शिमला।मंत्रिमंडल ने एसजेवीएनएल को पूर्व की जयराम सरकार में आवंटित 382 मेगावाट क्षमता की सुन्नी, 210 मेगावाट की लूहरी चरण-1 और 66 मेगावाट की धौलसिद्ध जल विद्युत परियोजनाओं और एनएचपीसी को आवंटित 500 मेगावाट की डूग्गर जैसी निर्माणाधीन बिजली परियोजनाओं को टेक ओवर करने का फैसला तो ले लिया है लेकिन इसके लिए 34 सौ करोड़ रुपए की बड़ी रकम कहां से जुटाई जाएगी इस बावत कैबिनेट से कोई खाका बाहर नहीं आया हैं।
भारत सरकार के बिजली सचिव ने बीते दिनों प्रदेश के मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना को चिटठी लिखकर कहा था कि एसजेवीएनएल और एनएचपीसी ने इन बिजली परियोजनाओं पर अब तक 3397 करोड़ रुपए खर्च दिए हैं। ऐसे में अगर सुक्खू सरकार ने परियोजनाओं को टेक ओवर करना चाहती है तो इस रकम का भुगतान कर दें और अपने बिजली प्रोजेक्टस टेक ओवर कर ले। ये मामला प्रदेश हाईकोर्ट में भी लंबित हैं।
बीते रोज की कैबिनेट में अब सुक्खू सरकार ने इन परियोजनाओं पर इतनी रकम असल में खर्च हुई है ,अपने स्तर पर ये आकलन कराने का फैसला लिया हैं। हालांकि ये केंद्र सरकार पर संदेह करने जैसा है। क्योंकि इन परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण पर खर्च की गई रकम और खरीदी गई मशीनरी,श्रमिकों को अब तक किए गए भुगतान आदि तमाम चीजें दस्तावेजों में दर्ज हैं। ऐसे में मूल्यांकन कराना अपने आप में ही एक दिलचस्प फैसला है।
ये सुक्खू सरकार की ओर से केंद्र सरकार के विभाग का आडिट करने जैसा है। एसजेवीएनएल राज्य व केंद्र सरकार का संयुक्त उपक्रम है जबकि एनएचपीसी केंद्र सरकार का उपक्रम हैं।
जाहिर सी बात है कि इस बावत सुक्खू को उनके आइएएस सलाहकारों ने सलाह दी होगी। अगर भारत सरकार के सचिव ने इन परियोजनाओं पर खर्च हुई रकम को ज्यादा बताया है तो ये अपने आप में गंभीर मामला हैं। ये हाईकोर्ट को गुमराह करने जैसा भी है क्योंकि इस बावत जानकारी प्रदेश हाईकोर्ट को भी दी जा चुकी हैं।इसके कई पहलू हैं। बहरहाल , अब मामला अदालत के अधीन हैं। ईवैल्युटेर किसे तैनात किया जाता है ,ये भी देखना दिलचस्प होगा।
ये है मामला
पूर्व की जयराम सरकार ने 210 मेगावाट के लुहरी चरण-1,66 मेगावाट के धौलासिद्ध,382 मेगावाट के सुन्नी डैम को सतलुज जल विद्युत निगम को बूम आधार पर आवंटित किए थे।(बूम यानी बिल्ड, ओन,ऑपरेट और मैंटैंन) इसके अलावा 500 मेगावाट का डुग्गर बिजली प्रोजक्ट को एनएचपीसी को बूट आधार पर 70 साल के लिए आंवटित किया था। (बूट यानी बिल्ड,ओन,ऑपरेट एंड ट्रांसफर) ।
जयराम सरकार ने इन परियोजनाओं को जब आवंटित किया था तो केंद्र में भी बीजेपी की ही सरकार थी यानी डब्बल इंजन की सरकार थी।
जयराम सरकार में लुहरी, धौलासिद्ध और डुग्गर परियोजना के आवंटन के लिए शर्तों में रियायतें दे दी। इन शर्तों के मुताबिक इन कंपनियों को प्रोजेक्ट चालू होने के बाद पहले के दस सालों में प्रदेश को महज चार फीसद रायल्टी देने हैं। यानी पैदा होने वाली बिजली से प्रदेश को केवल चार ही फीसद रायल्टी मिलेंगी व बाकी 96 फीसद लाभ कंपनियों का होगा। यानी प्रदेश को नुकसान और केंद्र को लाभ का सौदा था।
