शिमला। हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल बेशक इन दिनों गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर रहे हो लेकिन नौणी व पालमपुर विवि के कुलपतियों की नियुक्तियों के मामले में उनकी ओर से चलाई गई प्रक्रिया पर प्रदेश हाईकोर्ट ने आज 14 अगस्त को स्टे दे दिया है।
ये स्टे पालमपुर विवि के प्रोफेसर अजयदीप बिंद्रा की ओर से दायर याचिका की सुनवाई के बाद प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस संदीप शर्मा की एकल पीठ ने दिया है।
प्रोफेसर बिंद्रा ने राज्यपाल या कुलाधिपति की ओर से पालमपुर विवि के कुलपति की नियुक्ति की प्रक्रिया को शुरू करते हुए 21 जुलाई को 2025 को नौणी व पालमपुर विवि के कुलपतियों की नियुक्ति के लिए भर्ती नोटिस जारी कर दिया था।
ये नोटिस राज्यपाल के सचिव की ओर से जारी किया गया था। प्रोफेसर बिंद्रा ने इस नोटिस को चुनौती दे दी व कहा कि इस नोटिस में कुलपति के पद के लिए जो आवेदन मांगे गए है उनमें खामी है। ये नोटिस इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चर रिसर्च के दिशा निर्देशों के अनुरूप नहीं हैं।
प्रोफेसर बिंद्रा की ओर से पैरवी करते हुए वरिष्ठ वकील संजीव भूषण ने दलीलें दी कि इन विवि में प्रोफेसर प्रिंसिपल सांइटिस्ट और प्रिंसिपल हार्टीकल्चरलिस्ट के पदनामों से काम करते है। ये पदनाम प्रोफेसर के ही समकक्ष होते है। लेकिन राज्यपाल के सचिव की ओर से जो कुलपति के पद के लिए जो नोटिस निकाला गया है उनमें इन पदनामों को बाहर कर दिया गया है।ऐसे में वही अध्यापक कुलपति के पद के लिए आवेदन कर सकेंगे जिनका पदनाम प्रोफेसर है।
भूषण ने पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी लुधियाना और पंडित गोबिंद बल्लभ पंत यूनिवर्सिटी आफ एग्रीकल्चर एंड टैक्नालॉजी पंतनगर,उधम सिंह नगर , उतराखंड का हवाला भी दिया व कहा कि इन विवि में प्रोफेसर या प्रिंसिपल साइंटिस्ट या उनके समकक्ष कोई भी जिनके पास बतौर प्रोफेसर दस साल का अनुभव है वो कुलपति के पद के लिए आवेदन कर सकते है।
बड़ाी बात है कि दोनों ही जगहों पर ये नोटिस सरकार के कृषि विभाग के सचिवों की ओर से जारी किया गया है।
उधर,सुक्खू सरकार के महाधिवक्ता अनुप रतन ने कहा कि सरकार ने नोटिस में खामियां देखने के बाद इस मामले को राज्यपाल से उठाया था लेकिन राज्यपाल का कोई जवाब नहीं आया।
(यहां ये उल्लेखनीय सरकार ने कि राजभवन की ओर से जारी इस विज्ञापन नोटिस को दो दिन पहले ही विदड्रा कर दिया था लेकिन राज्यपाल ने नोटिस को सही बताते हुए बीते रोज ही आवेदन के लिए तिथि आगे बढ़ा दी थी। लेकिन आज 14 अगस्त को बड़ा कांड हो गया और राज्यपाल के नोटिस पर स्टे मिल गया।)
अनूप रतन ने कहा कि पंजाब व उतराखंड में कुलपति की नियुक्ति के लिए नोटिस सरकार के संबंधित विभागों के सचिवों की ओर से जारी किए गए थे। लेकिन यहां पर राज्यपाल के सचिव ये नोटिस जारी कर रहे है। राज्यपाल के सचिव के पास तो ऐसा करने के लिए शक्तियां ही नहीं हैं।
इन दलीलों को सुनने के बाद जस्टिस संदीप शर्मा ने राज्यपाल की ओर से चलाई जा रही नियुक्ति प्रक्रिया पर स्टे दे दिया।
अब इस मामले के बाद राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल और राज्यपाल का सचिवालय और उनके तमाम सलाहकार कटघरे में खड़े हो गए हैं। राज्यपाल का पद संवैधानिक पद है और अगर उनके कृत्यों पर ही सवाल लग जाए तो ऐसे में कायदे से उन्हें राज्यपाल के पद से हटा देना चाहिए या उन्हें खुद पद से हट जाना चाहिए।
राजभवन के भरोसे पर अब संदेह हो गया है। ये पहली बार नहीं है। इससे पहले भी राज्यपाल शुक्ल ने बतौर कुलाधिपति पालमपुर के कुलपति के चयन के लिए प्रक्रिया शुरू की थी। उन्होंने चयन समिति का गठन किया था। जिस समिति में अधिनियम के मुताबिक राज्यपाल का मनोनीत सदस्य और यूजीसी के अध्यक्ष और आइसीएआर के महानिदेशक बतौर सदस्य व इनमें से एक अध्यक्ष होना चाहिए था। लेकिन जो समिति बनी उसमें आइसीएआर की ओर से महानिदेशक खुद न होकर उनने किसी उप महानिदेशक को मनोनीत कर दिया था।
प्रोफेसर बिंद्रा ने इसे भी चुनौती दी थी और हाईकोर्ट ने इस पक्रिया को रदद कर दिया था।
इसी प्रक्रिया के तहत नौणी विवि के कुलपति प्रोफेसर राजेश्वर चंदेल की भी नियुक्ति हुई थी उनका कार्याकाल पूरा हो चुका है लेकिन राज्यपाल ने विरोध के बावजूद राजेश्वर चंदेल को कार्यभार देखते रहने की इजाजत दे रखी है। इसे भी नौणी विवि के एक प्रोफेसर ने हाईकोर्ट में चुनौती दे रखी है व मामला लंबित है।
बहरहाल, इस मामले में चार सप्ताह में राज्यपाल व सरकार से जवाब मांगा है व 21 सितंबर2025 को अगली सुनवाई निर्धारित की है।
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