शिमला। अगर इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज के क्षेत्रीय कैंसर केंद्र के साथ 45 करोड़ की लागत से बनने वाला टर्शरी कैंसर केंद्र हाथ से निकल गया तो इसका कलंक एनजीटी नहीं खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर व स्वास्थ्य मंत्री विपिन परमार के माथे लगने वाला हैं।इस टर्शरी कैंसर सेंटर का बनना मुश्किल में पड़ा गया हैं। अगर निर्माण शुरू नहीं हुआ तो इस कैंसर अस्पताल के निर्माण व उपकरणों की खरीद के लिए मंजूर 45 करोड़ की रकम आज से पांच महीने बाद 31 मार्च 2019 को लैप्स हो जानी हैं। इसमें से 1 5 करोड़ की रकम की पहली किश्त इंदिरा गांधी मेडिकल अस्पताल के खजाने में प्एक अरसे से पड़ी हुई हैं। अगर यह पैसा लैप्स हो गया तो यह अस्पताल कभी नहीं बन पाएगा और प्रदेश के कैंसर रोगियों को बेहतर इलाज से महरूम ही रहना पड़ेगा।
प्रदेश में हर साल पांच से छह हजार नए कैंसर रोगी सामने आ रहे हैं। इनमें से अधिकांश गरीब होते हैं। यह अस्पताल इन्हें ही बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने के लिए मंजूर हुआा था। केंद्र ने इस तरह के सेंटर 28 राज्यों को मंजूर किए थे व शर्त लगाई थी के जब निर्माण को जारी किश्त का खर्च हो जाएगा व उपयोगिता प्रमाण पत्र केंद्र को दे दिया जाएगा तो अगली किश्त दी जाएगी। यह सेंटर जनवरी 2016 में मंजूर हो गया था व 15 करोड़ की पहली किश्त आ चुकी हैं।बाकी राज्यों ने इस तरह के सेंटर को बनाने का काम कभी का शुरू कर दिया हैं। लेकिन प्रदेश में एक र्इंट तक नहीं लगी हैं।
इल्जाम है कि प्रदेश के नौकरशाह व दोनों पार्टियों के नेता इस अस्पताल के निर्माण को इसलिए नजरअंदाज कर बैठे हैं क्योंिक वह एनजीटी के 16 नवंबर 2017 के फैसले को इस अस्पताल की आड़ में तारपीडो कर जाठिया देवी में बनने वाली हिमुडा की बहुमंजिला कालोनी और स्मार्ट सिटी के निर्माण के लिए अदालत के जरिए कोई रास्ता निकाल सके। कोर एरिया हाईकोर्ट में वकीलों के बहुमंजिला चैंबर सरेआम बन रहे हैं। इसके अलावा राजधानी में कई जगहों पर अवैध निर्माण जारी हैं। इल्जाम है कि नेताओं व नौकरशाहों के व्यक्तिगत हित इन कालोनियों से ज्यादा सधते हैं, बजाय कैंसर अस्पताल के निर्माण से ।
याद रहे इस अस्पताल के लिए डाक्टरों ने 2016 में ही आणविक ऊर्जा नियामक प्राधिकरण से मंजूरी ले ली थी व जगह चिन्हित कर ली थी। जिस जगह यह बनना था वहां तीन पेड़ थे। इसलिए मामला मंजूरी के लिए 2017 में केबिनेट में चला गया। लेकिन वहां से कुछ हुआ नहीं।
इस बीच योगेंद्र मोहन सेनगुप्त की ओर शिमला में बेतरतीब तरीके से बन रहे भवनों को लेकर एनजीटी में दायर याचिका के अंतरिम आदेशों को देखते हुए वन विभाग ने क्षेत्रीय कैंसर सेंटर के डाक्टरों को बताया कि यह मामला एनजीटी के समक्ष जाना हैं। इसलिए क्षेत्रीय कैंसर केंद्र ने इस मामले को एनजीटी के समक्ष रखने के लिए पूर्व की वीरभद्र सिंह सरकार को भेज दिया। जानकारी के मुताबिक सितंबर -अक्तूबर 2017 में इस मामला सरकार के पास चला गया । लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया । न तब के मुख्य सचिव ने और न ही तत्कालीन स्वास्थ्य सचिव ने।तब मुख्य सचिव वीसी फारका थे और स्वास्थ्य सचिव प्रबोध सक्सेना थे। तब के स्वास्थ्य मंत्री तब चुनाव में व्यस्त थे। सूत्र बताते है कि फाइल कानूनी राय के लिए विधि विभाग को भेज दी व महीनों तक वह वहीं पड़ी रही। जबकि नौकरशाहों को इस मामले को आगे बढ़ाना चाहिए था।
