर 1988 बैच के संजय गुप्ता को बिजली बोर्ड के अध्यक्ष पद से हटा कर उन्हें प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को अध्यक्ष बना दिया गया था। लेकिन उन्होंने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष पद का कार्यभार नहीं संभाला। इस बीच प्रबोध सक्सेना को बिजली बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया।
1 अक्तूबर को दोपहर देर बाद या समझ लिया जाए शाम को ही संजय गुप्ता से प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष पद का कार्यभार छीन लिया और उन्हें टीसीपी का अतिरिक्त मुख्य सचिव बना दिया गया साथ में मुख्य सचिव का कार्यभार दे दिया गया । अब वो अतिरिक्त मुख्य सचिव कैसे हुए ये समझ से परे है।
साफ है कि 30 सिंतबर को जब से प्रबोध सक्सेना सेवानिवृत हुए और 1 अक्तूबर की सांझ को जब संजय गुप्ता ने मुख्य सचिव का अतिरिक्त कार्यभार संभाला तब तक प्रदेश का मुख्य सचिव कौन था। ये किसी को पता नहीं है।हिमाचल के इतिहास में कम से कम ऐसा पहले शायद ही कभी हुआ हो। ये मुख्यमंत्री सुक्खू के राज में ही संभव हो पाया है।
मुख्य सचिव और डीजीपी का अतिरिक्त प्रभार
सुक्खू राज में हिमाचल प्रदेश में मौजूदा समय में न तो नियमित मुख्य सचिव है और न ही नियमित पुलिस महानिदेशक की तैनाती हुई है।
1988 बैच के आइएएस अफसर संजय गुप्ता को मुख्य सचिव का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। क्या किसी राज्य के प्रशासनिक मुखिया की जिम्मेदारी किसी अफसर को अतिरिक्त प्रभार के तौर पर दी जा सकती है। ये बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। अगर दी जा सकती है तो वो किन परिस्थितियों में दी जा सकती है।
हिमाचल में संजय गुप्ता 1988 बैच के अफसर है जबकि के के पंत 1993 और ओंकार शर्मा 1994 बैच के आइएएस अफसर है। यानी के के पंत 5 साल व ओंकार शर्मा संजय गुप्ता से छह साल जूनियर अफसर है। ऐसे में संजय गुप्ता को मुख्य सचिव का अतिरिक्त प्रभार देकर क्या सुक्खू पंत या ओंकार में से किसी को नियमित मुख्य सचिव बनाना चाहते है।अगर ऐसा था तो उनको रोका किसने था। या वो कहीं बाहर के राज्य से किसी अफसर को आयात कर हिमाचल का मुख्य सचिव बनाना चाहते है। उनकी मंशा क्या है ये किसी को पता नहीं चल रहा है लेकिन अब उनकी दक्षता कटघरे में है।
याद रहे प्रबोध सक्सेना भी 1990 बैच के आइएएस थे। वो भी संजय गुप्ता से दो साल जूनियर थे। उन्हें मुख्य सचिव ही नहीं बनाया गया बल्कि उन्हें छह महीने का सेवा विस्तार भी दिया गया वो भी तक जब वो सीबीआइ के मामले में मुजरिम है।अब उनको बिजली बोर्ड को अध्यक्ष बना दिया गया है।
पावर कारपोरेशन के मुख्य इंजीनियर विमल नेगी की मौत के मामले में 1994 बैच के आइएएस अफसर ओंकार शर्मा की जांच रपट के बाद सुक्खू उनसे खार हुए थे। इस रपट ने सुक्खू सरकार को ही इस मामले में कटघरे में खड़ा किया हुआ है। इस रपट के हाईकोर्ट में दायर करने के बाद ही सुक्खू ने ओंकार से तमाम महत्वपूर्ण विभाग छीन लिए थे। उनने ये तमाम महत्वपूर्ण विभाग 1993 बैच के आइएएस के के पंत को थमा दिए।
सक्सेना के सेवा विस्तार की अवधि समाप्त होने के बाद समझा जा रहा था कि सुक्खू पंत को मुख्य सचिव बना देंगे। लेकिन रात भर उनके आदेश नहीं हुए। दूसरे दिन यानी एक अक्तूबर को भी उनके आदेश नहीं हुए लेकिन जब सांझ को संजय गुप्ता को मुख्य सचिव के अतिरिक्त प्रभार देने के आदेश हुए तो राजनीतिक, प्रशासनिक व कानूनी गलियारों में तमाम हस्तियां चौंक पड़ी। ये आदेश अपने आप में मुख्यमंत्री सुक्खू की मंशाओं और तमाम तरह के संदेहों को उदघाटित करने के लिए काफ़ी थे।
अब हिमाचल में स्थिति ये है कि प्रदेश में न तो नियमित मुख्य सचिव है और न ही नियमित पुलिस महानिदेशक। डीजीपी का कार्यभार डीजीपी विजीलेंस अशोक तिवारी को दे रखा है। वह 1994 बैच के आइपीएस अफसर है ।यहां भी स्थिति ये है कि करीब डेढ़- दो महीना पहले केंद्र से आइपीएस अफसर श्याम भगत नेगी केंद्र के डेपुटेशन से वापस लौट आए है वो अपनी तैनाती का इंतज़ार कर रहे है। लेकिन सुक्खू ने अभी तक उनको तैनाती नहीं दी है।
नेगी 1990 बैच के आइपीएस अफसर है और अशोक तिवारी से चार साल सीनियर है। पहले कहा जा रहा था कि सुक्खू नेगी को डीजीपी बनाएंगे लेकिन अभी तक तो उनको तैनाती तक नहीं मिली है जबकि जनता के खजाने से उन पर तनख्वाह जरूर लुटाई जा रही है।
ऐसे में कहा जा रहा है कि सुक्खू राज में प्रदेश के प्रशासनिक और पुलिस ढांचे में अफरा-तफरी मची हुई है। कानूनी ढांचे की स्थिति भी ठीक नहीं है। अतिरिक्त महाधिवक्ताओं की बड़ी फौज खड़ी है लेकिन बाहर से वकीलों को बुलाकर उनके सुपुर्द मामले किए जा रहे है और जनता का खजाना लुटाया जा रहा है।
उधर कांग्रेस आलाकमान में प्रियंका गांधी और राहुल गांधी इन तमाम घटनाओं को अनदेखा कर कांग्रेस पार्टी को डुबोने की पैदा हो रही स्थितियों पर मौन है या बेखबर है।
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