शिमला। नाचन के विधायक विनोद कुमार की ओर से एक साथ दस कर्मचारियों के तबादले के लिए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को भेजी चिटठी को मुख्यमंत्री की ओर से मंजूर कर देने को चुनौती देने वाले एक शिक्षक के तबादले को प्रदेश उच्च न्यायालय ने रदद कर दिया है। साथ ही टिप्पणी की है कि यह तबादला किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता। अदालत ने कहा कि एक विधायक ने तबादलों के लिए सूची भेजी व मुख्यमत्री ने इस पर विभागीय टिप्पणी मंगाए बिना कि यह तबादला न्यायोचित है भी या नहीं खुद ही मंजूर कर दिया और अधिकारियों के पास ऐसे में तबादला करने के अलावा कोई चारा नहीं होता। जबकि तबादले करने के तार्किंग कारण होने चाहिए और वह जनहित में होने चाहिए। लेकिन प्रदेश में नेताओं के आग्रह पर तबादलों का दौरा अदालतों के बार-बार निर्देश्शों के बाद भी समाप्त नहीं हो रहा है। इस तबादले को उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति तिरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने रदद कर दिया है।
नाचन से भाजपा के विधायक विनोद कुमार ने 25 मार्च को जयराम को एक डीओ नोट लिख कर उसमें दस कर्मचारियों के तबादले करने की सूची भेजी थी। इस डीओ में किस कर्मचारी का तबादला कहां से कहां को करना था यह भी लिखा हुआ था। इस डीओ नोट के आधाार पर 23 अप्रैल को इन कर्मचारियों के तबादले कर दिए गए।
इस सूची में मंडी की राजकीय प्राथमिक पाठशाला घिरी के मुख्याध्यापक बाबू राम का नाम भी था । उसका तबादला प्राथमिक स्कूल सागल को कर दिया गया और सागल स्कूल से यादविंदर कुमार को उनकी जगह घिरी में बदल दिया। अभी बाबूराम को इस स्कूल में तीन साल भी पूरे नहीं हुए थे। जबकि सरकार की तबादला नीति के मुताबिक एक कर्मचारी को एक जगह पर कम से कम तीन साल तक तैनात रहना चाहिए।
इसे तबादला आदेश को बाबू राम ने उच्च् न्यायालय में चुनौती दे दी ।खड़पीठ ने अपने आदेश में कहा के यह आदेश न्यायिक कसौटी पर खरा नहीं उतरा है न तो यह तबादला प्रशासनिक अनिर्वायता को देखते हुए किया गया है और न ही इसमें कोई जनहित है। दस्तावेज यह भी साफ करते है कि यह आदेश कर्मचारी की पूरी क्षमता को उपयोगिता करने के लिए नहीं किया गया । यह आदेश महज एक विधायक के कहने पर कर दिए गए है। ऐसे में इस तबादेश को रदद किया जाता है।
खंडपीठ ने कहा कि जब भी कोई तबादला किया जना हो तो उसके लिए विभागीय राय बेहद जरूरी है और यह राय तबादला आदेश में उभरनी भी चाहिए।
खंडपीठ ने कहा कि चुने गए प्रतिनिधियों की ओर से यह दावा करने का कोई अधिकार नहीं है कि अमूक कर्मचारी को किस पद और किस स्टेशन पर तैनात किया जाना है। यह तय प्रशासकीय प्रमुख नं करना है किसी विधायक ने नहीं । यह अधिकारी को तय करना है कि अमूक कर्मचारी का तबादला करना भी है या नहीं केवल विधायक और मंत्री के कहने पर तबादले नहीं किए जा सकते। अधिकारी विधायकों व मंत्रियों की ओर से कराएज जाने वाले तबादलों के प्रस्तावों को लौटासकते है और कह सकते है कि यह क्यों मंजूर नहीं किए जा सकते। अदालत ने कहा कि विधायक कार्यकारी के काम में दखल देना शुरू नहीं कर सकते।
खडपीठ ने कहा कि इस मामले में प्रशासकीय मुखिया के पास स्वतंत्र फैसला लेने का तो मौका ही नहीं छोड़ा गया है। खंडपीठ ने कहा कि बेशक अदालत ने तबादलों को लेकर कानून निर्धारित कर दिया है लेकिन बावजूद इसके राजनीतिक कार्यकारियों या प्रशासनिक अधिकारियों की ओर से इस कानून का सरेआम बैखौफ हो कर उल्लंघन किया जा रहा है।
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