शिमला। जयराम सरकार में 280 करोड़ रुपए के अपफ्रंट वापसी का मुकदमा जीत चुकी अदाणी पावर कंपनी के मामले में सुक्खू सरकार तारीख पर तारीख मांगती नजर आ रही है। लेकिन मंगलवार 20 जून को प्रदेश हाईकोर्ट ने सुक्खू सरकार को अल्टीमेटम दे दिया कि अब आगेउसे कोई तारीख नहीं मिलेगी।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एम एस रामचंद्र राव व न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने कहा कि अतिरिक्त महाधिवक्ता प्रणय प्रताप सिंह के आग्रह पर सरकार को आखिरी बार अगली तारीख दी जा रही है। खंडपीठ ने साफ कर दिया कि अब महाधिवक्ता को इस मामले में अगली तारीख नहीं दी जाएगी। मामले की अगली सुनवाई 11 जुलाई को निर्धारित कर दी गई है।
जय राम सरकार की तरह ही सुक्खू सरकार की ओर से भी इस मामले में तारीखें ही मांगी जा रही है।
कायदे से इस हाइ प्रोफाइल मामले में सुक्खू सरकार को गोपाल सुब्रमण्यम, कपिल सिब्बल, पी चिदबंरम अभिषेक मनु सिंघवी जैसे कददावर कानूनविदों की सेवाएं लेनी चाहिए लेकिन सरकार के स्तर पर कौई फैसला नहीं लिया जा रहा है। उल्टे विभाग से पूछा जा रहा है कि क्या बाहर से वकील की सेवाएं ली जानी चाहिए। यह अजीबो गरीब स्थिति हैं। सरकार कारोबारियों से जुड़े मामलों में प्रदेश के हितों को ताक पर रखने से बाज नहीं आ रही हैं।
जयराम सरकार की तरह अब सुक्खू सरकार भी इस मामले में ढीली पड़ती नजर आ रही हैं।
अदाणी पावर ने हाईकोर्ट में एलपीए में दायर कर रखी है कि उसे हाईकोर्ट के एकल जज न्यायमूर्ति संदीप शर्मा के अप्रैल 2022 के फैसले के मुताबिक 280 करोड़ रुपए जो उसने नीदरलैंड की कंपनी ब्रेकल एनी की ओर से जमा कराए थे , को वापस किया जाए। इसी के साथ अदाणी पावर ने ब्याज की रकम भी तब से मांगी थी जब से उसने यह पैसा जमा कराया था। अप फ्रंट मनी की रकम ब्रेकल ने 2008 में जमा कराई थी लेकिन यह रकम अदाणी समूह की कंपनियों से जमा हुई थी।
बाद में ब्रेकल ने सरकार को जवाब में कहा था कि उसने यह रकम अदाणी से उधार ली है। 2009 के प्रदेश हाईकोर्ट की खंडपीठ के फैसले में खंडपीठ में जिक्र है कि अदाणी ने यह पैसा अपने जोखिम पर जमा कराया है। अदाणी पावर को भलिभांति पता था कि कि ब्रेकल ने छह से नौ हजार करोड रुपए का 960 मेगावाट का जंगी थोपन व पोवारी पन बिजली प्रोजेक्ट फर्जी दस्तावेजों के आधार पर लिया था। लेकिन इस पहलू पर न तो एकल जज की पीठ ने गौर किया और न ही जयराम सरकार की ओर से सरकार का पक्ष मजबूती से अदालत के समक्ष रखा गया था।
याद रहे सरकार ने इस मामले में एकल जज के फैसले पर स्टे लगाने की अर्जी दाखिल की है लेकिन अदालत की ओर से अभी तक न तो सरकार और न ही अदाणी पावर की अर्जियायें पर कोई फैसला लिया हैं। एकल जज न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने अप्रैल 2022 में सरकार को आदेश दिए थे कि वह अदाणी पावर के 280 करोड़ रपए दो महीने के भीतर वापस करे अगर ऐसा नहीं कर पाती है तो इस रकम पर नौ फीसद ब्याज अदा करना होगा।
अब मामला अपील में है। इससे पहले हुई सुनवाई को सुक्खू सरकार ने खंडपीठ के समक्ष कहा था कि ब्रेकल कंपनी का निदेशक नीदरलैंड का नागरिक डीन गेसटरकैंप विजीलेंस के मामले में फरार है व जब तक वह जांच में शामिल नहीं होता तब इस पैसे को अदाणी पावर को जारी न किया जाए।
गेस्टरकैंप के खिलाफ विजीलेंस ने धारा 420 के तहत दर्ज किए गए मामले में ब्लू नोटिस जारी किया हुआ हैं। सुक्खू सरकार ने कहा था कि गैस्टरकैंप की ओर से अलग–अलग दस्तावेजों में किए दस्तख्त मेल नहीं खा रहे हैं।अदाणी पावर के साथ गेस्टरकैंप बोनाफाइडी निवेशक है इसलिए अदाणी पावर को कहा जाए कि वह गेस्टरकैंप को हाजिर करे।सुक्खू सरकार ने इस तरह कुछ नए दस्तावेज सामने लाने को लेकर अर्जी दायरकी थी।
