शिमला।हिमाचल हाईकोर्ट ने अदाणी पावर की अपील दरकिनार कर हिमाचल के नेताओं, नौकरशाहों और देश विदेश के कारपोरेट घरानों को बड़ा संदेश दिया है कि ताकत के दम पर कारनामें दिखाना डूबो भी सकता है। हिमाचल हाईकोर्ट ने अदाणी पावर को अप फ्रंट मनी के 280 करोड़ रुपए और 2008 से अब तक 12 फीसद ब्याज देने के उसके आग्रह को ठुकरा दिया। इस मामले में देश भर के कई कारपोरेट घरानों के अलावा कानूनविदों ,नेताओं और नौकरशाहों की नजरें लगी हुई थी। लेकिन जब जस्टिस बिपिन चंदर नेगी नेगी का लिखा फैसला सामने आया तो कुछ तो धराशायी हो गए जबकि बाकी अभी तक गदगद हैं।
बहरहाल हिमाचल हाईकोर्ट के इस फैसले ने अदाणी पावर की 280 करोड़ रुपए वसूलने की मुहिम पर पानी फेर दिया। जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर और जस्टिस बिपिन चंदर नेगी की डबल बैंच ने 18 जुलाई 2024 को अदाणी पावर कंपनी की अपील पर सुरक्षित रखा फैसला सुना दिया।
गौर हो कि अप्रैल 2022 में जस्टिस संदीप शर्मा की एकल बैंच ने अदाणी के पक्ष में फैसला सुना दिया था व सरकार को 280 करोड़ लौटाने के आदेश दिए थे।इसके साथ ही दो महीनों के भीतर ये रकम न लौटाने पर दस फीसद ब्याज देने का भी आदेश था।ये फैसला बीजेपी की जयराम सरकार में आया था । जब दो महीनों के भीतर ये रकम नहीं लौटाई गई तो इस फैसले से गदगद अदाणी पावर ने 280 करोड़ के साथ 2008 से 12 फीसद ब्याज अदा करने भी मांग कर दी। अदाणी ने दावा किया कि उसने ये रकम अप फ्रंट मनी के तौर में 2008 में जमा कराई थी। लेकिन डबल बैंच ने उसकी अपील को खारिज कर दिया जो अदाणी के लिए एक बड़े झटके से कम नहीं हैं।
ये फैसला लिखा जस्टिस बिपिन चंदर नेगी नेगी ने जिसकी प्रदेश के न्यायिक गलियारों के अलावा नौकरशाही और नेताओं की जुंडलियों में खूब चर्चा हो रही है। इसके अलावा प्रदेश व देश में पावर सेक्टर में काम कर रहे उद्योगपतियों में भी खलबली मची हुई हैं। जाहिर सी बात है सुप्रीम कोर्ट तक भी ऐसे फैसले की गूंज पहुंचेंगी ही। अमृतकाल में आया ये फैसला आम जनता के लिए आशा जगाने वाला है ।
याद रहे 960 मेगावाट के जंगी थोपन व थोपन पोवारी हाइडल प्रोजेक्ट के आवंटन का ये मामला भ्रष्टाचार के नाम से हिमाचल के गली कूचों में 2006 से गूंजता रहा है लेकिन इस मामले में नया मोड़ हाईकोर्ट के फैसले के बाद आया।
याद रहे भ्रष्टाचार के संगीन इल्जामों से रंगी-पुती ये कहानी 2006 में तत्कालीन कांग्रेस की वीरभद्र सिंह सरकार के समय से शुरू होती हैं।
2006 में कांग्रेस सरकार ने किन्नौर जिला में जंगी थोपन व थोपन पोवारी नाम से 960 मेगावाट के मेगा हाइडल प्रोजेक्ट का आवंटन नीदरलैंड की कंपनी ब्रेकल कारपोरेशन एन वी को किया था।लेकिन ब्रेकल कंपनी निर्धारित समय पर अप फ्रंट मनी जमा नहीं करा पाई।
