शिमला। विश्व पर्यावरण दिवस महीने में हिमधारा पर्यावरण शोध समूह की ओर से प्रदेश में पन बिजली परियोजनाओं से होने वाले खतरों को लेकर आज जारी द हिडन कॉस्ट आफ हाइड्रो पावर नामक रिपोर्ट में प्रदेश की स्थिति को भयावह करार दिया है। रिपोर्ट को हिमधारा समूह की संयोजक मानसी आश्र,सुमित महार और वैष्णवी ने जारी किया।
प्रदेश के आपदा प्रबंधन प्रकोष्ठ के अघ्ययन का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि 67 हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट भूस्खलन के जोखिम के खतरे में है जबकि दस मेगा हाइड्रो मेगा पावर प्रोजेक्ट मध्यम और उच्च जोखिम भूस्खलन क्षेत्र में है। रिपोर्ट में कहा गया है कि संचालति व निर्माणाधीन हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की भूस्खलन के खतरे के हिसाब से मैपिंग की जाए तो अधिकांश परियोजनाएं रेड जोन में आएंगी। इस अलावा सरकारी संस्थानों की ओर से ऐसा कोई अध्ययन नहीं है जिससे पता चले की हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट से कमजोर भू गर्भ को किस तरह से नुकसान पहुंचा रहा है ।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अकेली सतलुज नदी पर ही 13332 मेगावाट बिजली पैँदा करने की क्षमता आंकी गई है।
हिमाचल में 27 परियोजनाएं चल रही है जो 25 मेगावाट से ज्यादा की है और 9755 मेगावाट बिजली तैयार कर रही है। 1855 मेगावाट के 8 प्रोजेक्ट निर्माणाधीन है और 5218 मेगावाट के 18 प्रोजेक्ट योजना के विभिन्न चरणों में है।
कमजोर धरती वाले जिला दस प्रोजेक्ट चल रहे है व तीस से ज्यादा या तो निर्र्माणाधीन है या योजना के चरण पर है । इसके अलावा यहां पर उतरी ग्रिड से जोड़ने के लिए 11 ट्रांसमिशन लाइनें बिछ रही है।
किन्नौर के उरनी ढांक में आए भूस्खलन का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है यह आज छह सौ मीटर व तीन सौ मीटर चौड़ा हो गया है। रिपोर्ट में इन परियोजनाओं के निर्माण के दौरान व बाद में घरों में आइ दरारों , मलबे के नीचे दबे घरों का भी जिक्र किया है।
भारतीय वानिकी अनुसंधान परिषद देहरादून की ओर से केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के निर्देशों पर सतलुज बेसिन के किए अध्ययन का हवाला देते हुए कहा है कि 58 फीसद परियोजना से प्रभावित लोगों ने कहा कि कि हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की वजह पानी की उपलब्धता में कमी आई है। नाथपा झाकड़ी,बास्पा-दो और कड़छम वांगतु हाइड्रो पावर प्रोजेक्टों में आयोजित किए गए फोकस ग्रुप डिसक्शन के दौरान 68 फीसद ने प्राकृतिक चश्मों के सूखने पर चिंता जताई। तीन एनजीओ की ओर से लोगों के किए गए साक्षात्कारों में सामने आया कि सुरंगों के बनाने व ब्लास्टिंग की वजह से भूजल व प्राकृतकि पानी के स्।ोतो को बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ रहा है। 22 ग्राम पंचायतों के 80 फीसद प्रधानों व उप प्रधानों ने प्राकृतिक जलस्।ोतों के सूखने पर चिंता जताई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सतलुज ,ब्यास व रावी बेसिन पर बने तीन हाईड्रो प्रोजेक्ट के साथ बसे गांवों में पानी के स्तर में कमी आई है। एक हजर मेगावाट के कड़छम वांगतु प्रोजेक्ट के प्रभावित क्षेत्रों में 167 पानी के चश्में है। इनमें से 146 पारंपरिक चश्में है। आइपीएच विभाग ने इन चश्मों से मिलने वाले पानी को लेकर एकत्रित किए आंकड़ों के मुताबिक 50 फीसद चश्मों में 90 फीसद तक की पानी की कमी पाई गई है। राष्टÑीय राजमार्ग 205 पर चोलिंग में पानी का चश्मा था जहां से स्थानीय लोग ही नहीं आने जाने वाले लोग भी पानी पीते थे। यहां सुरंग बनने के बाद यह चश्मा पूरी तरह से सूख गया है। इसी तरह चगांव में भी पानी का स्।ोत पूरी तरह से सूख गया ।
रिपोर्ट में कई और गांवों का हवाला दिया गया है। चंबा के 180 मेगावाट के बजौली होली प्रोजेक्ट का हवाला देकर रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रोजेक्ट के लिए हस्तातंरित की गई जमीन में से 40 फीसद जमीन पर मलबा ठिकाने लगा दिया। दिलचस्प यह है कि मलबे के ढेर पर मजदूरो की कालोनी बसा दी व जून 2018 में जब भारी बारिश हुई तो ये मलबा नदी की ओर बहने लगा। ऐसे मेें मजदूरों को यहां से हटाना पड़ा । रिपोर्ट में कैग की ओर से उठाए गए बिंदुओं का भी जिक्र किया गया है । रिपोर्ट में हाइड्रो पावर परियोजनाओं के लिए सबसिडी और बाकी राहतों पर विराम लगाने की सिफारिश की गई है।
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