शिमला। प्रदेश में 2012 में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सुक्खू ने जितने भी चुनाव लड़े,उसमें कांग्रेस की हार हुई हैं। ताजा हार शिमला नगर निगम में हुई । शिमला मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह व कांग्रेस पार्टी का गढ़ हैं।हालांकि यहां पिछले दस सालों से भाजपा विधायक सुरेश भारद्वाज कांग्रेस का परचम नहीं लहराने दे रहें हैं। बड़ी बात ये है कि हारने के बाद न वीरभद्र सिंह ने और न ही सुक्खू ने हार की जिम्मेदारी ली। औपचारिकता के लिए ही सही कभी इस्तीफे की पेशकश भी नहीं की । दोनों अपनी कुर्सियां बचाने की जुगत में ही लगे रहे हैं। लेकिन इस जुगत में वो बाकियों को हराते जा रहे हें,ऐसे में आगामी विधानसभा चुनावों में बाकी लोग क्या करेंगे इसका अंदाजा लगाया जा सकता हैं।
इतनी बार हारने के बावजूद कांग्रेस आलाकमान जिनमें सोनिया गांधी से लेकर राहुल गांधी तक शामिल है, की ओर से कोई कार्रवाई न करना कई सवाल खड़े कर देता हैं। सबसे बड़ा सवाल कांग्रेस आलाकमान की ओर से प्रदेश कांग्रेस का काम-काज देखने के लिए तैनात किए गए प्रभारी व सह-प्रभारी को लेकर हैं।मौजूदा समय में कांग्रेस की प्रभारी सोनिया दरबार में दबदबा रखने वाली अंबिका सोनी है जबकि सह प्रभारी राजा राम पाल हैं।राजा राम पाल कम असर के नेता हैं।
लेकिन हार पार्टी के कामकाज को लेकर आलाकमान को दी जाने वाली उनकी रिपोर्ट सबसे महत्वपूर्ण होती हैं।
2014 में सुजानपुर के उपचुनाव में मिली हार से लेकर लोकसभा चुनाव में प्रदेश की सभी सीटें गवां देना पार्टी के लिए कोई मामूली नुकसान नहीं था। लेकिन आलाकमान ने कोई कदम नहीं उठाया। न भ्रष्टाचार में फंसे मुख्यमंत्री को हटाया और न ही कम असर वाले पार्टी अध्यक्ष सुखविंदर सुक्खू को लेकर कोई कदम उठाया।सुक्खू 2012 में अपना चुनाव हार गए थे। बावजूद वो
सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या कांग्रेस प्रभारियों की रिपोर्ट दागी रही थी। अंबिका सोनी को वैसे भी मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का करीबी माना जाता हैं। इतनी हारे इसलिए गले नहीं उतरती क्योंकि प्रदेश में कांग्रेस की अपनी सरकार हैं। लोकसभा में तो मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की अपनी बीवी प्रतिभा सिंह मंडी लोकसभा हलके से हार गई थी।
अभी कुछ महीना पहले हमीरपुर के भोरंज में उप-चुनाव हुआ तो पार्टी वो चुनाव भी हार गई।
सबसे बड़ी हार शिमला नगर निगम चुनाव में मिली हैं। पार्टी ने जिस तरह से ये चुनाव लड़ा उस तरह के चुनाव तो कोई कॉलेजों में भी नहीं लड़ते। वहां भी बाकायदा तैयारी की जाती हैं। लेकिन निगम चुनावों में न तो सरकार कहीं थी और न ही पार्टी। पार्टी के असरदार मंत्री तक चुनाव प्रचार से गायब करा दिए गए। पार्टी के असरदार विधायक चुनाव प्रचार से बाहर थे। मुख्यमंत्री खुद तीन दिन पहले चुनाव प्रचार में उतरे तो उनके साथ वो चेहरे थे जिनकी छवि जनता को अखरती हैं।
पार्टी अध्यक्ष सुखविंदर सुकखू चुनावों के लिए कोई रणनीति ही नहीं बना पाए। महिला कांग्रेस कहां थी किसी को कुद नहींपता। युवा कांग्रेस पर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने अपने लाडले को काबिज कराया हुआ है, युवा कांग्रेस का भी इन चुनावों में कोई नामोनिशान नहीं था। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने युवा कांग्रेस अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह को नेता बनाकर किसी तरह स्थापित करने में पूरा जोर लगाकर रखा हैं। कांग्रेस में उनका पूरा खेमा,नौकरशाही में उनके सारे लाडले हर समय इसी जुगत में रहते हैं कि किस तरह से वीरभद्र सिंह के लाडले को नेता बना पाएं।इसी तरह कांग्रेस के सेवादल समेत कई सारे विंग हैं,उन्होंने चुनावों में क्या किया किसी को मालूम नहीं हैं। अगर कुछ किया तो हारे कैसे,इसका जवाब कांग्रेस पार्टी के पास नहीं हैं।
जबकि भाजपा ने केंद्रीय मंत्री से जगत प्रकाश नडडा से लेकर केंद्रीय प्रभारी मंगल पांडे तक प्रचार में उतार दिया। पार्टी अध्यक्ष सतपाल सती शिमला में ही रहे। बेशक पार्टी का टॉप चेहरा धूमल प्रचार के आखिरी दिन शिमला आएं लेकिन वो तब से लेकर जब तक मेयर व डिप्टी मेयर भाजपा के नहीं बन गए तब तक शिमला में ही रहे।
ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि क्या कांग्रेस के हिमाचल प्रभारी व सहप्रभारी आलाकमान तक सही रिपोर्ट दे पाएंगे या उन्हें मैनेज कर लिया जाएगा। बहरहाल, अब आखिरी चुनाव विधानसभा का बचा है, जोइस साल के आखिर में होना हैं।लगता है कि वीरभद्र सिंह व सुखविंदर सिंह सुक्खू की जोड़ी इस चुनाव को भी हरा कर ही अपने कुर्सियों से हटेंगे ।संभवत: आलकमान उसी के बाद कुछ कदम उठा पाएंगी।
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