अदाणी समूह की कंपनियों ने ब्रेकल कारपोरेशन एनवी की ओर से ये रकम 2008 में उस समय जमा कराई थी जब 960 मेगावट के इस हाइडल प्रोजेक्ट को लेकर ब्रेकल कारपोरेशन एनवी व अंबाणी समूह की रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर में कानूनी जंग चरम पर चली हुई थी और प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल की कमान में बीजेपी सरकार सत्ता में आ चुकी थी। तब मामले की सुनवाई कर रही अदालत ने अदाणी समूह को उस वक्त आगाह किया था कि वो ये रकम अपने जोखिम पर जमा करा रहा हैं। क्योंकि अदाणी समूह की इस प्रोजेक्ट में कोई हिस्सेदारी नहीं है और न ही वो ब्रेकल के साथ कंसोरटीयम में शामिल था।
याद रहे 2006 में तत्कालीन कांग्रेस की वीरभद्र सिंह सरकार ने हिमाचल के कबाइली जिला किन्नौर में 980 मेगावाट के जंगी थोपन व थोपन पोवारी हाइडल प्रोजेक्ट को नीदरलैंड की कंपनी ब्रेकल कारपोरेशन को आवंटित किया था। ग्लोबल बिड हुई थी व ब्रेकल की बिड पहले नंबर रही थी दूसरे नंबर पर रही थी अंबाणी समूह की कंपनी रिलायंस एनर्जी या रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर। तब बीजेपी विपक्ष में होती थी और प्रेम कुमार धूमल बीजेपी के बड़े चेहरे हुआ करते थे।
याद रहे तब मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री होते थे और धूमल व मोदी की यारी किसी से छिपी नहीं थी। चुनावी दौर में बीजेपी ने इस आवंटन को लेकर वीरभद्र सरकार पर भ्रष्टाचार के संगीन इल्जाम लगा दिए व अपने आरोपपत्र में इसे शामिल कर दिया।
दिसंबर 2006 में प्रोजेक्ट आवंटित होने के बाद ब्रेकल 20 अगसत 2007 तक भी जब अप फ्रंट मनी जमा नहीं करा पाई तो बोली में दूसरे नंबर पर अंबाणी समूह की कंपनी रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड ने सरकार से आग्रह किया कि चूंकि ब्रेकल कांट्रेक्ट के प्रावधानों के मुताबिक अप फ्रंट मनी जमा नहीं करा पाई है इसलिए ये प्रोजेक्ट उसे आवंटित किया जाए। कांट्रेक्ट के प्रावधानों के मुताबिक ब्रेकल को ये रकम दिसंबर 2006 में लेटर आफ इंटेट मिलने के तुरंत बाद जमा करानी था।
वीरभद्र सरकार ने ये मांग ठुकरा दी और रिलायंस इ्रफ्रास्ट्रक्चर ने नवंबर 2007 में हिमाचल हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया। तब प्रदेश में विधानसभा चुनावों को लेकर आचार संहिता लग चुकी थी और बीजेपी इस मामले को चुनावी प्रचार के जरिए प्रदेश के गली कुचों में पहुंचाने में जुट गई थी ।
दिसबंर 2007 में हिमाचल में बीजेपी की सरकार बन गई और प्रेम कुमार धूमल दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। सरकार ने ब्रेकल के खिलाफ विजीलेंस और आयकर विभाग की जांच चला दी तो पता चला कि ब्रेकल ने जो वित व तकनीकी ताकत के दस्तावेज जुटाए है वो सब झूठे है।इससे प्रदेश भर में बवाल मच गया।
विजीलेंस ने धूमल सरकार से ब्रेकल के खिलाफ 2008 में आइपीसी की धारा 420 के तहत नियमित मुकदमा चलाने की मंजूरी मांगी जो नहीं दी गई।
इस बीच अदालत ब्रेकल को अप फ्रंट मनी जमा कराने की मोहल्लत देती रही तो दूसरी ओर धूमल सरकार ने ब्रेकल को आवंटन रदद करने का नोटिस भेज दिया।
आखिर में ब्रेकल की ओर से 280 करोड़ रुपए जमा करा दिए गए। इसमें देरी से अप फ्रंट मनी जमा कराने पर लगा जुर्माना भी शामिल था ।ये रकम ब्रेकल कंपनी के वाऊचर पर जमा कराई गई।अब तक किसी को भी ये मालूम नहीं था कि ये रकम ब्रेकल के पास कहां से आई।
