शिमला। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को बिजली प्रोजेक्ट्स के लिए मंजूरियां देने केमामले में किए बदलाव पर हैरानी जताई है। धूमल ने वीरभद्र सिंह को चिटठी भी लिखी है। जाहिर है इस चिटठी के मायने है।धूमल ने वीरभद्र सिंह को चिटठी में क्या लिखा ,यहां पढ़े पूरी चिटठी
आदरणीय श्री वीरभद्र सिंह जी,
कल के समाचार पत्रों में मैंने जलविद्युत परियोजनाओं पर लिए गये निर्णयों का समाचार पढ़ा। शायद उनकी घोषणा आपने एक दो दिवसीय सेमीनार को सम्बोधित करते हुये की है। मैं इन घोषणाओं को पढ़कर हैरान हूं।
यह सही है कि जलविद्युत सबसे शुद्ध विद्युत का स्त्रोत है और प्रकृति ने हिमाचल प्रदेष को लगभग 25 हजार मैगावाटट जलविद्युत पैदा करने के स्त्रोत दिये हुये हैं और प्रदेश के लिए राष्ट्र की समृद्धि में देने के लिए सबसे बड़ा योगदान और प्रदेश के लिए सबसे बड़ा आय का साधन है। इसलिए हर प्रदेश सरकार का यह प्रयास रहना चाहिये कि अधिक से अधिक विद्युत उत्पादन हो और प्रदेश अधिक से अधिक संसाधन जुटा सके। हमारी सरकारों का यह प्रयास रहा भी है।
परन्तु यह संसाधन सदा बना रहे इसके लिए यह भी सुनिश्चित करना होगा कि प्राकृतिक वातावरण बना रहे जिसके कारण विद्युत उत्पादन के स्त्रोत हमें उपलब्ध हैं। अर्थात सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी का गला कहीं इस लालच में न मरोड़ दें कि सारे के सारे सोने के अण्डे एक दिन में ही मिल जायेंगे। इस लिए उस प्राकृतिक वातावरण, प्रोजैक्टस को बचाना भी हमारा कतव्र्य है।
इसलिए समय-2 पर प्रदेश सरकार और भारत सरकार ने ऐसी शर्तें लगाई की जिन से सन्तुलन रखा जा सके और यथासम्भव जलविद्युत उत्पादन भी हो। इसलिए यह शर्त थी कि सरकार प्रदेश के विभिन्न विभाग जैसे लोक निर्माण विभाग, सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य विभाग, राजस्व विभाग, मच्छली पालन विभाग, विद्युत वोर्ड, पर्यावरण विभाग आदि से अनापत्ति प्रमाण पत्र लिया जाये ताकि विद्युत प्राजैक्ट बनने से उनके किसी भी पहले से चल रहे प्रोजैक्ट पर कोई दुष्प्रभाव न पड़े या इन विभागों का कोई प्रोजैक्त प्रभावित नही हो। अगर नये बनने वाले विद्युत प्रोजैक्ट बनने से कोई दुष्प्रभाव का पूर्व अनुमान होगा तो उसका पहले ही समाधान खोज लिया जाये और उससे बचने के लिए पहले आवष्यक कदम उठा लिये जायेें। समाचारों को पढ़कर ऐसा प्रतीत होता है कि अब विद्युत उत्पादकों को किसी भी प्रकार की अनापत्ति प्रमाण पत्रकी आवश्यकता इन विभागों से नही रहेगी तो फिर इन विभागों के प्रोजैक्टस के हित्तों की रक्षा कैसे होगी।
हम सब जानते हैं कि जीव जन्तुओं और बनस्पति बचाने के लिए इस बात की भी शर्त है कि पावर प्रोजैक्टस के लिए जब पानी मोड़ा ; जाता है और जब नदियों में पानी कम होता है तब भी कम से कम 15 प्रतिशत पानी उनमें रखा
जायेगा ताकि जीव जन्तु और बनस्तति सुरक्षित रह सके। मुझे ज्ञात हुआ है कि कुछ चिन्तायें किसी ने इसी सेमीनार में व्यक्त की हैं। आपके ध्यान में होगा कि कई पावर प्रोजैक्टस इस से पहले भी रद्द करने पड़े थे क्योंकि वे मत्सय और सिंचाई एवं स्वास्थ्य विभागकी योजनाओं को प्रभावित करने वाले थे।
यह सही है कि विद्युत उत्पादकों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है परन्तु इसका समाधान यह नहीं है कि विभिन्न विभागों की अनापत्ति प्रमाण पत्रों की शर्तों को ही समाप्त कर दिया जाये। हमें दोनों में संतुलन बनाना होगा। बर्तमान परिस्थितियों में उचित यही होगा कि उपलब्ध डाटा का सही निरीक्षण हो लालफीताशाही और भ्रष्टाचार को समाप्त किया जाये और हम विभाग के लिए प्रस्ताव पर विचार करने के लिए समय सीमा निर्धारित की जाये और उसी समय सीमा के अन्दर उसे स्वीकृति या अस्वीकृति देने के लिए बाध्य किया जाये ताकि विभिन्न विभागों के चल रहे प्रोजैक्टस जैसे सड़क, पुल, पेयजल योजनायें, मच्छली पालन, विद्युत सप्लाई आदि में यदि किसी नये विद्युत पावर प्रोजैक्टस से वादा आती है तो उसका समाधान प्रोजैक्ट का निर्माण करने से पहले हो जाये ताकि जनसाधारण को असुविधा न हो और विद्युत उत्पादक को भी असुविधा न हो।
आशा है आप देश, प्रदेश के हित्त में इन सुझावों पर गहनता से विचार करेंगे और विद्युत उत्पादकों को विभागों से आवश्यक अनापति प्रमाण पत्र लेने की शर्त को निरस्त नहीं करेंगे।
आदर सहित,
भवदीय,
(प्रेम कुमार धूमल)
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