शिमला। कांगड़ा सेंट्रल सहकारी बैंक के अध्यक्ष व कांग्रेस पार्टी के नेता जगदीश सिपहिया को 19 जुलाई को पंजीयक सहकारी सभा की ओर से उन्हें जारी कारण बताओ नोटिस व उनके समेत पूरे बोर्ड को निलंबित करने करने के फैसले को सही ठहराया हैं। 19 जुलाई को पंजीयक ने विभिन्न घोटाले व अनियमितताओं को अंजाम देने के लिए उन्हें अध्यक्षा पद से क्यों न हटा दिया इस बावत शो काज नोटिस दिया था व इसी दिन बैंक के पूरे बोर्ड को निलंबित कर जिला उपायुक्त कांगड़ा को बैंक का प्रशासक नियुक्त कर दिया था।
सिपहिया ने पंजीयक की इस कार्रवाई के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजला खटखटाया था व याचिका का निपटारा करते हुए न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल ने यह फैसला सुनाया हैं।
सिपहिया ने अपनी दलीलें दी थी कि सता बदलने के बाद पंजीयक सहकारी सभा ने उन्हें छह अप्रैल 2018 को भी इसी तरह का नोटिस जारी किया था व उनकी ओर से उस नोटिस को हाइकोर्ट में चुनौती देने के बाद पंजीयक ने 19 जुलाई को तकनीकी आधार का हवाला देकर नोटिस वापस ले लिया था व उसी दिन ये नोटिस जारी कर दिया था।
सिपहिया ने दलीलें दी थी कि यह सब राजनीति से प्रेरित होकर किया गया हैं व पंजीयक ने पद का दुरुपयोग कर लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए पूरे बोर्ड को निलंबित कर दिया। इन दलीलों के साथ सिपहिया ने अदालत में कहा था कि जयराम ठाकुर सरकार ने 26 सितंबर को नया बोर्ड चुनने की अधिसूचना जारी कर दी। इन्हें भी रदद कर देना चाहिए।
लेकिन पंजीयक ने कहा कि उनके शो काज नोटिस जारी करने के पीछे नाबार्ड की निरीक्षण रिपोर्ट, सीए की आडिट रिपोर्ट और संवैधानिक जांच रिपोर्ट में उजागर हुए तथ्य हैं। इन तथ्यों से बैंक में भारी अनियिमितताएं सामने आई हैं।
अदालत ने कहा कि रिकार्ड पर आए तथ्यों के बाद जारी शो काज नोटिस को गैर कानूनी नहीं ठहराया जा सकता ।
अदालत ने कहा कि पहला शो काज नोटिस सता बदलने के बाद तुरंत नहीं दिया गया यह अप्रैल महीने में दिया गया। जबकि सरकार दिसंबर 2017 में बदल गई थी। इसके अलावा रिकार्ड पर कहीं भी कुछ ऐसा नहीं आया कि यह नोटिस प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से राजनीतिक दबाव में लिया गया हैं। इसके पंजीयक व सिपहिया की आपस में कोई दुश्मनी हैं ऐसा भी सामने नहीं आया हैं।
अदालत ने नाबार्ड की निरीक्षण रिपोर्ट का हवाला देकर कहा है कि 90 लोगों को 31 दिसंबर 2017 तक जोखिम सीमा से बाहर जाकर कर्ज दिया गया। इसके अलावा 119 लोगों को नियमों का उल्ल्ांघन कर कर्ज दिया गया।
इसके अलावा बैंक के सीए की 2014 से लेकर 2017 तक की आडिट रिपोर्टों में विभिन्न अनियमितताएंं उजागर की गई हैं। नतीजतन एनपीए 11.43 फीसद से 16.25 फीसद तक बढ़ गया हैं। इसके बाद आठ फरवरी 2018 को बैंक के एमडी ने फैक्ट फाइंडिंग जांच शुरू की व नोटिस इसके बाद छह अप्रैल को दिया गया ।
रिपोर्ट में फ्राड में शामिल रकम की वसूली के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए और न ही कोई कार्रवाई की गई। इसके अलावा आरबीआइ के दिशानिर्देशों के खिलाफ जाकर रियल इस्टेट को भी कर्ज दिए दिए।
ऐसे में इस कार्रवाई को राजनीतिक कारणों से प्रेरित नहीं कहा जा सकता । कई कर्ज तो नाबार्ड की पूर्व मंजूरी के दे दिए गए व ये मंजूरी कभी नहीं आई। सता अदलने से वपहले ही 2017 में बोर्ड के कुछ सदस्यों ने अपना विरोध दर्ज करा दिया था।
अदालत ने कहा कि ऐसे में सिपहिया की याचिका को खारिज कर दिया जाता हैं।
हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद कांगड़ा सेंट्रल सहकारी बैंक के अध्यक्ष पद पर भाजपा सरकार की ओर से किसी अपने चहेते को बिठाने का रास्ता खुल गया हैं।
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