सुक्खू सरकार ने कहा था कि ब्रेकल के निदेशक गेस्टरकैंप ने अदाणी पावर को एनओसी दे रखी है कि अगर अपफ्रंट मनी का पैसा अदाणी पावर को लौटा दिया जाए तो उसे कोई आपति नहीं हैं लेकिन यह गेस्टरकैंप ने ही एनओसी दी है यह कितना सही है यह देखना लाजिमी हैं।
याद रहे 2006 में पूर्व की वीरभद्र सिंह सरकार ने किन्नौर के पोवारी में 960 मेगावाट के दो प्रोजेक्टस को नीदरलैंड की कंपनी ब्रेकल को आवंटित किए थे। इस मामले में तब भाजपा ने धांधली व किकबैक के इल्जाम लगाए थे। बोली में दूसरे नंबर पर रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी थी। दिसंबर 2007 में प्रदेश में भाजपा नीत धूमल सरकार सत्ता में आई व उसने इस मामले की जांच बिठा दी तो पता चला कि ब्रेकल ने तमाम महत्वपूर्ण दस्तावेज जाली लगाए हुएहैं। ब्रेकल ने आवंटन होने के बाद तय समय में अप फ्रंट मनी भी जमा नहीं कराया । इस पर रिलायंस ने अदालत का दरवाजा खटखटा दिया। सुनवाई के दौरान ब्रेकल ने अदाणी से पैसा उधार 260 करोड़ रुपए अप फ्रंट मनी व 20 करोड़ का जुर्माना जमा करा दिया।
धूमल सरकार की ओर से जांच में तमाम तथ्य सामने आने के बाद भी धूमल ने इस प्रोजेक्ट को ब्रेकल को आवंटित रहने दे दिया। इस बात को लेकर अगर आज भी छानबीन हो जाए कि धूमल ने ऐसा क्यों किया तो देश के बड़े नेता की भूमिका सामने आने की पूरी संभावना हैं। जबकि विजीलेंस 2008 से ही इस मामले में ब्रेकल के खिलाफ 420 का केस दर्ज करने की इजाजत मांगती रही थी। जो उसे नहीं दी गई। लेकिन आज तक इस की छानबीन किसी ने नहीं की। धूमल सरकार के इस फैसले के खिलाफ रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने अदालत में चुनौती दी थी व यह आवंठन रदद हो गया था।
दिसंबर 2012 में प्रदेश में कांग्रेस की वीरभद्र सिंह सरकार सत्ता में आई तो उसने 2015 में मंत्रिमंडल में अजीबो गरीब फैसला लिया कि सरकार इस परियोजना को रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर को आवंटित करती है और जो पैसा रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर से बतौर अप फ्रंट का मिलेगा उस में सरकार अदाणी के 280 करोड़ लौटा देगी।
वीरभद्र सिंह सरकार का यह फैसला अपने आप में ही गैर कानूनी था लेकिन इसे कभी चुनौती नहीं दी गई ।कैग की रपट में जरूरइस पर सवाल उठाए गए। लेकिन 2016 में रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने परियोजना को कार्याव्नित करने से इंकार कर दिया। इस बीच दिसबंर 2017 में वीरभद्र सिंह सरकार ने फैसला लिया कि ठेके के नियमों और कानूनी जटिलताओं के चलते वह इस अप फ्रंट मनी की रकम को अदाणी को अदा नहीं कर सकती।
अदाणी पावर ने इसे ही अदालत में चुनौती दी लेकिन जयराम सरकार ने सरकार का पक्ष सही तरीके से अदालत में नहीं रखा और अदाणी पावर मुकदमा जीत गई। अब सुक्खू सरकार का रवैया भी समझ से परे हैं।
उधर इस मामले में विजीलेंस ने ब्रेकल के खिलाफ 2019 में 420 का केस दर्ज कर रखा है और ब्रेकल के मुख्य निदेशक नीदरलैंड के नागरिक गेस्टरकैंप के खिलाफ रेड कार्नर नोटिस निकाल रखा हैं। लेकिन अभी तक विजीलेंस के हाथ क्या लगा है इस बावत कोई जानकारी किसी को नहीं हैं। पूर्व में अतिरिक्त मुख्य सचिव पावर रहे तरुण कपूर इस मामल को लेकरकहते थे कि ब्रेकल ने तो दुनिया में कहीं भी एक वाट बिजली भी पैदा नहीं की हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि वीरभद्र ,धूमल और जयराम इस मामले में कारोबारियों के साथ क्यों खड़े होते नजर आ रहे हैं।
उधर, जब से सुक्खू सरकार सता में आई है वह जयराम सरकार की तरह ही तब से ही इस मामले में तारीखें पर तारीखें मांगती आ रही हैं। पावर महकमा खुद सुक्खू के पास है । न तो सुक्खू खुद इस मामले में कोई रिव्यू कर रहे है और न ही तैनात सीपीएस ही कोई गौर फरमा रहे हैं। अब 11 जुलाई का इंतजार हैं।
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