शिमला। दुनिया की मशहूर व शांत सैरगाहों में से एक हिमाचल प्रदेश में राजनीतिक रसुख व भ्रष्टाचार के दम परपर्यटन के कारोबार का जो एक बड़ा हिस्सा फलफूल रहा था वह आखिर में कानून के शिकंजे में आ फंसा है।
कसौली से लेकर कुल्लू तक और किन्नौर से लेकर भरमौर तक होटल व्यवसाय में नियमों की अवहेलना किसकदर हुई है यह हिमाचल हाईकोर्ट, नेशनल ग्रील ट्रिब्यूनल और सुप्रीम कोर्ट के दर्जनों आदेशों से साफ है।
प्रदेश पर्यटन विभाग ने ही अदालत में हलफनामा दे रखा है कि करीब पचास फीसद होटल व गेस्टहाउस ऐसे हैजहां कायदे कानूनों की कोई न कोई अवहेलना जरूर है। इनमें अवैध निर्माण भी शामिल है। प्रशासन ने अभी हाल ही में 28 मई को एनजीटी में मनाली में होटलों के निर्माण में बरती गई अनियमितताओं को लेकर एकहलफनामा दायर किया है। इसमें कई खामियां दर्शाई गई। मनाली में होटलों में अवैध निर्माण व कायदे कानूनों की
अवहेलना का मामला जयराम ठाकुर सरकार में सिंचाई व जनस्वास्थ्य मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर के होटल मनाली वैली रिजार्ट को लेकर की गई याचिका के बाद सामने आया। एनजीटी ने मंत्री के होटल के अवैध हिस्से को गिराने के आदेश दिए व प्रशासन ने इस अवैध हिस्सों को गिरा भी दिया। लेकिन शिकायत कर्ता इससे संतुष्ट नहीं हुआ व एनजीटी के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी है। याचिकाकर्ता रमेश कुमार ने कहा कि जमीन की निशानदेही को लेकर खेल खेला जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट में पूरी बात रखी जाएगी। मंत्री ही नहीं बाकी होटलियरों पर भी कानून का शिकंजा जारी है।
राजधानी शिमला में पीने के पानी का भीषण संकट सामने आया तो पता चला कि शहर की आवासीय रिहायशों में अवैध तौर पर फलैटों व घरों में गेस्टहाउस खुल गए हैं। कारोबार भी आनलाइन ही हो रहा है। आनलाइन बुक्रिंग हो रही है और बिना कोई कर दिए मोटी कमाई की जा रही है।
लेकिन यह सब अवैध तौर पर राजनीतिक व प्रशासनिक शह पर हो रहा है।उपनिदेशक पर्यटन सुरेंद्र जस्टा ने कहा कि मालिक दिल्ली बैठा है व उसने ओयो जैसी आनलाइन कंपनियों को अपने घर का पता दे दिया है। ये कंपनियां यहां पर्यटकों को ठहरा रही है। अब इन कंपनियों की बुकिंग का आनलाइन डाटा डाउनलोड़ करने की कवायद की जा रही है। निदेशक सुदेश मोकटा ने कहा कि इस बावत निरीक्षण किया जा रहा है । जो मामले सामने आएंगे उन्हें संबधित विभागों को आगामी कार्रवाई को भेजा जाएगा।
अवैध निर्माण को लेकर कानून की शिकंजा जब देश की शीर्ष अदालत ने कसा तो प्रशासनिक तंत्र की विफलता की वजह से सत्कार का यह कारोबार रक्तरंजित भी हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अवैध निर्माण गिराने की कार्रवाई के दौरान कसौली स्थित नारायणी गेस्टहाउस के मालिक विजय ठाकुर ने महिला अधिकारी कसौलीकी सहायक नगर नियोजक शैलबाला की गोली मार कर हत्या कर दी। एक मई को हुई इस वारदात ने सरकारी तंत्र में पसर चुकी शिथलता को तो उजागर किया ही साथ ही पिछल्ले तीन दशकों से सता में रही सरकारों की कारगुजारियों को भी बेनकाब किया है। 1993 से लेकर दिसंबर 2017 तक प्रदेश में तीन बार कांग्रेस पार्टी की वीरभद्र सिंह की सरकार सता में रही जबकि दो बार भाजपा की प्रेम कुमार धूमल की सरकार सता में रही । प्रदेश में इन्हीं तीन दशकों में बड़े पैमाने पर होटलों में अवैध मंजिलों का निर्माण होता गया।बिल्डरों ने इन्हीं दशकों में कारनामें दिखाएं हैं। ऐसा नहीं है कि इससे पहले अवैध ढांचे खड़े न हुए हो लेकिन तादाद कम थी।
