दाड़ला/शिमला/धर्मशाला। जिला सोलन के दाड़लाघाट में अंबुजा सीमेंट कंपनी के कारखाने में हुए हादसे में मारे गए कामगार के मामले को 24 घंटे में 29 लाख के मुआवजे, कंपनी में ही ठेके पर लगे उसके भाई को रेगुलर नौकरी देने और मां को पैंशन देने का समझौता कर निपटा दिया गया। ये हादसा बुधवार देर रात को हुआ था व वीरवार को डैडबॉडी को पोस्टमार्टम करवा कर कामगार अंबुजा के ही कारखाने में ले आए थे।
इस मामले में अभी तक किसी को भी अरेस्ट नहीं किया गया है हालांकि दाड़ला पुलिस ने धारा 336 और 304 के तहत अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है और मामले की जांच एसएचओ दाड़ला के सुपुर्द की गई है।
डीएसपी दाड़ला नरवीर राठौर ने इस तरह के समझौते की पुष्टि की व कहा कि दोनों पक्ष मान गए हैं। बाकी अगर कोई क्रिमिनल एंग्ल होगा तो दाड़ला एसएचओ को जांच सौंपी गई है।
हैरानजनक कांड ये हुआ है कि इस पूरे मामले की जांच करने के लिए जो कमेटी बनाई गई है उसमें मजदूर यूनियन सीटू के अध्यक्ष लच्छी राम, उप प्रधान मुकेश और कोषाध्यक्ष देवराज शर्मा के अलावा भारतीय मजदूर संघ के दाड़ला यूनिट के महासचिव मस्त राम को शामिल किया गया है।
इसके अलावा कंपनी के विशेषज्ञ मुबंई से आ रहें हैं। मजेदार यह है कि लच्छी राम, व देवराज शर्मा को कंपनी के ठेकेदारों ने नौकरी से ही निकाला हुआ है व वो पिछले एक महीने से विरोध कर रहे हैं। ये दिनचस्प है।
उधर इस कांड ने अंबुजा में सुरक्षा के इंतजामों की पोल खोल कर रख दी है। साथ ही प्रदेश की वीरभद्र सिंह सरकार के संबंधित अफसरों के कारनामों का भी खुलासा करवा दिया है। सरकार के लेबर विभाग में एक सेफटी अफसर होता है।जिसका काम कारखानों में जा-जा कर सुरक्षा के इंतजाम देखने का होता है। लेकिन अंबुजा कारखाने के कामगार बताते है कि ऐसा कोई अफसर उनके सामने कभी भी कारखाने में नहीं आया। क्यों नहीं जाता होगा ये अफसर ये पड़ताल का मसला हैं लेकिन जिस तरह नेताओं, अफसरों व उद्योपतियों के बीच सांठगांठ का दैर चला हुआ हैं,वो ये सब समझने के लिए काफी हैं।
मजेदार यह भी है कि सुरक्षा का इंतजाम व हादसे की जांच पड़ताल करने वाले जो विशेषज्ञ मुबंई से अंबुजा कंपनी की ओर से लाए जा रहे हैं वो सारे के सारे कंपनी की ओर से ही आ रहे हैं। सरकार की ओर से स्वतंत्र विशेषज्ञ कोई नहीं हैं। ये राठौर भी मानते है कि प्रशासन की ओर से कोई नहीं आ रहा है। ऐसे में बिना विशेषज्ञ के पुलिस जांच कैसे करेगी,इसके जवाब में वो कहते है कि जरूरत पड़ी तो पुलिस विशेषज्ञों की सहायता ले सकती है।
जो कामगार जांच समिति में हैं,उनमें से कोई भी सेफटी संहिता के बारे में कुछ नहीं जानते हैं। ऐसे में ये सरकार की जिम्मेदारी होती है कि वो सेफटी संहिता की अनुपालना को लेकर चौकस रहे। खासकर जब कोई हादसा हो ही जाए। लेकिन लेकिन सरकार के कारनामों का आलम ये है कि हादसे के बाद मौके पर न तो डीसी सोलन और न ही एसपी सोलन ने मौके पर पहुंचने का जहमत उठाई। डीएसपी अपने बॉस के बारे में कहते हैं कि एसपी मैडम उनसे लगातार संपर्क में थी। संभवत: होंगी भी,डीएसपी अपने बॉस को तो बचाएंगे ही। मौके पर डीएसपी के अलावा दाड़लाघाट के तहसीलदार ही गए और सरकार के दोनों बाबूओं ने 24 घंटों के भीतर ही मामला निपटा दिया।
जांच के लिए बनाई गई कमेटी के सदस्य के मुताबिक कारखानों के कारदानों से हुई वार्ता में 29 लाख मुआवजे के अलावा मृतक के भाई को जो कंपनी में ही ठेकेदार के पास कई सालों से काम कर रहा हैं उसे तुरंत रेगुलर करने और मृतक की मां को पैंशन देने के लिए कंपनी प्रबंधन तैयार हो गया हैं।
इस मसले पर कंपनी के बड़े बाबूओं से संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन एचआर हैड अशवनी वर्मा ने मोबाइल ही नहीं उठाया जबकि बाकियों से संपर्क नहीं हो पाया।
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