इसके बाद 11 से 25 साल तक 8 फीसद और 26 से 40 तक 12 फीसद और 40 साल के बाद 25 फीसद रायल्टी प्रदेश को देनी हैं। जयराम ने केंद्र में भी बीजेपी की सरकार होने के बावजूद भी ये सब क्यों किया इसके छिपे जवाब तो तलाशे ही जाने चाहिए व जब ये सब हुआ तब बिजली सचिव मौजूदा मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना हुआ करते थे।
लेकिन सुक्खू ने सत्ता में आने के बाद 30 सितंबर 2024 को अधिसूचना जारी कर दी व इन कंपनियों पर नई शर्त लगा दी व कहा कि नई शर्तों को माने अन्यथा सरकार इन प्रोजेक्टस को टेक ओवर कर लेगी।
सुक्खू सरकार ने लगाई ये शर्तें
सुक्खू ने जो नई शर्तें लगाई उनके मुताबिक पहले की तरह परियोजना चालू होने के पहले के 12 सालों तक इन कंपनियों को प्रदेश को 12 फीसद रायल्टी देने का प्रावधान कर दिया। इसके बाद 13 से 30 सालों तक 18 फीसद और 31 से 40 सालों तक 30 फीसद और 40 साल के बाद जब तक प्रोजेक्ट चलता है तब तक 40 फीसद रायल्टी प्रदेश को देने का प्रावधान कर दिया हैं। इन शर्तों के मुताबिक प्रदेश कसे बिजली परियोजनाओं से ज्यादा आय होती।
ये शर्तें जयराम सरकार की ओर से 2020 में मंजूर शर्तों से पहले भी लागू थी। सुन्नी डैम परियोजना में कोई रियायत नहीं थी।
लेकिन इन कंपनियों ने इन शर्तों को मानने से इंकार कर दिया । चूंकि आवंटन हो चुका है और 2020 को तश्य शर्तों के आधार हो चुका हैं।
पंकज अग्रवाल ने चिटठी में जो ब्योरा दिया है उसने सुक्खू सरकार को संकट में खड़ा कर दिया हैं।
अग्रवाल ने चिटठी में कहा है कि लुहरी स्टेज -1 में अब तक 1655 करोड़ रुपए खर्च हो चुके और 50 फीसद से ज्यादा खर्च हो चुका हैं जबकि धौलासिद्ध परियोजना में 768 करोड़ खर्च हो चुके है और 62 फीसद काम हो चुका हैं। सुन्नी डैम पर 867 करोड़ खर्च हो चुका है लेकिन काम 27 फीसद ही हुआ हैं।
उधर डुग्गर प्रोजेक्ट पर अभी 107 करोड़ रुपए ही खर्च हुए हैं। इसमें एफसी और इसी की मंजूरी प्रकिया में हैं।
होटल वाइल्ड फलावर हाल फिर ओबराय के हवाले
लंबे कानूनी जंग लड़ने और वकीलों पर करोड़ों रुपयों खर्च करने के बावजूद होटल वाइल्ड फलावर हाल का संचालन ओेबराय ग्रुप के पास रखने से सुक्खू सरकार कटघरे में आ गई हैं। हिमाचल सरकार ने करोड़ों के इस होटल को वापस लेने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी हैं। अब जब अदालतों ने इसे सरकार को वापस लौटाने का फैसला सुना दिया है तो इस खुद चलाने के बजाय दोबारा ओबराय के पास ही रखने का कोई औचित्य नहीं हैं।
सरकार ने इसे बेशक टेकओवर कर लिया है और पर्यटन निगम के महाप्रबंधक को इसका प्रशासक भी नियुक्त कर दिया है लेकिन ओबराय के पास संचालन रखने को कोई औचित्य समझ नहीं आ रहा हैं। कहा जाता है कि पर्दे के पीछे शुरू से ही कई कुछ चल रहा था।सरकार के पास एक साल का समय था कि ये इस होटल को या खुद चलाती या फिर किसी और को दे देती है।
इसकी क्या गारंटी है कि ये करोड़ों की संपति दोबारा से कानूनी उलझनों में नहीं फंसा दी जाएगी।
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