अवैध निर्माण कर व कायदे कानूनोें को दरकिनार कर होटलियर सरेआम कारोबार चलाते रहे व सरकारी अमला चुपचाप बैठा रहा। यह खेल अभी भी जारी है।
जिला सोलन के कसौली में गैरकानूनी तौर पर कई-कई मंजिलें होटल खड़े हो गए। यह सब अधिकारियों की मिलीभगत के बिना नहीं हुआ। एक एनजीओ के दम पर यह जंग सुपीम कोर्ट पहुंची और दर्जन से ज्यादा बहुमंजिलें होटलों की अवैध मंजिलों को गिराने के आदेश हो गए। देश कीशीर्र्ष अदालत का यह सरकार ,प्रशासन व बेखौफ होटलियरों के लिए बड़ा झटका था।लेकिन भविष्य के गर्भ में कुछ और भी था जिसकी किसी ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। इन आदेशों कीअनुपालना करने के लिए जब प्रशासन की टीम एक मई को मौके पर पहुंची तो एक होटलियर ने गोली मार कर इस कारोबार को रक्तरंजित कर दिया। शांत प्रदेश हिमाचल मे यह पहली बार हुआ । यह स्तब्ध करने वाला था।
इस गोलीकांड के बाद सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश की भाजपा की जयराम ठाकुर सरकार को फटकार लगाई व जिन अधिकारियों के समय में यह अवैध मंजिलें खड़ी हुई व होटलों को चलाने की मंजूरियां दी,उनकी सूची मांग लीगई। संभवत: उनके खिलाफ कार्रवाई भी हो जाए। लेकिन पिछल्ले तीन दशकों से शासन चलाते रहे मुख्यमंत्रियों व उनके मंत्रियों की जिम्मेदारी व जवाबदेही कहीं भी तय नहीं हो पा रही है और और जब तक यह जवाबदेही तयनहीं हो जाती,ये सिलसिला रुकने वाला नहीं है।
अदालतों की नजरें केवल अधिकारियों पर ही है। जबकि जमीनी हकीकत यह है कि मुख्यमंत्री,मंत्री व बाकी नेताओं के इशारों के बिना कुछ भी नहीं हो सकता। रिश्वतखोरी का चक्रवात यही से शुरू होता है।
कसौली गोलीकांड में एक महिला अधिकारी के अलावा एक बेलदार को भी गोली लगी । महिला अधिकारी शैलबाला तो मौके पर ही ढेर हो गई लेकिन बेलदार गुलाब सिंह की मौत पीजीआई चंडीगढ़ में कुछ दिनों के बाद हुई। गोलीकांड पुलिस बल की मौजूदगी में हुआ था तो सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया व इसकी गाज
जयराम ठाकुर सरकार ने सोलन के तत्कालीन एसपी 2010 बैच के आइपीएस अधिकारी मोहित चावला, परवाणू के तत्कालीन डीएसपी रमेश शर्मा,दो एसएचओ और नायब तहसीलदार पर गिराई है। इन्हें निलंबित कर दिया गयाहै। इसके अलावा तीन महिला कांस्टेबल समेत नौ पुलिस कर्मियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की है। बड़े नौकरशाहों व नेताओं पर अब तक कोई आंच नहीं है। उनके खिलाफ कोई सबूत भी नहीं है। सबूत है भी तो उन्हें कोई सामने लाने को तैयार नहीं ।
प्राकृतिक सुंदरता से सराबोर शांत प्रदेश हिमाचल में पर्यटन आर्थिकी का मुख्य घटक है व होटल व्यवसाय केसेक्स टूरिज्म से लेकर ड्रग्स तक के घटक भी जुड़े हैं , जिनमें बेशुमार पैसा है। इसी पैसे की खातिर राजनीतिक दबाव,भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरीने हरेक कानून कायदे व नियमों को खेल बना दिया है। नतीजतन अवैध तौर पर मंजिलों पर मंजिलें खड़ी कर देने वाले होटलियरों ने यह समझ लिया कि उनके अवैध निर्माण को वैध होना ही है। यह समझ ऐसे ही पैदा नहीं हुई। दर्जनों ऐसे मामले है जहां पर अदालतों से होटलियरों को राहतें मिली। कइयों के मामले में सरकारों ने नियमों में ढील दी। ऐसे में होटलियरों ने जहां सात कमरों का निर्माण करनेकी मंजूरी थी वहां 42 कमरें बना दिए। जहां दो मंजिलों का नक्शा पास था वहां छह-छह मंजिलें खड़ी कर दी।
