शिमला। कांग्रेस के एक ताकतवर खेमे के विरोध के बावजूद कांग्रेस आलाकमान ने पार्टी के पूर्व अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू को बेशक मुख्यमंत्री बना दिया है लेकिन पार्टी की गुटबाजी शायद ही उन्हें पांच साल चैन से रहने दे। जिस तरह से पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को पहली बार मुख्यमंत्री बनने पर गठबंधन सरकार के सहयोगी सुखराम और पार्टी में वरिष्ठ नेता शांता कुमार के खेमे ने चैन से नहीं रहने दिया था उसी तरह पार्टी की भीतरी जंग कहीं सुक्खू का हाल भी धूमल की तरह ही न कर दे,इसकी कोई गारंटी नहीं हैं। सुक्खू के लिए यह कांटों भरे ताज से कम नहीं हैं।
नाराजगी दूर करना चुनौती
हालीलाज कांग्रेस के वफादारों की नाराजगी दूर करना सुक्खू के लिए सबसे बडी चुनौती होगी। हालीलाज कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की विरासत के दम पर विधानसभा चुनाव जीतने का दावा कर किया था। लेकिन सुक्खू ने कहा कि वह भी तो वीरभद्र सिंह की विरासत का ही हिस्सा हैं। हालीलाज कांग्रेस सरकार में अपनी ज्यादा से ज्यादा हिस्सेदारी चाहती है और सुक्खू चाहेंगे की सरकार में उनके खेमे के लोग रहे ताकि वह सुरक्षित रह सके और सरकार व संगठन मे होने वाली किसी भी तोडफोड को तारपीडो कर सके। वीरभद्र सिंह ऐसा ही करते थे। वह हर महत्वूपर्ण पद पर अपने वफादारों को की ताजपोशी करते थे । हालांकि संगठन में लंबे समय तक रहकर सुक्खू ने बहुत कुछ सीख लिया है।
हारे हुए नेताओं का साथ लेना रहेगा फायदे में
सुक्खू को विधानसभा चुनावों में हार गए वरिष्ठ नेताओं को साथ रखना फायदे में रहेगा । कौल सिंह ठाकुर, राम लाल ठाकुर,आशा कुमारी व प्रकाश चौधरी जैसे नेताओं के अनुभवों व संपर्कों का वह पूरा फायदा उठा सकते है। इससे एक तो वह इन्हें अपने साथ करने में कामयाब हो जाएंगे व दूसरी ओर विद्रोही गुट में इन्हें जाने से भी रोक पांएगे। इससे विरोधियों की ताकत कम हो जाएंगी।अब देखना है कि सुक्खू अपनी बिसात कैसे बिछाते हैं।
आलाकमान से मदद जरूरी
कांग्रेस में गुटबाजी की मार से बचने के लिए उन्हें आलाकमान की मदद की जरूरत हर समय रहेगी। भाजपा हो या कांग्रेस पार्टी व संगठन में होनी वाली गुटबाजी के लिए हमेशा ही आलाकमान की शह रही हैं। पिछले आठ सालों में प्रदेश भाजपा में इसलिए कोई विद्रोह खुल कर नहीं हो पाया क्योंकि भाजपा आलाकमान ने किसी को शह ही नहीं दी। लेकिन कांग्रेस में सुक्खू की तरह ह हालीलाज गुट के कई समर्थक है। जो हिमाचल ही नहीं बाकी राज्यों में भी गुटबाजी को हवा देते रहते हैं। अब यह आलाकमान को तय करना होगा कि वह उन्हें कांग्रेस में गुटबाजी रख कर अपनी ही सरकार को कमजोर बनाए रखना है या पार्टी व सरकार को मजबूत रखना हैं।
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