शिमला। जिला सोलन के नालागढ़ विकास खंड की लग पंचायत के प्रधान मनरेगा के तहत तीन तालाबों का काम जेसीबी के जरिए कराने और कथित तौर पर मस्टरोल में मजदूरों के नाम भरने का कारनामा विभाग की ओर से कराई गई जांच में सामने आया है। इसके अलावा स्कूल के मैदान का निर्माण वन भूमि पर करने जबकि कागजात स्कूल की जमीन के मुहैया कराने के कारनामे में भी संलिप्तता पाई गई है।
इस मामले की जांच के आदेश 17 नवंबर 2021 को अतिरिक्त उपायुक्त सोलन अजय कुमार यादव ने नालागए़ के बीडीओ को दिए थे व साथ ही कहा था कि अगर कुछ गड़बड़ पाई जाती है तो आरोपियों के खिलाफ पुलिस में एफआइआर दर्ज कराई जाए।
सूत्रों के मुताबकि जांच में पाया गया है कि पंचायत में मनरेगा के तहत तीन तालाबों के निर्माण का काम मंजूर हुआ था। यह काम मनरेगा के तहत मनरेगा मजदूरों की ओर से कराया जाना थाा ताकि उनकी आय का सृजन हो सके। लेकिन प्रधान ने यह काम जेसीबी से करवाया और मस्टरोल में लोगों की फर्जी हाजिरियां दर्ज कर दी । इन लोगों के खातों में पैसा भी आया। जांच दल के सदस्य व बीडीओ कार्यालय नालागढ़ में सामाजिक शिक्षा एवं खंड योजना अधिकारी संजय वर्मा ने कहा कि जिन मजदूरों के नाम मस्टरोल पर लिखे थे उन्होंने अपने बयान में कहा कि जो पैसे उनके खाते में आए थे उन्होंने वह पैसे प्रधान को लौटा दिए व किसी ने कहा कि उन्होंने काम किया । इसके अलावा उपप्रधान से लेकर वार्ड सदस्यों तक सब ने कहा कि यह काम जेसीबी से करवाया है।
इसके अलावा स्कूल के मैदान को लेकर सामने आया कि यह वन विभाग की जमीन पर बनाया गया है। इस बावत वन विभाग व राजस्व विभाग से रपट ली गई है। लेकिन जो कागजात जमा कराए गए है वह स्कूल की जमीन के कराए गए है। यहां भी गड़बड़ी पाई गई है।
उन्होंने कहा कि जांच रपट आला अधिकारियों को भेज दी गई है।
उधर, बीडीओ नालागढ़ ओम पाल ने दिलचस्प जवाब देते हुए कहा कि उन्होंने रपट जिला उपायुक्त को भेज दी है लेकिन ये पूछे जाने पर कि रपट में क्या है इस बावत वह रपट देखने के बाद ही कुछ बता सकेंगे। यह पूछे जाने पर कि अतिरिक्त उपायुक्त की ओर से जांच के लिए लिखी चिटठी में तो यह कहा गया है कि गड़बड़ी मिलती है तो पुलिस में एफआइआर कराई जाए। इस बावत उन्होंने कहा कि इस बावत सोमवार व मंगलवार को ही कुछ बता सकते है।
उधर इल्जाम लगाए जा रहे है कि जयराम सरकार के करीबी अर्की के एक भाजपा नेता इस मामले में शामिल लोगों को बचाने की जुगत में लगे है लेकिन इस बावत आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा जा रहा है।
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