वीरभद्र -धूमल राज के छह हजार करोड़ के प्रोजेक्ट में विदेशी कंपनी ब्रेकल पर FIR करने पर ‘रार’, IPS मरढ़ी फंसा गए थे पेंच शिमला। छह हजार से नौ हजार करोड़ के जंगी थोपन हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट को हथियाने के लिए कांड करने वाली हालैंड की कंपनी ब्रेकल एन वी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की विजीलेंस की अर्जी पर वीरभद्र सरकार के लॉ विभाग और एनर्जी निदेशालय में फाइलों को सरकाने का काम चल रहा हैं।
2016 में विजीलेंस विभाग ने सरकार को लिखा था कि ये मामले सुप्रीम कोर्ट से निपट चुका हैं ऐसे में ब्रेकल के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने बारे आगे की कार्यवाही की जाए। विजीलेंस इससे पहले दो बार ऐसा कह चुकी हैं। 2011 में विजीलेंस के तत्कालीन एडीजीपी सीताराम मरढ़ी ने फाइल में साफ लिखा था कि ब्रेकल के कारनामों को देखते हुए उसके खिलाफ मामला बनता है व एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए। मरढ़ी का फंसाया ये पेंच विजीलेंस के गले फंसा हुआ हैं।
जब फाइल तत्कालीन भाजपा की धूमल सरकार के पास गई तो मामला लॉ विभाग को राय के लिए भेज दिया गया। लॉ विभाग ने तब कहा था कि चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में हैं,ऐसे में फैसले का इंतजार किया जाए। सुप्रीम कोर्ट अबानी की कंपनी रिलायंस इंफ्रास्ट्रकचर गई थी । जो बोली में नबंर दो पर थी। ब्रेकल ने इस प्रोजेक्ट को हथियाने के लिए कारनामें दिखाए थे तो प्रदेश हाईकोर्ट ने वीरभद्र व धूमल दोनों की सरकारों की ओर से अलग -अलग समय में ब्रेकल को इस प्रोजेक्ट के आवंटन के फैसले को रदद कर दिया था।
इस मामले में वीरभद्र सरकार ने तो कारनामें दिखाए ही थे धूमल सरकार ने भी कम कांड नहीं किए थे। कमेटी ऑफ सेक्रेटरी की बैठक में अदाणी की कंपनी के प्रतिनिधियों की मौजूदगी आज भी जांच की विषय हैं।वीरभद्र सरकार में ब्रेकल को हुए इस प्रोजेकट के आवंटन के कांड को उखाड़ने में मोदी सरकार में मौजूदा सचिव पर्सनल अजय मितल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बताते है कि उनकी तब धूमल से अनबन भी हो गई थी। जो अब भी एक हद तक जारी हैं।
अंबानी की कंपनी रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने सुप्रीम कोर्ट से जुलाई 2016 में अपनी याचिका वापस ले ली थी व वीरभद्र सकार को अवगत करा दिया था कि अब वो इस प्रोजेक्ट को लेने की इच्छुक नहीं हैं। चूंकि हिमाचल हाइ्रकोर्ट ने ब्रेकल को किए इस प्रोजेक्ट के आवंटन को रदद कर दिया था तो रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर जो बोली में नंबर दो पर था ने सुप्रीम कोर्ट में इस प्रोजेक्ट में हासिल करने के लिए करीब सात साल तक जंग लड़ी और फैसला आने से पहले ही याचिका इसलिए वापस ले ली क्योंकि वीरभद्र सरकार ने इस प्रोजेक्ट को रिलायंस को देने का फैसला ले लिया था।
वीरभद्र सरकार ने साथ ही ये भी फैसला लिया था लेकिन रिलायंस से जो अपफ्रंट मनी सरकार को मिलेगा उससे अदाणी की कंपनी के 280 करोड़ रुपए लौटा दिए जाएंगे। लेकिन ऐसा पता नहीं क्या हुआ कि रिलायंस ने इस प्रोजेक्ट को लेने से ही इंकार कर दिया।
जुलाई 2016 में रिलायंस की ओर से याचिका वापस लेने के बाद विजीलेंस ने सरकार को लिखा कि इस मामले में एफआईआर दर्ज करने की मंजूरी दी जाए। चूंकि जुलाई से लेकर पिछले हीने तक जब कोइ्र मंजूरी नहीं मिली तो विजीलेंस ने एक बार फिर सरकार को इस बावत याद दिलाया। सरकार ने मामला लॉ विभाग को भेज दिया। अब बताते है कि लॉ विभाग ने एनर्जी निदेशालय को लिखा है कि वो ये बताएं कि उसे किन बिंदुओं पर लॉ विभाग की राय चाहिए। ये दिलचस्प हैं। चूंकि लॉ विभाग के पास तो ये मामला 2011 में भी गया था ओर जो केस के तथ्य हैैं ,उन्हीं पर राय की जरूरत हैं। बताते है कि अब एनर्जी विभाग अपना जवाब लॉ विभाग तो देने जा रहा हैं। निश्चित है वो जवाब भी दिलचस्प होगा। चूंकि प्रदेश में चंद महीनों बाद सरकार बदलने वाली है ऐसे में इस हाईप्रोफाइल मामले में कोई दिलचस्पी लेने को तैयार नहीं हैं।
याद रहे ब्रेकल की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लाडले उद्योग पति अदाणी की कंपनी ने 2007-08 में 280 करोड़ रुपया बतौर अपफ्रट मनी जमा कराया था। अब अदाणी की कंपनी की ओर से वीरभद्र सिंह सरकार को एक के बाद एक कर इस बड़ी रकम लौटाने के लिए चिटिठयां लिखी जा रही हैं।
बहरहाल जिला किन्नौर के इस बड़े प्रोजेक्ट को लेने से देश के बड़े उद्योगपति अंबानी की कंपनी ने कई सालों तक अदालतों में जंग लड़ने के बाद हाथ पीछे खींच लिए थे। वीरभद्र सरकार इस प्रोजेक्ट को अभी तक आवंटित नहीं कर पाई हैं और न ही अदाणी को 280 करोउ़ रुपया वापस हो पाया हैं। कायदे से ये पैसा सरकार के खजाने में जमा हो जाना चाहिए थे। लेकिन वीरभद्र कैबिनेट ने सरकार के खजाने में इस रकम को जमा कराने के बजाय अदाणी को लौटाने का फैसला कर चुकी हैं। जिस दिन सरकार ने ऐसा कर दिया,उसके खिलाफ देश के बड़े उद्योगपति को अनुचित लाभ पहुंचाने के जुर्म में एफआईआर दर्ज हो सकती हैं।चूंकि अदाणी ने ये पैसा ब्रेकल को दिया था। कायदे से उसे ये पैसा ब्रेकल से लेना चाहिए, न कि सरकार से ।
उधर, 280 करोड़ रुपए को जबत करने व इस प्रोजेक्ट को लगाने में देरी करने के कारण प्रदेश सरकार को हुए 2713 करोड़ रुपए के नुकसान की भरपाई ब्रेकल से न करने को लेकर हिमाचल एजी कार्यालय ने भी सवाल-जवाब किए थे। लेकिन बताते है कि कई स्तरों पर जुगाड़ हुए और कैग की रिपोर्ट से पैरा ड्रॉप कराने में संबंधित हितधारक कामयाब रहे।
ऐसे में इस मामले में वीरभद्र सरकार एफआईआर दर्ज करवा पाती है ये देखना दिलचस्प हैं।याद रहें इस मामले में वीरभद्र व धूमल दोनों ने गजब के कारनामें दिखाएं हैं।
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