शिमला।देश के सबसे शक्तिशाली कारपोरेट घराने व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सखाओं में शुमार गौतम अदाणी की अदाणी पावर कंपनी को हिमाचल हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा हैं। प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर और विपिन चंदर नेगी की खंडपीठ ने अदाणी पावर की ओर से 280 करोड़ रुपए की अप फंर्ट मनी व इस रकम पर 2008 से12 फीसद ब्याज मांगने की उसकी अपील को खारिज कर दिया।
अदाणी ने 2006 में तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार की ओर से नीदरलैंड की कंपनी ब्रेकल कारपोरेशन एनवी को आवंटित 960 मेगावाट के जंगी थोपन व पोवारी पन बिजली परियोजनाओं की एवज में ब्रेकल कीओर से जमा कराए अप फंर्ट मनी को सरकार से लौटाने की बावत अपील दायर की थी। हाईकोर्ट की एकल जज जस्टिस संदीप शर्मा की पीठ ने अप्रैल 2022 में इस रकम को लौटाने के आदेश दे दिए थे। इसके खिलाफ सरकार अपील में गई थी व अदाणी पावर ने भी इस रकम को देने व साथ में 12 फीसद ब्याज देने की अपील खंडपीठ के समक्ष दायर की थी।
खंडपीठ ने करीब नौ महीने पहले अदाणी व सरकार की अपील पर तमाम दलीलों को सुनने के बाद 9 अक्तूबर 2022 को फैसला सुरक्षित रख लिया था। आज इस फैसले को अदालत में सुना दिया गया और अदाणी पावर की अपील को खारिज कर दिया। इससे प्रदेश की सुक्खू सरकार को बड़ी राहत मिली हैं। अन्यथा कंगाल सरकारी खजाने से अरबों रुपए देने का संकट सरकार पर खड़ा हो जाता।
जस्टिस ठाकुर और जस्टिस नेगी की खंडपीठ ने एकल जज के फैसले को लेकर कहा कि एकल जज ने 7 अक्तूबर 2009 को दो जजों की खंडपीठ के फैसले की जटिलता पर विचार नहीं किया । इसके अलावा उन्होंने तमाम दस्तावेजों का अवलोकन भी नहीं किया और कांट्रेक्ट एक्ट की धारा 65व 70 के प्रावधानों को मामले की परिस्थितियों व तथ्यों को देखते हुए सही अवलोकन नहीं किया।
इस मामले में तत्कालीन सरकारों में प्रदेश के विधि विभाग ने अपनी राय दी थी कि सरकार एक एक परियोजना के लिए दो-दो कंपनियों से अप फंर्ट मनी नहीं ले सकती। खंडपीठ ने इस बावत कहा कि फाइलों की नोटिंग के कोई कानूनी मायने नहीं होते जब कि राज्यपाल व राष्ट्रपति से वह नोंटिंग की सत्यापित नहीं हो जाती। वह महज एक नोटिंग ही है। इसकी कोई कानूनी बाध्यता नहीं हैं।
खंडपीठ ने कहा कि चुनिंदा फाइल नोटिंग के आधार पर रकम को लौटाने का अदाणी का दावा करना कानूनी तौर पर टिकता नहीं है जबकि बाकी दस्तावेजों को नजरअंदाज किया गया ।
याद रहे अदाणी ने ये रकम इस आधार पर लौटाने की मांग की थी कि सरकार को 280करोड़ रुपए की ये रकम उसकी कंपनियों की ओर से जमा कराई गई थी। जबकि सरकार बार –बार कह रही थी कि अदाणी पार का कभी भी सरकार के साथ लेना देना नहीं रहा था। उसने ये रकम ब्रेकल की ओर से जमा कराई थी। कायदे से ये रकम उसे ब्रेकल से लेनी चाहिए।
अदाणी ने अदालत में दलीलें दी थी कि कांट्रेट एक्ट के तहत जब एक रकम उसने अदा की है तो उसे ये रकम मिलनी चाहिए। अदालत ने कहा कि कांट्रेक्ट एक्ट तब लागू होता अगर अदाणी ये रकम सरकार को कानूनी तौर पर देता। अदाणी ने जब ये रकम अदा की थी तो मामला हाईकोर्ट में लंबित था व तब अदालत ने कहा कि वहअपने जोखिम पर ये रकम जमा कर रहा हैं। अदाणी ब्रेकल के साथ इस परियोजना के लिए कंसोरटियम यानी कंपनियों के समूह में शामिल नहीं था। उसने इसके लिए आवेदन जरूर किया था लेकिन तत्कालीन धूमल सरकार ने उसे कभी भी मंजूरी नहीं दी थी।
ठाकुर व नेगी की खंडपीठ ने कांट्रेक्ट एक्ट के तहत अदाणी पावर की तमाम दलीलों को रदद कर दिया। इसके अलावा खंडपीठ ने कहा कि ब्रेकल के पास अप फ्रंट मनी अदाणी को लौटाने के अधिकार देने का कोई अधिकार नहीं था। चूंकि ब्रेकल ने ये नौ हजार करोड़ का ये ठेका जाली दस्तावेजों व झूठे दावों के आधार पर लिया था तो वह अप फ्रंट मनी को वापस मांगने का हकदार नहीं हैं।