इस बीच धूमल सरकार ने कमेटी आफ सेक्रेटरीज का गठन किया व इस मामले को इस कमेटी के सुपुर्द कर दिया। इस कमेटी में मुख्य सचिव, वित सचिव व पावर सचिव जैसे तमाम बड़े नौकरशाह शामिल हुए। तब तक विजीलेंस और आयकर विभाग की रपटें आ चुकी थी जिनका जिक्र अदालत में भी हो चुका था।
नौकरशाहों की इस कमेटी ने सबको हैरान कर दिया और राय दी कि इस समय प्रोजेक्ट को रदद नहीं किया जाना चाहिए। बड़ी बात ये रही है कि नौकरशाहों की इस कमेटी की बैठक में ब्रेकल के प्रतिनिधि तक मौजूद रहे।
धूमल सरकार ने बड़ा उल्टफेर करते हुए विजीलेंस व आयकर विभाग की जाचों में झूठे दस्तावेजों का खुलासा होने के बावजूद इस प्रोजेक्ट को रदद न कर ब्रेकल के पास ही रहने दिया। धूमल सरकार के इस फैसले ने सबको हैरत में डाल दिया। ऐसा क्यों हुआ इस पर से अभी तक पर्दा नहीं उठा है ।
जबकि कायदे से इतना बड़ा फ्राड करने वाले तमाम लोग सलाखों के पीछे हो जाने चाहिए थे। लेकिन इस मुल्क में कहा जाता है कि जब नेता, नौकरशाह और कारपोरेट जगत की हस्तियां साथ हो तो फिर तमाम चार सौ बीसी (420) खत्म हो जाती हैं।
बहरहाल ,धूमल सरकार के इस फैसले के खिलाफ बोली में दूसरे नंबर पर रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने अदालत का दरवाजा खटखटा दिया व 7 अक्तूबर 2009 को तत्कालीन जस्टिस दीपक गुप्ता व जस्टिस वी के आहुजा ने तमाम तरह की टिप्पणियां करते हुए इस आवंटन को रदद कर दिया। साथ ही कहा कि सरकार चाहे तो वो इस प्रोजेक्ट को रिलायंस इंफ्रास्ट्रकचर को आवंटित कर सकती है या दोबारा बोली लगा सकती हैं।
इसी सुनवाई के दौरान खुलासा हुआ था कि जो अप फ्रंट मनी ब्रेकल ने जमा कराया है वो अदाणी समूह की कंपनियों के खातों से आया हैं। जबकि अदाणी समूह की कंपनी अदाणी पावर की ब्रेकल के साथ न तो हिस्स्ेदारी थी और न ही उसे कंसोरटियम का सदस्य बनने के लिए सरकार ने मंजूरी दी थी।चूंकि बोली दस्तावेजों के प्रावधानों में प्रोजेक्ट के आवंटन के बाद ऐसा करना मुश्किल था।इससे सब हैरत में पड़ गए और इस आवंटन के दौरान लगे इल्जामों को बल मिला।
हाईकोर्ट का ये फैसला धूमल, उनकी सरकार,बीजेपी के साथ नौकरशाहों की जुंडली के लिए बड़ा झटका था। इस दौरान खबरनवीसों को लेकर भी तमाम तरह की अफवाहें उड़ती रही। धूमल सरकार ने इस प्रोजेक्ट की दोबारा बोली लगाने का फैसला लिया लेकिन दिसंबर 2012 तक जब तक बीजेपी सत्ता में रही उसने इसकी बोली नहीं लगाई।
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ ब्रेकल व रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया और अदाणी अप फ्रंट मनी को लौटाने के लिए सरकार को चिटिठयां लिखता रहा। इस बीच दिसंबर 2012 में प्रदेश में दोबारा से कांग्रेस की वीरभद्र सिंह सरकार सता में आ गई और वीरभद्र सिंह भ्रष्टाचार के आरोपों में बीजेपी ने एक बार फिर से घेर लिए थे।