टीसीपी अधिनियम का बड़े पैमाने पर उल्लंघन हुआ है।
निदेशक टीसीपी राजेश्वर गोयल ने कहा टीसीपी अधिनियम का उल्लंघन कर बने होटलों व इमारतों का कोई सही आंकड़ा नहीं है। जब अदालतों से कोई आदेश होता है तो ही कु छ सामने आता है। विभागीय सूत्र बताते है किप्रदेश में करीब नौ हजार भवन ऐसे है जहां टीसीपी अधिनियम की उल्लंधना हुई है। इनमें होटल व गेस्ट हाउस भीशामिल है। इसके अलावा अनियमित भवनों को नियमित करने के लिए सरकार एक रिटेंशन नीति लाई थी जिसे प्रदेश हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया । इस नीति के तहत करीब 85 से 87 सौ भवन मालिकों ने अपने मकानों को नियमित करने के आवेदन दायर किए है। मौजूद समय में यह भी अवैध ही है।भ्रष्टाचार का आलम यह था कि प्रदेश सरकार के अधिकारियों ने मौके पर गए बिना ही होटलों को चलाने की अनुमति दे दी। इस बावत एनजीटी के एक आदेश में जिक्र है कि कसौली में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एकअधिकारी ने मौके पर गए बिना ही होटल चलाने की मंजूरी दे दी। ऐसे अधिकारियों को जयराम सरकार ने अभी तक चार्जशीट तक नहीं किया है।
सता में रही प्रदेश की सरकारों ने किस तरह के गुल खिलाएं है इसका खुलासा प्रदेश हाईकोर्ट,एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद पिछल्ले छह महीनों से प्रदेश के विभिन्न जिलों में हो रही कार्रवाइयां बयां करती है।
जिला कुल्लू में मिनी इजरायल के नाम से मशहूर कसोल में डीसी कुल्लू की कमान में प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेशों पर अधिकारियों की एक टीम ने निरीक्षण किया तो चौंकाने वाली तस्वीर सामने आई । कसोल व आसपास के इलाके में 65 होटलों में 42 के पास न तो पर्यटन विभाग से कोई मंजूरी थी और न ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से कंसेंट टू आपरेट का कोई दस्तावेज था। कई इमारतें सरकारी भूमि पर खड़ी हो गई। कसोल दुनिया में सबसे बेहतर चरस के लिए मशहूर गांव मलाणा के समीप ही है। यह सब बेरोकटोक सरकारों की नाक के नीचे चलता रहा। आज तक किसी अफसर को पकड़ा नहीं गया। इन होटलों की बिजली- पानी काट दिया गया। इन 42 होटलों व रेस्तराओं में से अभी तक आधा दर्जन के करीब ही चल पाएं है बाकी सब सील है।
कसौल के अलावा एनजीटी आदेशों पर प्रशासन ने पूरे कुल्लू जिला में 73 होटलों व रेस्तराओं की बिजली पानीकाट दी थी। इनमें से 60 के करीब बहाल हो गए है। यहां पर होटलियरों ने कहीं रिन्यूवल नहीं कराया था तो कहीं दस्तावेज जमा नहीं थे। लेकिन जो अवैध निर्माण हुए हैं वह बिना राजनीतिक आकाओं व नौकरशाहों के प्रत्यक्ष वअप्रत्यक्ष शह के बिना संभव नहीं है। अधिकारियों की माने तो अधिकांश होटल बड़े लोगों के ही है। उन्हीं के रसूख के आगे कानून बौने हो जाया करते है। पूरे जिला कुल्लू में साढे छह सौ से सात सौ के करीब होटल व गेस्टहाउस हैं। एनजीटी में अभी भी मामले चल रहे हैं।