इस बीच 16 नवंबर 2017 को पंचाट का फैसला आ गया और राजधनी शिमला में निर्माण पर पाबंदी लगा दी गई। लेकिन इस फैसले में एनजीटी ने प्रावधान कर दिया कि अस्पताल व बाकी जरूरी सेवाओं के लिए निर्माण किया जा सकता हैं। इसके लिए एनजीटी ने हाइ पावर कमेटी गठित कर दी। इसके तहत एक इंप्लीमेंटेशन कमेटी बनाई और एक सुपरवाइजरी कमेटी गठित करने के निर्देश दिए। इसके अलावा इस फैसले के तीन सप्ताह के भीतर विभिन्न विभागों के अधिकारियों की बैठक कर मेमोरेंडम आफ प्रैक्टिस तैयार करना था।
लेकिन यह मेमोरेंडम आफ प्रैक्टिस आज साल बाद भी तैयार नहीं हुआ हैं। निदेशक टीसीपी व इंप्लीमेंटेशन केमेटी के प्रमुख राजेश्वर गोयल ने कहा कि जून की बैठक में इस बावत कुछ विभागों से टिप्पणियां मांगी थी व दो नंवबर को होने वाली बैठक में इसे मंजूर किए जाने की संभावना हैं।
एनजीटी के फैसले के मुताबिक निर्माण व बाकी चीजों के लिए विभागों व निजी व्यक्तियों को हाइ पावर कमेटी के पास आवेदन करना था। लेकिन किसी को मालूम ही नहीं था कि आवेदन कहां करना हैं। जबकि अदरखाते नौकरशाहों व नेताओं ने कहना शुरू कर दिया कि कैंसर अस्पताल का निर्माण अब नहीं हो सकता। क्योंकि यह कोर एरिया में हैं और यहां हर तरह के निर्माण पर एनजीटी ने पाबंदी लगा दी हैं।
इसे गलत बताते हुए जब एनजीटी में याचिका दाखिल करने वाले याचिका कर्ता योगेंद्र मोहन सेनगुप्त ने क्षेत्रीय कैंसर अस्पताल जाकर कैंसर अस्पताल के बावत पड़ताल की तो डाक्टरों को पता चला कि वह टीसीपी निदेशक व इंप्लीमेंटेशन कमेटी के प्रमुख के पास अस्पताल का मामला भेज सकते हैं। सेनगुप्त ने अगस्त से लेकर कैंसर अस्पताल को लेकर पंचाट के फैसले में पांबदी नहीं हैं, इस बावत प्रधान सचिव स्वास्थ्य,अतिरिक्त मुख्य सचिव लोक निर्माण विभाग व निगमायुक्त को चिटिठयां लिखी । इन चिटिठयों में कहा कि अस्पताल और दूसरी जरूरी सेवाओं के लिए निर्माण पर पाबंदी नहीं हैं। इस तरह के मामलों को कमेटियों में ले जाना होगा। लेकिन सचिवालय स्तर पर कुछ नहीं हुआ।
डा: गुपता ने कहा कि उन्हें लगा कि इंपलीमेंटेशन कमेटी के पास जाने का िवकल्प बचा हैं तो उन्होंने मामला इंप्लीमेंटेशन कमेटी को सीधे भेज दिया। ( दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि एनजीटी का फैसला 16 नवंबर 2017 को आ गया व 26 दिसंबर को जयराम ठाकुर सरकार ने सता संभाल ली व सता संभालने के बाद ही जयराम ठाकुर सरकार ने विभिन्न कामों व पिछल्ली सरकार के फैसलों की समीक्षा की थी। लेकिन इस टर्शरी कैंसर अस्पताल का कहीं जिक्र नहीं आया। यही नहीं इंप्लीमेंटेशन व सुपरवाइजरी कमेटी का गठन भी मार्च में जा कर किया ।)
जाहिर है जब मेमोरेंडम आफ प्रैक्टिस ही मंजूर नहीं हैं तो किसी को क्या पता कि उसे अपने मामले कैसे कहां भेजना हैं। यह मामला पांच अक्तूबर को कमेटी की बैठक में लगा भी लेकिन कहा गया कि इसे नगर निगम की ओर से भेजा जाए। कैंसर केंद्र ने इसे नगर निगम को भेज दिया। अब नगर निगम ने अस्पताल से लोकनिर्माण विभाग, वन विभाग की एनओसी व ततीमा मांगा हैं। यहां महत्वपूर्ण यह है कि यह सब मंजूरियां पहले ही दी जा चुकी हैं। निगम के अधिकारियों ने कहा कि उनके पास