धूमल व बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय नेता अरुण जेटली के अलावा सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण भी सक्रिय हो गए । इस बीच वीरभद्र सिंह के खिलाफ स्टील घोटाले में सीबीआइ जांच की मुहिम शुरू हो गई।
उधर ,अदाणी पावर ने सुप्रीम कोर्ट में ब्रेकल की याचिका के साथ एक अर्जी दायर कर दी कि अप फ्रंट मनी उसने जमा कराया है सो उसे लौटाया जाए। 2014 में केंद्र में मोदी सरकार सत्तासीन हो गई।
अदाणी के अर्जी दायर करने के बाद वीरभद्र सरकार ने ब्रेकल को नोटिस भेज दिया कि उसकी वजह से 960 मेगावाट का ये हाइडल प्रोजेक्ट नहीं लगा व 2014 तक हिमाचल को 2713 करोड़ रुपयों का पोटेंशियल नुकसान हो चुका है।इसलिए इस नुकसान की भरपाई की जाए। यही नहीं 2014 में ही वीरभद्र सिंह सरकार ने अदाणी की अप फ्रंट मनी लौटाने की चिटिठयों पर अपना फैसला सुनाते हुए उसके आग्रह को ठुकरा दिया और दो टूक कह दिया कि अदाणी पावर का इस मामले में हिमाचल सरकार से कभी कोई लेना देना ही नहीं रहा। 2713 करोड़ रुपए के नुकसान की भरपाई का नोटिस जाने के बाद ब्रेकल ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी याचिका वापस ले ली साथ ही अदाणी की अर्जी भी वापस हो गई।
सुप्रीम कोर्ट में अब मामला हिमाचल सरकार व रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर के बीच में ही रहा।
लेकिन प्रदेश में तब खलबली मच गई जब वीरभद्र सिंह कैबिनेट ने दस सितंबर 2015 में बेहद हैरान करने वाला कदम उठाया और इस प्रोजेक्ट को 2006 की बोली के आधार पर रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर को कर दिआवंटित करने का फैसला लिया व शर्त रखी की वह सुप्रीम कोर्ट से मुकदमा वापस ले लें।इसी कैबिनेट में ये भी फैसला लिया कि जो अप फ्रंट मनी रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर की ओर से जमा कराया जाएगा उस में से अदाणी के 280 करोड़ रुपए लौटा दिए जाएंगे।
इसी बीच ब्रेकल को नुकसान की भरपाई के लिए जो 2713 करोड़ का नोटिस दिया था उसे भी वापस ले लिया।
पृथम दृष्टया कैबिनेट के ये फैसले हैरान करने वाले थे। क्यांकि जब प्रोजेक्ट ही नहीं लगा तो कांट्रैकट के प्रावधानों के मुताबिक अप फ्रंट मनी की ये रकम जब्त हो जानी थी। इसके अलावा 5 लाख से ज्यादा के किसी भी काम के लिए बोली लगाने का कानूनी प्रावधान वित नियमों में हैं।लेकिन वीरभद्र सिंह सरकार ने खिलौने की तरह इस नौ हजार करोड़ के हाइडल प्रोजेक्ट को अंबाणी समूह की रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर को दे दिया । जबकि धूमल कैबिनेट ने 2009-10 में फैसला लिया था कि इस प्रोजेक्ट के लिए दोबारा से निविदाएं मंगाई जाएंगी।
इस फैसले से वीरभद्र सिंह ही नहीं अदाणी व अंबाणी भी गदगद हो गए।क्यों कि सबके वारे न्यारे एक ही झटके में हो गए थे।
लेकिन ये फैसला अपने आप में हैरान करने वाला था कि आखिर 2006 की बोली के आधार पर 2015 में इतना बड़ा प्रोजक्ट कैसे किसी कंपनी को दिया जा सकता था। रिलायंस के हाथ एक बड़ा प्रोजेक्ट लग चुका। वो इस प्रोजेक्ट को लेने को तैयार हो गया।
यहां बेहद दिलचस्प बात ये थी कि हिमाचल में बीजेपी उस समय विपक्ष में थी और प्रेम कुमार धूमल नेता प्रतिपक्ष थे। इतना बड़ा कांड होने के बावजूद बीजेपी चुप रही व करीब पंद्रह दिनों बाद एक सरसरी प्रतिक्रिया सामने आई। उसने केवल रस्म अदायगी के लिए इस आवंटन को कटघरे में खड़ा किया।वो तब से लेकर अब तक इस मसले पर चुप्पी ही साधे हुए हैं।
दिलचस्प ये है कि दस सितंबर 2015 को वीरभद्र सिंह कैबिनेट ने ये फैसला लिया व 26 सितंबर 2015 को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेश की तीन दिन की यात्रा पर थे तो वीरभद्र सिंह के शिमला में निजी आवास हालीलाज पर स्टील घोटाले को लेकर सीबीआइ की रेड पड़ गई। उस समय तमाम तरह की अफवाहों का बाजार गर्म था कि सीबीआइ रेड के पीछे इस प्रोजेक्ट का आवंटन हैं हालांकि इसकी पुष्टि रिपोर्टर्ज आइ नहीं करता हैं।इसी दिन वीरभद्र सिंह की बेटी की शादी भी स्थानीय मंदिर में थी।
तब से ये सौदा दोबारा से मुश्किल में पड़ता गया। रिलायंस ने सुप्रीम कोर्ट से मुकदमा तो वापस ले लिया लेकिन बाद में एक चिटठी लिखकर वीरभद्र सिंह सरकार से आग्रह किया कि राज्य सरकार उसे पर्यावरण मंजूरियां ले के दें दे।चूंकि ऐसा पूरे देश में कहीं होता ही नहीं था।कानूनी प्रावधान ही नहीं था सो सरकार के ऐसा करने से मुकर जाने के बाद 2016 में रिलायंस ने भी इस प्रोजेक्ट से हाथ खींच लिए।
सुप्रीम कोर्ट से मामला वापस हो जाने के बाद विजीलेंस एक बार फिर सक्रिय हो गई ।उसने सरकार से ब्रेकल के खिलाफ 420 का मुकदमा दायर करने की मंजूरी मांगी । यहां पर नौकरशाह फाइलों को किस तरह से टास करते रहें वो अलग किस्सा हैं।विजीलेंस की ओर से 2008 से ही इस मामले में नियमित एफआइआर दर्ज करने की मांग की जाती रही थी लेकिन विधि विभाग ने कोई कानूनी राय दे दी कि जब तक ये मामला अदालतों के अधीन है तब तक एफआइआर दर्ज नहीं की जानी चाहिए। इस तरह की विधि विभाग ने एक और राय दी थी कि एक ही प्रोजेक्ट के लिए दो-दो बार अप फ्रंट मनी नहीं वसूला जा सकता। विधि विभाग की ये तमाम कानूनी रायें आज भी कटघरे में हैं ।
लेकिन ये मामला यही बंद नहीं हुआ। वीरभद्र सिंह सरकार की ओर से अदाणी समूह को विधानसभा चुनावों से ऐन पहले दस अक्तूबर 2017 और 26 अक्तूबर 2017 को चिटिठयां लिखी कि सरकार अदाणी को अप फ्रंट मनी लौटाने के तौर तरीकों पर गौर कर रही हैं। ये चिटिठयां क्यों लिखी गई । किसके इशारे पर लिखी गई किन मंशाओं के साथ लिखी गई कायदे से इसकी जांच होनी चाहिए थी। यही वो दो चिटिठयां है जिन्होंने सब कुछ संदेहास्पद बना दिया हैं। प्रदेश में 13 अक्तूबर 2017 को आचार संहिता लग गई थी।
आचार संहिता के बीच सात दिसंबर 2017 को वीरभद्र कैबिनेट ने बड़ा उल्टफेर करते हुए फैसला लिया सरकार अपफ्रंट मनी लौटाने के अपने दस सितंबर 2015 के फैसले को वापस लेती है क्योंकि इसमें कानूनी जटिलताएं हैं।यहां ये काबिले गौर है कि ये मसौदा मंत्रियों को सर्कुलेट किया गया था।