इसी तरह हाईकोर्ट के आदेशों के बाद कांगड़ा में भी होटलों व गेस्टहाउसों का निरीक्षण हुआ तो पाया गया कि 151 होटल अवैध तौर पर चल रहे थे। इनमें बौद्वगुरु दलाइलामा की नगरी मक्लोड़गंज से लेकर धर्मकोट, नड़ी समेत धर्मशाला नगर निगम के तहत आने वाला इलाका शामिल है। इन होटलों व रेस्तराओं में प्रदूषण नियंत्रणबोर्ड की ओर से ली जाने वाली जरूरी मंजूरियां नहीं थी। अधिकांश के होटल कागजों में रिहायशी इमारतों में चलरहे थे। इनके बिजली पानी काट दिए गए। दर्जनों में टीसीपी एक्ट की अवहेलना हुई है। इनमे केवल 19 में बिजली पानी बहाल हो पाया है। बाकी बंद पड़े है। यहां होटल मालिक खुद अवैध मंजिलों को झहाने में लगे है। प्रशासन ने होटलियरों से हथियार थानों में जमा कराने के आदो दिए है। पुलिस कसौली जैसी कोई भी वारदात नहीं होने देना चाहती है। लेकिन तब के मुख्यमंत्री , मंत्री और अफसर सब मजे में है कहीं कोई कार्रवाई नहीं है।
जिला सोलन के कसौली में तो सुप्रीम कोर्ट ने दर्जन भर होटलों को गिराने के आदेश दे दिए हैं व वहां प्रशासन इन्हें ढहाने की कार्यवाही को अमलीजामा पहुंचा भी रहा है। प्रदेशके बाकी भागों में भी यही स्थिति है।
पर्यटन नगरी व देवभूमि के नाम से विख्यात हिमाचल के पर्यटन विभाग के पास 2907 होटल व गेस्ट हाउसपंजीकृत है। इसके अलावा 1220 होम स्टे इकाइयां व 703 रेस्तरां से है। पर्यटन विभाग के पास पंजीकरण के बिना कोई होटल व गेस्टहाउस शुरू ही नहीं हो सकता। अधिकारियों के मुताबिक 2907 होटलों व गेस्टहाउसों में से करीब 1524 होटलों में किसी न किसी तरह की नियमों की अवहेलना है।
होटल ही नहीं बाकी भी बहुत कुछ अनियिमित है प्रदेश में
हाईकोर्ट व एनजीटी के आदेशों ने प्रदेश के होटलियरों के सामने मुश्किलें खड़ी कर दी है वहीं सरकार को भी संकट में डाला हुआ है। होटलों के अलावा प्रदेश में एक लाख 65 हजार 339 अनियमित भवनों व अवैध कब्जों को नियमित करने के लिए पूर्व सरकार ने टीसीपी एक्ट में संशोधन किया था। प्रदेश हाईकोर्ट ने इस संशोधन को गंभीर टिप्पणियों के साथ खारिज कर दिया । इन मामलों में 24 हजार तीन सौ हैक्टेयर वन भूमि पर अवैध कब्जा है। जबकि एनजीटी के एक फैसले के मुताबिक शिमला में अढाई मंजिले मकान ही हो सकते है। सरकार ने इन दोनों फै सलों को लेकर समीक्षा याचिका दायर की है। अदालतों के इन आदेशों व फैसलों की रोशनी में प्रदेश में अधिकांश इमारतें अनियमितता की श्रेणी में आ गई है। उधर, वन विभाग की भूमि पर अवैध कब्जों की भरमार है। राज्य वन निगम ने ऐसे 1464 लोगों की एक सूची तैयार की है जिन्होंने दस बीघा से ज्यादा वन भूमि पर अवैधकब्जे कर रखे है। इन लोगों ने 24हजार दो सौ अठारह बीघा जमीन पर कब्जायी हुई है। ये मामले भी अदालत में है। ये सब सरकारों की नाक के नीचे हुआ।
होटलों व गैस्टहाउसों के मामले में स्टेट फेडरेशन आफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन आफ हिमाचल प्रदेश के अध्यक्ष अश्वनी बाम्बा कहते है अब तो ऐसा लगता है मानों पूरा प्रदेश ही अवैध हो गया है। अब सरकार ही कुछ कर सकती है। इस बावत उनकी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर व टीसीपी मंत्री सरवीण चौधरी से बात भी हो चुकी है।लेकिन अभी तक कुछ हुआ नहीं है।
