शिमला । प्रदेश भर के हजारों भवनों को नियमित करने के कानून को बेईमानों के हित का कानून करार दिया । HC ने नियमित करने के लिए वीरभद्र सिंह सरकार की ओर से प्रदेश टीसीपी एक्ट 2016 में संशोधन कर उसमें धारा 30 बी जोड़ देने के प्रावधान को प्रदेश हाईकोर्ट ने बेईमान लोगों के हितों के लिए कानून करार देकर, इसे रदद कर दिया। अदालत ने कहा कि इस कानून के बने रहने से केवल अमीरों, कार्यकारिणी, नेताओं के करीबियों और बाकी प्रभावशाली लागों को ही लाभ मिलेगा।
कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजय करोल और जस्टिस त्रिलोक चौहान की खंडपीठ ने इस संशोधन को रदद करते हुए कहा कि राज्य व कानून बनाने वालों का इस तरह की बेईमानी को संरक्षण देने में शामिल हो जाना अराजकता को बढ़ाएगा । अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि इस तरह के संशोधन लोकतांत्रिक तरीके से स्थापित संस्थाओं को तबाह करने वाला व भेदभाव पूर्ण हैं।
प्रदेश सरकर की ओर से प्रदेश भर के हजारों भवनों को नियमित करने के लिए टीसीपी एक्ट में संशीधन कर उसमें धारा 30 बी जोड़ दी थी। इस धारा के तहत प्रदेश भर में अनियिमित भवनों,अपार्टमेंटों, फलैटों ,हिमुडा की ओर बनाई कालोनियों और लेंटरों को निर्धारित फीस देकर जैसे है जहां हैं के आधार पर नियमित किए जाने का प्रावधन किया गया था। वीरभद्र सरकार ने पहले चुनावी साल में इन भवनों को नियमित करने के लिए रिटेंशन नीति लानी चाही थी। लेकिन अदालत ने ऐसी किसी नीति लाने पर रोक लगा दी। इसके बाद टीसीपी एक्ट में ही संशोधन कर दिया। पहले इस बिल पर राज्यपाल ने दस्तख्त न करे इसे वापस सरकार को भेज दिया था। बाद में सरकार ने दोबारा इसे राज्यपाल को भेजा। इस बीच भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रेम कुमार धूमल ने भी इस बिल पर दरूतख्त करने का आग्रह किया था। इसे अदालत में चुनौती दे दी गई। अदालत ने इस मामले में आज अपना फैसला सुनाया।
अदालत ने इस संशोधन को मूल अधिनियम व संधिधान के अनुच्छेद 14 के विपरीत करार दिया। अदालत ने कहा कि यह प्लानिंग एक्ट, एमसी एक्ट और कारपोरशन एक्ट के विपरीत हैं। जो भवन इन अधिनियमों के तहत नहीं बने हैं वह गैरकानूनी हैं और यह आपराधिक कृत्य हैं। यह साथ में हने वाले जिन लोगों ने क८ानूनों का पालन किया हैं उनके अधिकारों का उल्लंघन हैं। संशोधित अधिनियम सरकार व उसके अधिकारियों को बिना नक्श मंजूर कराए अवैध निर्माणों को नियमित करने क ी शक्तियां देता हैं।
अदालत ने टिप्पणी की कि इस कानून ने एक अलग वर्ग पैदा कर दिया हैं जिसमे वह लोग शामिल हैं जिनके पास निर्माण की कोई मंजूरी नहीं हें लेकिन अनियमितता को नियमित करने के लिए आर्थिक संसाधन हैं। वह पैसा देंगे और उनके निर्माण नियमित हो जाएंगे।
इस कानून से सरकार कानून तोड़ने वालों और जिन्होंने कानून का पालन किया हैं, सभी को एक समान हांक रही हैं। खंडपीठ ने कहा कि यह एकतरफा हैं।
खंडपीठ ने कहा कि ये अवैध निर्माण सरकारों की गवर्नेंस की विफलता हें व इसे इस तरह माफ नहीं किया जा सकता। अदालत पिछल्ले दो दशकों से सरकार को इस बावत फटकार लगा रही हैं। लेकिन किसी भी दोषी अधिकारी के खिलाफ आज तक कार्रवाई नहीं की गई हैं। यह बेईमानी को बढ़ाएगा और उल्लंघन कर्ताओं को प्रोत्साहित करने वाला हैं।
राज्य में रातों-रात हजारों अवैध निर्माण हो गए व अधिकारियों ने अपनी डयूटी नहीं निभाई। अधिकारियों का रवैया शर्तुमुर्ग की तरह रहा और अवैध निर्माण धड़ल्ले से होने दिए। बेतरतीब निर्माण लोगों के जीवन और संपति के लिए खतरा हैं। कुछ लोगों के ये काम आपराधिक किस्म के हैं। ये सारा काम अधिकारियों के मिलीभगत से दो दशकों से चल रहा हैं।
अदालत ने सरकार की इन दलीलों को भी नजरअंदाज कर दिया कि अवैध निर्माण को ढहाने में सरकारी खजाने पर बड़ा बोझ पड़ेगा व कानून व्यवस्था की समस्या आ सकती । इसके अलावा लोग बेघर हो सकते हैं। खंडपीठ ने कहा कि ढहाने का पूरा खर्चा उल्लंघनकर्ताओं से वसूला जाना हैं। अदालत ने यह भी कहा कि जिन लोगों ने अपने लिए मकान बनाए हैं व जिन्होंने केवल व्यवसाय के लिए भवन खड़े किए हैं एक्ट उनकी अलग पहचान भी नहीं की हैं। समाज में हाशिए पर रह रहे वर्ग का कोई उल्लेख नहीं हैं।
अदालत ने कहा कि सरकार ने यह मान लिया हैं कि प्रदेश मे अवैध व गैर कानूनी निर्माण हुआ हैं। अब तक सरकारों ने ये सब होने दिया। प्रदेश में 35 हजार के करीब अवैध भवनों के अनुमान हैं। अदालत के रिकार्ड पर 13 हजार भवन आए हुए हैं। अब इन भवनों पर गाज गिरना तय हैं। अदालत ने राष्ट्रीय हरित पंचाट के फैसले का भी इस जजमेंट में जिक्र किया हैं।
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