इसी दस दिसबंर 2017 के फैसले को आधार बनाकर 2019 में अदाणी पावर ने बीजेपी की जयराम सरकार के दौरान हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया। लेकिन उसने ब्रेकल कारपोरेशन एन वी को पक्ष नहीं बनाया। अदाणी ने दावा किया कि ब्रेकल ने उसे ये रकम सरकार से लेने के लिए अधिकृत कर दिया है। ये अपने आप दिलचस्प था।ऐसा इसी मुल्क में हो सकता हैं।
दिसंबर 2017 में प्रदेश में बीजेपी सरकार सत्ता में आई और मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल नहीं बल्कि जयराम ठाकुर बन गए। कायदे से इस मामले में 2015 से लेकर 2017 तक क्या–क्या कारगुजारियां हुई थी ये आवंटन कैसे हो गया था इसकी गहन जांच होनी चाहिए थी लेकिन मामला अदाणी-अंबाणी समूह की कंपनियों से जुड़ा था और देश में मोदी सरकार सत्ता में थी तो कहीं कोई हलचल ही नहीं हुई।
विजीलेंस की ओर से इस मामले में ब्रेकल के खिलाफ बार-बार 420 का मुकदमा दायर करने के लिए सरकार से मंजूरी मांगी जाती रही लेकिन हर बार नौकरशाह फाइलों को घुमाते रहे।
अदाणी समूह ने जयराम सरकार को भी इस रकम को लौटाने के लिए चिटिठयां लिखी व 2019 में हाईकोर्ट में याचिका भी दायर कर दी।
इस मामले की सुनवाई के दौरान एक अजीबो गरीब वाक्या हो गया। हिमाचल हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने अपने आदेश में लिखा कि अदालत के समक्ष जयराम सरकार के एडवोकेट जनरल ने कहा कि सरकार इस मामले पर कैबिनेट में गौर करेगी।अदालत ने इस मामले को कैबिनेट में ले जाने का आदेश दिया व ये पैसा कैसे अदाणी समूह को लौटाया जाए इस बावत अदालत को अवगत कराने का आग्रह भी किया।
लेकिन जैसे ही ये आदेश तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव पावर प्रबोध सक्सेना के पास पहुंचा तो वो हैरान रह गए। उन्होंने तुरंत तत्कालीन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर जिनके पास इस दौरान बिजली महकमा भी था को फाइल भेजी कि उन्होंने एडवोकेट जनरल को कभी भी इस तरह के निर्देश नहीं दिए कि वह अदालत में ये कहें कि सरकार इस मसले को कैबिनेट में ले जाना चाहती हैं।
जयराम से ये फाइल कैबिनेट की बैठक हो जाने तक सक्सेना के पास वापस ही नहीं आई। जब वापस ये फाइल सक्सेना के पास पहुंची तो जयराम ने इस पर कुछ भी टिप्पणी नहीं की थी। जयराम कैबिनेट ने फैसला लिया कि सरकार अदाणी पावर को अप फ्रंट मनी नहीं लौटाएगी।प्रबोध सक्सेना अब कांग्रेस की मौजूदा सुखविंदर सिंह सरकार में मुख्य सचिव हैं। इस तरह कैबिनेट में मामले को ले जाना अपने में आप हैरान करने वाला व रहस्य लिए हुए हैं।
जब ब्रेकल के खिलाफ हो गई एफआइआर
सुप्रीम कोर्ट से रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर के याचिका वापस लेने के बाद नौकरशाह विजीलेंस को इस मसले में एफआइआर दर्ज करने की मंजूरी नहीं दे रहे थे। इस बीच जयराम सरकार ने 1989 बैच के आइपीएस अधिकारी संजय कुंडू को प्रधान सचिव विजीलेंस की कुर्सी पर बिठा दिया। वह बाद में हिमाचल के डीजीपी भी बने।पहले वह भी एफआइआर करने को तौयार नहीं थे। लेकिन एक संक्षिप्त सी मुलाकात में जब उनसे कहा गया कि क्या झूठे दावों के आधार पर अरबों-खरबों का प्रोजेक्ट हथिया लेना वाजिब है। वो भी तब जब ये तमाम दावे झूठे है ये विजीलेंस ने खुद अपनी जांच में पाया हैं। उसके बाद कुंडू ने इस मामले में ब्रेकल के खिलाफ 420 का मुकदमा दायर करने की मंजूरी दी व तब जाकर कहीं एफआइआर हुई।