उधर, होटलियरों व बाकी कारोबारियों को राहत देने के लिए जयराम सरकार ने टीसीपी नियमों में कुछ संशोधन किया है। नियमों में किए इस संशोधन की वजह से ब होटलों के उन्हीं हिस्सों को सील किया जाएगा जो अवैध है। पूरी इमारत को अवैध घोषित नहीं होगी। इस बावत नियमों में संशोधन कर 24 अप्रैल को अधिसूचना जारी की गई है। लेकिन इस संशोधन के तहत अब अवैध निर्माण करने वालों को एक साल के भीतर इमारत के अवैध निर्माण को खुद गिराने का हलफनामा देना होगा। यह नियम में यह संशोधन कितना कानूनी व गैरकानूनी है इसको लेकर भी विवाद है। वोट बैंक के आगे असहाय सरकार लोगों को राहत देना चाहती है लेकिन कानून उसके आड़े आ ज रहा है। जबकि अदालतें कानून का पालन कराने की राह पर है।
हर साल बढ़ती सैलानियों की तादाद
पर्यटन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक 2008 में प्रदेश में 93लाख 72 हजार 697 भारतीय सैलानी आए जबकि 3 3 लाख 76हजार 736विदेशी सैलानी आए। 2008 में कुल 97लाख 49 हजार 433 सैलानी आए। 2011 में प्रदेश में कुल 1 करोड़ 50 लाख 89 हजार 406 सैलानी आए इनमें से एक करोड़ 46 लाख 4 हजार
888 देशी व 4 लाख 84 हजार 518 विदेशी सैलानी थे। 2015 में प्रदेश में एक करोड़ 75 लाख 31 हजार 153 सैलानी घूमने आए । इनमें से एक करोड़ 71 लाख 25 हजार 45 देशी व चार लाख 61 हजार आठ विदेशी सैलानी शामिल थे। 2017 में कुल एक करोड़ 96 लाख 1 हजार 533 सैलानी आए जिनमें से एक करोड़ 91 लाख 30 हजार 541देशी व चार लाख 70 हजार 992 विदेशी सैलानी घूमने आएं। इन सैलानियों में धार्मिक श्रद्वालु भी शामिल है।
जयराम ठाकुर की टीसीपी मंत्री बोली ये
अवैध होटलों व गेस्टहाउसों के मसले पर प्रदेश की नगर नियोजन व शहरी विकास मंत्री सरवीण चौधरी ने कहा कि उन्होंने आगे के लिए अधिकारियों को हिदायतें दे दी है कि टीसीपी अधिनियम का उल्लंघन न हो। अब क्लर्क से लेकर सचिव तक जो भी गलत करेगा उसकी जिम्मेदारी व जवाबदेही तय की जाएगी। लेकिन जो पिछल्लीसरकारों में जो हो गया है,उससे कैसे निपटना है उस पर सचिव से लेकर नीचे तक विभाग मंथन कर रहा है।
अवैध होटलों का ही मामला नहीं हैं,बाकी भवनों के मामले भी है। उन्होंने कहा कि वह इन सब मसलों से बाहरनिकलने के लिए वकीलों से सलाह मशविरा कर रही है। इसके अलावा पिछल्ली सरकार में अनियमित भवनों को नियमित करने के लिए टीसीपी एक्ट में संशोधन लाया गया था। उसे हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया था। सरकार ने इस बावत हाईकोर्ट में समीक्षा याचिका दायर की है। इसके अलावा एनजीटी के आदेशों को लेकर भी मामला प्रक्रिया में है। उन्होंने कहा कि सरकार की मंशा लोगों को राहत देने की है। जो भी बन पड़ेगा किया जाएगा। ये पूछे जाने पर कि कसौली मामले में जिन अधिकारियों के कार्यकाल में कई मंजिलें बन गई , उनकी सूची मांगरखी है, अधिकारियों पर तो गाज गिरा दी गई लेकिन क्या तत्कालीन मुख्यमंत्रियों व मंत्रियों की जवाब देही भी तय होगी। उन्होंने कहा कि कुछ मामलों में हो सकता हो कि राजनेताओं की शह पर कुछ हुआ हो लेकिन हरेकजगह ही राजनेताओं पर इल्जाम नहीं लगाया जा सकता ।
उन्होंने कहा कि अदालत के जो आदेश होंगे उनका सम्मान किया जाएगा लेकिन सरकार अपना पक्ष भी रखेगी।
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