उसने ये ठेका जाली दस्तावेजों व झूठे तथ्यों के आधार पर लिया है ये अक्तूबर 2009 में प्रदेश हाईकोर्ट की खंडपीठ में जजमेंट में साबित हो चुका हैं। इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट में सुप्रीम कोर्ट से इस जजमेंट को लेकर कुछनहीं कहा गया व ब्रेकल व रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने अपनी याचिकाओं को वापस ले लिया था। ऐसे में हिमाचल हाईकोर्ट के 2009 की जजमेंट अंतिम हैं।
खंडपीठ ने ये भी कहा कि सरकार व अदाणी के बीच कोई कानूनी रिश्ता नहीं है ऐसे में किसी तरह के मुआवजे की मांग करना बेमानी हैं। इसके अलावा इस मामले में तो सरकार को अरबों रुपयों का नुकसान हुआ हैं। अदाणी ने कांट्रेक्ट एक्ट की धारा 70 के तहत भी राहत मांगी थी। खंडपीठ ने इसे भी खारिज कर दिया।खंडपीठ ने कहा कि अदाणी ने ये रकम ब्रेकल की ओर से जमा कराई थी। ब्रेकल को इससे लाभ भी हुआ । ऐसे में अदाणी पावर व ब्रेकल के बीच तो कानूनी रिश्ता साबित होता है लेकिन सरकार व अदाणी के बीच कोई रिश्ता नहीं हैं। ऐसे में अदाणी पावर अगर ब्रेकल से मुआवजे की मांग करता तो वो कानूनन होती। लेकिन सरकार से तो काननूी रिश्ता ही नहीं था।
ये है मामला
याद रहे 2006 में तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने नीदरलैंड की कंपनी ब्रेकल कारपोरेशन एनवी को किन्नौर के जंगी थोपन व पोवारी बिजली परियोजनाओं को आवंटित किया था। तब भाजपा ने इस मामले में बड़े स्तर पर खेल होने का इल्जाम लगाया था। दिसंबर 2007 में प्रदेश में धूमल सरकार सता में आई तो उसने इस मामले की जांच करा दी व ब्रेकल की ओर से तमाम तरह की धांधली पाई गई। लेकिन धूमल सरकार ने जाने क्यों इस आवंटन को रदद नहीं किया व ब्रेकल के पास ही रहने दिया।
इसके खिलाफ बोली में दूसरे नंबर पर कंपनी रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने अदालत का दरवाजा खटखटा दिया। 7 अक्तूबर 2009 को जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस वीके आहुजा की खंडपीठ ने इस आवंटन को रदद कर दिया। इसके बाद ब्रेकल व रिलांयस सुप्रीम कोर्ट चले गए। दिसंबर 2012 में दोबारा से प्रदेश में वीरभद्र सिंह सरकार सत्ता में आ गई और उसने इस प्रोजेक्ट को रिलायंस को आवंटित करने का फैसला ले लिया व साथ ही ये भी फैसला लिया कि जो अप फ्रंट मनी रिलायंस से मिलेगा उससे अदाणी की रकम लौटा दी जाएगी। ये गैर कानूनी बात थी। इस पर सहमति हो गई। रिलायंस ने सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस ले ली लेकिन उसने इस परियोजना को लेने से इंकार कर दिया।
इस बीच सितंबर 2017 में वीरभद्र सरकार की ओर से एक चिटठी अदाणी को लिखी गई कि वो ये रकम देने को तैयार हैं। लेकिन इस बीच आचार संहिता लग गई व दिसंबर 2017 में सरकार की ओर से एक चिटठी लिखी गई कि सरकार इस रकम को देने में असमर्थ है क्योंकि ठेके की शर्ते व कानूनी जटिलताएं इसके आड़े आ रही हैं।
इस बीच जयराम सरकार सत्ता में आ गई और वो इस मामले को मंत्रिमंडल में ले गई। मंत्रिमंडल में क्यों ले गई इसकी वजह आज तक किसी को पता नहीं हैं। हालांकि मंत्रिमंडल ने इस रकम को लौटाने से इंकार कर दिया। 2019 में अदाणी ने इस मामले में प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर की दी व अप्रैल 2022 में जस्टिस संदीप शर्मा की एकल पीठ ने अदाणी के पक्ष में फैसला सुना दिया। लेकिन अब खंडपीठ ने इसे खारिज कर दिया हैं।
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