शनिवार शाम तक आइजीएमसी से फाइल नहीं आई थी। निगम के अधिकारियों के मुताबिक पहले मंजूरियां दी जा चुकी हें, इस बावत उन्हें मालूम नहीं हैं। उन्हें मामला जरूरी लगा तो उन्होंने बिना पढ़े फाइल बाइहैंड आइजीएमसी को भेज दी ताकि जल्दी एनओसी मिल जाए। याद रहे कि निगम के वास्तु योजनाकार हाल ही में नगर निगम में आए हैं। पहले वाले वास्तुकार बीमार चल रहे हैं सो छुटटी पर हैं। अस्पताल प्रशासन ने एनओसी के लिए विभागों को चिटिठयां लिख दी हैं। एक तारीख एनओसी मिलेगी या नहीं किसी को पता नहीं हैं। कायदे से इसे मुख्यमंत्री , स्वास्थ्य मंत्री या स्वास्थ्य सचिव को अपने हाथ लेना चाहिए था।
बहर हाल ,पहले यहां तीन पेड़ कटने थे । लेकिन एक पेड़ पिछल्ली बरसात में व दूसरा इस बरसात में गिर गया। डाकटरों का कहना है कि तीसरे पेड़ को काटने की जरूरत ही नहीं हैं। ड्राइंग व जियोलाजिकल रिपोर्ट पहले ही मंजूर हो चुकी हैं। पर अब दो नवंबर को होने वाली इंप्लीमेटेशन कमेटी की बैठक के लिए कुल दो वर्किंग दिन बचे हैं । अगर इन दो दिनों में यह फाइल नगर निगम नहीं पहुंची तो इस अस्पताल का मामला दो नंवबर को इंप्लीमेंटेशन समिति मे नहीं लग पाएगा। इसके बाद यह मामला 13 नवंबर को होने वाली सुपरवाइजरी कमेटी में जाना हैं।
अगर इस महीने यह कमेटी में नहीं गया तो फिर मामला दिसंबर के लिए लटक जाएगा। एनजीटी के फैसले के मुताबिक इंप्लीमेंटेशन कमेटी की बैठक महीने में एक बार और सुपरवाइजरी कमेटी की बैठक तीन महीने में एक बार होनी हैं। नवंबर के बाद सुपरवाइजरी कमेटी की बैठक फरवरी में होगी। ऐसे में दिसंबर में होने वाली इंपलीमेंटेशन कमेटी की बैठक में अगर मंजूरी मिल भी गई तो निर्माण का क्या होगा कुछ नहीं पता। क्योंकि 30 मार्च को पैसा लैप्स हो जाना हैं।
इंप्लीमेंटेंशन कमेटी के प्रमुख राजेश्वर गोयल ने कहा कि दो नवंबर की बैठक में अगर कैंसर अस्पताल का मामला आया तो विचार होगा। हालांकि वह साफ करते है कि एनजीटी के आदेश में कोर एरिया में तो निर्माण पर पूरी तरह से पांबदी हैं और यह अस्पताल कोर एरिया में ही बन रहा हैं।मार्च से अब तक इंप्लीमेंटेशन कमेटी के समक्ष 11 मामले आ चुके है व इनमें दो को मंजूरियां दे दी गई हैं। गोयल ने कहा कि यह दोनों की मामले कोर एरिया से बाहर के हैं। ऐसे में टर्शरी कैंसर अस्पताल का मामले में क्या होगा यह दो नवंबर को होने वाली बैठक में ही तय होगा अगर यह मामला बैठक में आया तो जो भी फैसला होगा उसे वह 13 नवंबर को होने वाली सुपरवाइजरी कमेटी में ले जाएंगे। सुपरवाइजरी कमेटी के मुखिया अतिरिक्त मुख्य सचिव शहरी विकास व नगर नियोजन हैं।
वीरभद्र सिंह विनीत चौधरी, अग्रवाल व प्रबोध सक्सेना की भूमिका पर सवाल
यह अस्पताल कभी का बनना शुरू हो जाता अगर पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने यह नहीं कहा होता कि इसे ऐसी जगह बनाया जाएगा जहां पर फूल व क्यारियां हो। बाद में समझाया गया कि केंद्र की शर्तों के मुताबिक यह वहीं बनेगा जहां पर क्षेत्रीय कैंसर केंद्र हैं। बहुत सा समय इसी में चला गया। इस बीच सुपर स्पैशलियटी की बात चली व कहा गया कि ये सुपर स्पैशिलयटी चमियाणा में बनाई जाएगी तो टर्शरी कैंसर सेंटर भी वहीं बनेगा। इस बीच नौकरशाह विनीत चौधरी ने इसे पीपीटी मोड में चलाने का काम शुरू किया। लेकिन वक्त जाया होने के अलावा कुछ नहीं हुआ। रिजवी ने इसके लिए पैसे का इंतजाम करने की हामी भर दी थी लेकिन वह प्रतिनियुक्ति पर केंद्र में चले गए। इसके बाद अस्पताल के कर्ताधर्ता विनीत चौधरी के पास जाते रहे तो उन्होंने कह दिया कि रिजवी से पैसे ले लो। प्रबोध सक्सेना के वक्त भी कुछ नहीं हुआ। मौजूदा मुख्य सचिव बी के अग्रवाल जयराम सरकार में लंबे समय तक स्वास्थ्य सचिव रहे लेकिन उन्होंने भी कुछ नहीं किया। जबिक वह पिछले दस महीने में बहुत कुछ कर सकते थे। वह अपनी चीफ सेक्रेटरी की पदवी हासिल करने के जुगाड़ में ही लगे रहें। वह चीफ सेक्रेटरी बन भी गए हैं लेकिन टर्शरी कैंसर सेंटर पर पर तलवार लटक गई हैं।अब कुछ दिन पहले आर डी धीमान अतिरिक्त मुख्य सचिव स्वास्थ्य बने हैं। लेकिन सचिवालय में सुपरइंटेनडेंट से लेकर स्पेशल सेक्रेटरी तक किसी को कुछ पता नहीं है कि इस अस्पताल को लेकर कहां क्या चल रहा हैं।
जो भी हो लेकिन दस महीने में यह मामला जयराम ठाकुर और विपिन परमार की प्राथमिकता में आ जाना चाहिए था। ऐसा नहीं है कि विपिन परमार को ब्रीफ नहीं किया गया था लेकिन उन्होंने बावजूद इसके कुछ नहीं किया।
नडडा के अफसरों को भी मलाल
इस अस्पताल को लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की बैठकं होती रहती हैं व इस अस्पताल को लेकर हर बार राज्य के प्रतिनिधियों को पूछा जाता हैं। नडडा के अफसर बैठकों में सरेआम कहते हें कि वह बाकी जगह तो अस्पमाल का काम कराने में कामयाब रहे लेकिने अपने ही मंत्री के राज्य में काम शुरू कराने में नाकाम रहे हैं। राज्य सरकार के नौकरशाहों के अलावा वीरभद्र ,कौल सिंह की तरह ही जयराम व विपिन परमार भी इस मामले में नकारे साबित हुए हैं।
क्यों जरूरी हैं टर्शरी कैंसर सेंटर
प्रदेश में हर साल पांच से छह हजार कैंसर के नए रोगी सामने आ रहे हैं। इनमें से तीन हजार के करीब रोगी इंदिरा गांधी क्षेत्रीय कैंसर अस्पताल में इलाज के लिए आते हैं। डाक्टर मनीष गुप्ताने कहा कि टर्शरी कैंसर केंद्र बनने से अस्पताल में स्तरोन्न्त उपकरण आ जाएंगे व इन उपकरणों से जहां कैंसर हैं वहीं पर रेडिएशन देने की जरूररत होगी। अभी भी इलाज हो रहा है व रेडिएशन दिया जा रहा है लेकिन अभी जहां कैंसर हैं वहीं ही नहीं उसके आस पास का क्षेत्र भी रेडिएशन की चपेट में आ जाता हैं व इस प्रकिया में कई कोशिकाएं खत्म हो जाती हैं। रोगी का इलाज तो हो जाता है लेकिन उसे इसकी ताउम्र भारी कीमत चुकानी पड़ जाती हैं।
इसके अलावा अस्पताल में गरीब रोगी आते हैं। यहां पर अभी 45 बिस्तरें हैं और रोजाना सौ से 110 रोगियों की रेडियोथेरेपी की जाती है जबकि 50 से 60 कीमियों की जाती हैं। उन्होंने कहा कि यहां इतनी भीड़ है कि एक से डेढ महीने की डेट दी जाती हैं जबकि पीजीआइ में तीन महीने की डेट दी जातीहैं। अगर कैंसर मरीजों को वह चंडीगढ़ व पंजाब में भेजते हैं तो वहां पर एक से डेढ लाख रुपए का खर्च हैं। इसके अलावा 30 से 45 दिन तक वहां रहना होगा इसका खर्च अलग हैं। अगर पीजीआइ भी भेजे तो वहां भी 20 से 30 हजार रुपए का खर्चा हैं। अगर यहां पर टर्शरी कैंसर अस्पताल बनता है तो सबसे ज्यादा फायदा प्रदेश के मरीजों को होगा। होगा। अगर अभी यह अस्पताल नहीं बना तो फिर कभी नहीं बनेगा। प्रदेश सरकार इतना पैसा कभी भी खर्च नहीं कर सकती।
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