420 के इस मामले में तब से लेकर अब तक विजीलेंस की जांच कहां तक पहुंची है इस पर किसी और दिन पर्दा उठाया जाएगा।
दूसरी ओर 2019 से अदाणी की याचिका पर हाईकोर्ट में डबल बैंच में सुनवाई चलती रही व बाद में हाईकोर्ट ने इसे सिंगल बैंच के सुपुर्द कर दिया।अप्रैल 2022 में जस्टिस संदीप शर्मा की सिंगल बैंच ने अदाणी के पक्ष में फैसला सुनाते हुए 280 करोड़ रुपयों को दो महीने में लौटाने का फैसला सुना दिया। साथ ही अपने फैसले में कहा कि अगर दो महीनों के भीतर ये रकम नहीं लौटाई गई तो दस फीसद ब्याज अदा करना होगा।
जयराम सरकार में इस फैसले को लागू करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए। सरकार की ओर से डिवीजन बैंच में अपील कर दी गई उधर गदगद अदाणी पावर ने भी इस फैसले को लागू करने के लिए अपील कर दी। उसने जिस दिन उसके खाते से पैसे सरकार के खाते में गए थे उस दिन से ब्याज अदा करने की मांग भी कर दी।
दिसंबर 2022 में प्रदेश में कांग्रेस की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार सत्त में आ गई व इस मामले की सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से तारीखों पर तारीखें मांगी जाती रही।
अदाणी पावर ने कांट्रैक्ट एक्ट की धाराओं को आधार बनाया लेकिन जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर व जस्टिस बिपिन चंदर नेगी ने अदाणी समूह की तमाम दलीलों को दरकिनार कर दिया व सात अक्तूबर 2009 की तत्कालीन जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस वी के आहुजा की डिवीजन बैंच के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि इस मामले में ब्रेकल ने फ्राड कर ये प्रोजेक्ट हथियाया व अदाणी ने जब पैसा जमा कराया तो उसे मालूम था कि ये मामला कानूनी जटिलताओं में उलझा हुआ हैं। तत्कालीन डिवीजन बैंच ने उसे व ब्रेकल को तब भी आगाह किया था कि वो ये रकम अपने जोखिम पर जमा करा रहे हैं। इसके अलावा अदाणी कभी भी ब्रेकल के साथ कंसोरटीयम में नहीं रहा व न ही उसकी इस प्रोजेक्ट में कोई हिस्सेदारी हैं। अगर उसे ये रकम लेनी ही है तो वो ब्रेकल से लेनी है न की सरकार से।
जस्टिर ठाकुर व जस्टिस नेगी ने अपने फैसले में ये भी कहा कि जस्टिस संदीप शर्मा की एकल बैंच ने इन पहलुओं को अपने फैसले में नजरअंदाज किया हैं। जस्टिस ठाकुर व जस्टिस नेगी ने यह भी कहा कि 2009 का फैसला मान्य है जिसमें ब्रेकल के तमाम दावों को झूठा पाया जा चुका हैं।
इस तरह इस फैसले से अदाणी समूह की कंपनी को बड़ा झटका तो लगा ही है साथ ही सुक्खू सरकार को भी कुछ राहत मिली है ।जाहिर सी बात है अब ये मामला सुप्रीम कोर्ट जाएगा जहां सुक्खू सरकार की असल परीक्षा होनी हैं।
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