शिमला। प्रभाव व जुगाड़ के दम पर पूरी नौकरी के दौरान अपनी तैनाती शिमला व उसके आसपास के इलाकों में ही करवानी दो महिला अध्यापिकाओं को प्रदेश हाईकोर्ट ने दोनों को दो सप्ताह के भीतर जिला से बाहर तैनात करने के आदेश दिए है। हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग को आगाह किया है कि इन दोनों की तैनाती अर्थपूर्ण होनी चाहिए न कि इन्हें समायोजित करने की कोशिश की जानी चाहिए। अदालत ने शिक्षा विभाग को तबादलों के इस मिलीभगत व सांठगाठ के तंत्र को तोड़ने के भी आदेश दिए है।
ये आदेश प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तिरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रेवाल दुआ ने जारी किए। याचिका कर्ता अध्यापिका ने अपनीयाचिका में कहा था कि उसकी तैनाती 16 अगस्त 2017 को राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला संजौली में हुई थी व 23 जनवरी 2020 को उसका तबादला ठियोग को एक डीओ नोट के आधर पर कर दिया व इस तबादले आदेश को रदद कार दिया जाए।
इस अध्यापिका ने अपनी याचिका में कहा कि जिस अध्यापिका को उनकी जगह बदला गया है उसने जुलाई 2019 में ही अपनी तैनाती राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला में कराई थी व छह महीने के अंतराल में वह डीओ नोट के आधार पर उसने एक जनवरी 2020 को अपना तबादला संजौली स्कूल को करवा लिया।
इस बावत शिक्षा विभाग ने अपने तबादला आदेशों को सही करार देते हुए कहा के ये आदेश सक्षम अधिकारी से मंजूरी के बाद ही जारी किए गए है।
जिसने ठियोग से संजौली के लिए छह महीनों में ही अपना तबादला करा लिया उसने अदालत में दलील दी कि उसने स्वास्थ्य के आधार पर अपना तबादला कराया है।
अदालत ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के व दस्तावेजों का आकलन करने पर पाया कि शिक्षा विभाग ने इन आदेशों को प्रशासनिक जरूरत के मुताबिक नहीं बल्कि संजौली में जिस अध्यापिका का तबादलाकिया उसे समायोजित करने के लिए तबादले किए है।
इस अध्यापिका ने शिक्षा मंत्री को जनवरी 2020 में चिटठी लिखी कि उसे 2018 में मस्तिष्क का अंधरंग पड़ा था व इसलिए स्वास्थ्य के आधार उसका तबादला ठियोग से संजौली कर दिया जाए।
अदालत ने कहा कि ठियोग के लिए डीओ नोट के आधार पर ही जुलाई 19 में इस अध्यापिका ने आपसी सहमति के साथ तबादला कराया था। जाहिर है कि से तबादला नीति के तहत कराया गया था ताकि इसे इस नीति का लाभ मिल सके।
खंडपीठ ने कहा कि तबादलों के मामलों में एेसा देखा गया है के सरकारी कर्मचारी िजला व तहसील मुख्यालयों में अपनी तैनाती करवाना चाहते है क्योंकि वहां पर शिक्षा व स्वास्थ्य को लेकर आधारभूत ढांचा अच्छा है। ऐसे में प्राय ये पाया गया कि प्रभावशाली कर्मचारी अपनी नौकरी की पूरी अवधि शहरी के इसके आसपास के इलाकों में ही गुजार देते है व बाकी कर्मचारियों को यहां आने का मौका ही नहीं मिलता।
अदालत ने कहा यहां भी दोनों अध्यापिकाओं ने यही तौर तरीका अपनाया व आपसी सहमति से एक दूसरे की जगह अपने तबादले कराती रही।अदालत ने अपने आदेश में दोनों अध्यापिकाओं के नौकरी के पूरे कार्यकाल का ब्योरा देते हुए कहा कि ये राज्य काडर के पद है लेकिन दोनों अध्यापिकाएं अपने पूरी नौकरी की अवधि के दौरान शिमला के 35 किलोमीटर के दायरे में तैनात रही व जहां भी रही वह जगह राष्ट्रीय उच्च मार्ग से जुड़ी रही।
अदालत ने कहा कि इन दोनों की ये कारगुजारी सरकार या शिक्षा विभाग की मिलीभगत के बिना संभव नहीं है।खंडपीठ ने कहा कि शिक्षा विभाग में इस तरह के मामले में भारी बढ़ोतरी हो रही है।है।ऐसे में सरकार को अदालत की ओर से पहले दिए आदेशों के मुताबिक आनलाइन तबादलों को लेकर तंत्र विकसित करना चाहिए। अदालत ने इस तबादले को गलत मंशा से किया करार दिया।
या।खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में दोनों अध्यापिकाएं अपने जिलों में तैनाती लिए पात्र नहीं है। इसलिए इन दोनों को दो सप्ताह के भीतर जिला से बाहर तैनात किया जाए।
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